लोककथा और सचेतक कथा
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लोककथा और सचेतक कथा के बीच अंतर
लोककथा vs. सचेतक कथा
लोककथाएँ वे कहानियाँ हैं जो मनुष्य की कथा प्रवृत्ति के साथ चलकर विभिन्न परिवर्तनों एवं परिवर्धनों के साथ वर्तमान रूप में प्राप्त होती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ निश्चित कथानक रूढ़ियों और शैलियों में ढली लोककथाओं के अनेक संस्करण, उसके नित्य नई प्रवृत्तियों और चरितों से युक्त होकर विकसित होने के प्रमाण है। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और अंचलों में बदलकर अनेक रूप ग्रहण करती हैं। लोकगीतों की भाँति लोककथाएँ भी हमें मानव की परंपरागत वसीयत के रूप में प्राप्त हैं। दादी अथवा नानी के पास बैठकर बचपन में जो कहानियाँ सुनी जाती है, चौपालों में इनका निर्माण कब, कहाँ कैसे और किसके द्वारा हुआ, यह बताना असंभव है। "यद्यपि दादी नानी से ज्यादा कहानियाँ दादा नाना सुनाते हैं लेकिन फिर भी दादी-नानी को ही ज्यादा महता देना भी विरासत में चली आ रही परिपाटी का ही परिणाम है!"-डॉ.रवींद्र भारतीय . एक सचेतक कथा, लोककथा के लहजे में सुनाई गयी वो कहानी है जिसमें इसके श्रोता को किसी खतरे के संबंध में आगाह किया जाता है। मुख्य रूप से किसी सचेतक कथा के तीन भाग होते हैं। पहला भाग में किसी खतरे या वर्जना का वर्णन होता है, जिसमें किसी खतरनाक कार्य, वस्तु या स्थान के बारे में बताया जाता है। दूसरे भाग में उस व्यक्ति के बारे में बताया जाता है जिसने इन खतरों या चेतावनियों की अवहेलना कर उस वर्जित कार्य को किया था। तीसरा भाग उस व्यक्ति के इन वर्जित कार्यों के कारण उसे मिली सजा की दुख:द और हृदयविदारक व्याख्या करता है।.
लोककथा और सचेतक कथा के बीच समानता
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संदर्भ
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