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चिंतन और व्यवहार प्रक्रिया

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चिंतन और व्यवहार प्रक्रिया के बीच अंतर

चिंतन vs. व्यवहार प्रक्रिया

चिंतन अवधारणाओं, संकल्पनाओं, निर्णयों तथा सिद्धांतो आदि में वस्तुगत जगत को परावर्तित करने वाली संक्रिया है जो विभिन्न समस्याओं के समाधान से जुड़ी हुई है। चिंतन विशेष रूप से संगठित भूतद्रव्य-मस्तिष्क- की उच्चतम उपज है। चिंतन का संबंध केवल जैविक विकासक्रम से ही नहीं अपितु सामाजिक विकास से भी है। चिंतन का उद्भव लोगों के उत्पादन कार्यकलाप की प्रक्रिया के दौरान होता है और वह यथार्थ का व्यवहृत परावर्तन सुनिश्चित करता है। अपने विशिष्ट मूल, क्रियाकलाप के ढंग और परिणामों की दृष्टि से उसका स्वरूप सामाजिक होता है। इसकी पुष्टि इस बात में है कि चिंतन श्रम तथा वाणी के कार्यकलाप से, जो केवल मानव समाज की अभिलाक्षणकताएं हैं, अविच्छेद्य रूप में जुड़ा हुआ है। इसी कारण मनुष्य का चिंतन वाणी के साथ घनिष्ठ रखते हुए मूर्त रूप ग्रहण करता है और उसका परिणाम भाषा के रूप में व्यक्त होता है। . सांसारिक उद्दीपनों की टक्कर खाकर सजीव प्राणी (Organisms) अपना अस्तित्व बनाए रखने के निमित्त कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है। उसके व्यवहार को देखकर हम प्राय: अनुमान लगाते हैं कि वह किस उद्दीपक (स्टिमुलस) या परिस्थिति विशेष के लगाव से ऐसी प्रतिक्रिया करता है। जब एक चिड़िया पेड़ की शाखा या भूमि पर चोंच मारती है, तो हम झट समझ जाते हैं कि वह कोई अन्न या कीट आदि खा रही है। जब हम उसे चोंच में तिनका लेकर उड़ते देखते हैं, तो तुरंत अनुमान लगाते हैं कि वह नीड़ (घोंसला) बना रही है। इसी प्रकार मानवी शारीरिक व्यवहार से उसके मनोरथ तथा स्वभाव आदि का भी पता लगता है। .

चिंतन और व्यवहार प्रक्रिया के बीच समानता

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संदर्भ

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