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लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण के बीच अंतर

लेप्टोस्पाइरता vs. संक्रमण

लेप्टोस्पायरोसिस (जिसके दूसरे कई नामों में फील्ड फीवर, रैट काउचर्स यलो, और प्रटेबियल बुखार शामिल हैं) एक संक्रमण है जो लेप्टोस्पाइरा कहे जाने वाले कॉकस्क्रू-आकार केबैक्टीरिया से फैलता है। लक्षणों में हल्के-फुल्के सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और बुखार; से लेकर फेफड़ों से रक्तस्राव या मस्तिष्क ज्वर जैसे गंभीर लक्षण शामिल हो सकते हैं। यदि संक्रमित व्यक्ति को पीला, हो या गुर्दे की विफलता हो और रक्तस्राव हो तो इसे वेल रोगकहते हैं। यदि इसके कारण फेफड़े से अत्यधिक रक्तस्राव होता है तो इसे गंभीर फुप्फुसीय रक्तस्राव सिन्ड्रोमकहते हैं। . रोगों में कुछ रोग तो ऐसे हैं जो पीड़ित व्यक्तियों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क, या उनके रोगोत्पादक, विशिष्ट तत्वों से दूषित पदार्थों के सेवन एवं निकट संपर्क, से एक से दूसरे व्यक्तियों पर संक्रमित हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को संक्रमण (Infection) कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में ऐसे रोगों को छुतहा रोग या छूआछूत के रोग कहते हैं। रोगग्रस्त या रोगवाहक पशु या मनुष्य संक्रमण के कारक होते हैं। संक्रामक रोग तथा इन रोग के संक्रमित होने की क्रिया समाज की दृष्टि से विशेष महत्व की है, क्योंकि विशिष्ट उपचार एवं अनागत बाधाप्रतिषेध की सुविधाओं के अभाव में इनसे महामारी (epidemic) फैल सकती है, जो कभी-कभी फैलकर सार्वदेशिक (pandemic) रूप भी धारण कर सकती है। .

लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण के बीच समानता

लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): महामारी, जीवाणु

महामारी

जब किसी रोग का प्रकोप कुछ समय पहले की अपेक्षा बहुत अधिक होता तो उसे महामारी या 'जानपदिक रोग' (epidemic) कहते हैं। महामारी किसी एक स्थान पर सीमित होती है। किन्तु यदि यह दूसरे देशों और दूसरे महाद्वीपों में भी पसर जाए तो उसे 'सार्वदेशिक रोग' (pandemic) कहते हैं। .

महामारी और लेप्टोस्पाइरता · महामारी और संक्रमण · और देखें »

जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण के बीच तुलना

लेप्टोस्पाइरता 8 संबंध है और संक्रमण 14 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 9.09% है = 2 / (8 + 14)।

संदर्भ

यह लेख लेप्टोस्पाइरता और संक्रमण के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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