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लौह उल्का

सूची लौह उल्का

सन् १८६४ में सहारा रेगिस्तान में मिला ५०० किलोग्राम का तामेनतीत लौह उल्का लौह उल्का (Iron meteorite) ऐसे उल्का को कहते हैं जिसका अधिकांश भाग लोहे-निकल के उल्काई लोहा (meteoric iron) नामक मिश्रातु (ऐलोय) का बना हो। यह शिशुग्रहों की ग्रहीय क्रोडों से उत्पन्न होती हैं। अति-प्राचीनकाल में जब मनुष्यों को धरती से लोहा निकालकर उसे पत्थर से अलग कर के शुद्ध करना नहीं आता था, तब लौह उल्का ही उनके लिये लोहा का सबसे पहला स्रोत थे। .

6 संबंधों: निकल, मिश्रातु, लोहा, शिशुग्रह, ग्रहीय क्रोड, उल्का

निकल

निकल एक रासायनिक तत्व है जो रासायनिक रूप से संक्रमण धातु समूह का सदस्य है। यह एक श्वेत-चाँदी रंग की धातु है जिसमें ज़रा-सी सुनहरी आभा भी दिखती है। यह सख़्त और तन्य होता है। हालाँकि निकल के बड़े टुकड़ों पर ओक्साइड की परत बन जाती है जिस से अंदर की धातु सुरक्षित रहती है, निकल वैसे ओक्सीजन से तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया (रियेक्शन) कर लेता है। इस कारणवश पृथ्वी की सतह पर निकल शुद्ध रूप में नहीं मिलता और अगर मिलता है तो इसका स्रोत अंतरिक्ष से गिरे लौह उल्का होते हैं। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि पृथ्वी का क्रोड निकल-लौह के मिश्रित धातु का बना हुआ है। .

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मिश्रातु

इस्पात एक मिश्रधातु है दो या अधिक धात्विक तत्वों के आंशिक या पूर्ण ठोस-विलयन को मिश्रातु या मिश्र धातु (Alloy) कहते हैं। इस्पात एक मिश्र धातु है। प्रायः मिश्र धातुओं के गुण उस मिश्रधातु को बनाने वाले संघटकों के गुणों से भिन्न होते हैं। इस्पात, लोहे की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है। काँसा, पीतल, टाँका (सोल्डर) आदि मिश्रातु हैं। .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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शिशुग्रह

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा HD १४१९४३ और HD १९१०८९ नामक दो कम उम्र के तारों के इर्द-गिर्द के मलबा चक्र शिशुग्रह (planetesimal) उन ठोस वस्तुओं को कहते हैं जो किसी तारे के इर्द-गिर्द के आदिग्रह चक्र या मलबा चक्र में बन रही होती हैं। .

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ग्रहीय क्रोड

सौर मंडल के कुछ अंदरूनी ग्रहों की आंतरिक संरचना ग्रहीय क्रोड (planetary core) किसी ग्रह, उपग्रह या बड़े क्षुद्रग्रह की सबसे भीतरी तह को कहा जाता है। यह ठोस या द्रव (लिक्विड) या उन दोनों की परतों का सम्मिलन हो सकती है। हमारे सौर मंडल में ग्रहीय क्रोड का पूरी वस्तु की त्रिज्या (रेडियस) में हिस्सा चंद्रमा में २०% से लेकर बुध ग्रह (मर्क्युरी) में ८५% तक है। गैस दानवों की भी क्रोडें होती हैं लेकिन उनकी बनावट पर बहस जारी है - वह पत्थर की, बर्फ़ की या फिर धातु हाइड्रोजन के द्रव की हो सकती है। .

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उल्का

आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .

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