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लक्ष्मी और सम्पदा व्रत

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

लक्ष्मी और सम्पदा व्रत के बीच अंतर

लक्ष्मी vs. सम्पदा व्रत

लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी। पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है। . कथाः हमारे देश में एक राजा हुए थें - नल। उनकी पत्नी का नाम था दमयन्ती। एक बार चैत्र मास की प्रतिपदा को बुढिया रानी दमयन्ती के पास आई। उसने अपने गले में पीला गाँठ लगा डोरा बाँध रखा था। रानी ने उससे डोरी के बारे में पूछा तो वह बोली,” यह सम्पदा का डोरा हैं। इसके पहनने से घर में सुख सम्पति की वृद्धी होती हैं। रानी ने भी उससे एक डोरा लेकर अपने गले में बाँध लिया राजा नल ने रानी के गले में बधे डोरे के विषय में पूछा तो रानी ने बुढ़िया द्वारा बताई सारी बाते बता दी। राजा कहने लगा,” तुम्हे किस चिज की कमी है जो तुमने डोरा बाँधा है।“ इतना कहकर रानी के मना करने पर भी राजा ने उस डोरे को तोडकर फेक दिया। रात्रि में राजा को स्वप्न में एक स्त्री बोली- ” मैं जा रही हूँ तथा दूसरी स्त्री बोली में आ रही हूँ।“ इस प्रकार इस बारह दिन तक रोज यही स्वप्न आता। वह उदास रहने लगा। रानी के पूछने पर राजा ने रानी को स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से दोनो स्त्रियो का नाम पूछने को कहा। राजा द्वारा उनसे पूछने पर पहली स्त्री बोली मैं लक्ष्मी हूँ और दुसरी ने अपना नाम दरिद्रता बताया। दूसरे दिन राजा ने देखा की उसका सब धन समाप्त हो गया है। वे इतने निर्धन हो गये कि उनके पास खाने तक को न रहा। दुःखी मन ने राजा रानी जंगल में कन्द मूल खाकर अपने दिन बिताने लगें। राह में उनक पाँच बरस के बेटे को भुख लगी। तो रानी ने राजा से मालिन के यहाँ से छाछ माँगकर लाने को कहा। राजा ने मालिन से छाछ माँगी तो मालिन ने कहा छाछ समाप्त हो गई। आगे चलने पर राजा पर एक विषधर ने कुंअर को डस लिया। आगे चलने पर राजा दो तीतर मार लाया। रानी ने तीतर भूने तो तीतर उड गये। राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था तो धोती को हवा उडा ले गई। तब रानी ने अपनी धोती फाडकर राजा को दी। वे भुखे प्यासे आगे बढ गये तो मार्ग में राजा के मित्र का घर पडा। मित्र ने दोनो को कमरे में ठहराया। वहाँ लोहे के औजार रखे तो वे धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के भय से वहाँ से भागे। आगे चलकर राजा की बहन का घर पडा। राजा की बहन ने उन्हे एक पुराने महल में ठहराया सोने के थाल में उन्हे खाना भेजा तो थाल मिट्टी में बदल गया। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वही जमीन में गाढकर भाग निकलें। आगे चलने पर एक साहुकार का घर आया। साहुकार ने राजा के ठहरने की व्यवस्था पुरानी हवेली में कर दी। वहाँ पर खंटी पर एक हीरो का हार टंगा था। पास ही दीवार पर एक मोर का चित्र बना था। वह मोर हार को निगलने लगा। यह देखकर वे वहाँ से भी चोरी के डर से भागे। अब रानी की सलाह पर राजा जंगल में कुटिया बनाकर रहने की सोचने लगा। वे जंगल में एक सूखे बगीचे में जाकर ठहरे। वह बगीचा हरा भरा हो गया। बाग का स्वामी यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। स्वामी ने उनसे पूछा तुम दोनो कौन हो? राजा बोला हम यात्री हैं। मजदुरी की खोज में आये हैं। स्वामी ने उन्हे अपने यहाँ नौकर रख लिया। एक दिन बाग की स्वामिनी बैठी बैठी कथा सुन रही थी और डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि सम्पदा का डोरा हैं रानी ने भी कथा सुनकर डोरा ले लिया। राजा ने रानी से पूछा ये कैसा डोरा बाँधा हैं? रानी बोली यह वही डोरा जिसे आने एक बार तोडकर फेंक दिया था। और हमें इतनी विपत्तियाँ झेलनी पडी। सम्पदा देवी हम पर नाराज हैं। रानी बोली, ” यदि सम्पदा माता सच्ची हैं तो हमारे दिन फिर से लौट आएगे।“ उसी रात को राजा को स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही हैं मैं जा रही हूँ, दूसरी स्त्री मैं आ रही हूँ। राजा के पूछने पर पहली स्त्री ने अपना नाम दरिद्रता बताया और दूसरी ने अपना नाम लक्ष्मी बताया। राजा ने लक्ष्मी से पूछा अब तो नहीं जाओगी। लक्ष्मी बोली यदि तुम्हारी पत्नी सम्पदा का डोरा लेकर कथा सनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊँगी। यदि तुम डोरा तोड दोगे तो चली जाऊँगी। बाग की मालकिन किसी रानी के हार देने जाती थी उस हार को दमयन्ती बनाती थी। रानी वह हार बहुत पसन्द आया। रानी के पूछने पर मालकिन बनाया कि हमारे यहाँ एक दम्पति नौकरी करते हैं उसने ही बनाया हैं। रानी ने बाग की मालकिन से दोनो के नाम पूछने को कहा। घर आकर दोनो के नाम पुछे त उसे पता चला कि वे नल दमयन्ती हैं बाग का मालिक उनसे क्षमा माँगने लगा तो राजा नल ने उससे कहा कि हमारे दिन खराब चल रहे थे इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। अब दोनो अपने राजमहल की तरफ चले। रास्ते में साहुकार का घर आया। वह साहुकार के यहाँ ठहरे वहाँ देखा कि दीवार पर बना मोर नौलखा हार उगल रहा हैं। साहुकार ने राजा के पैर पकड लिये। आगे चलने पर बहन के घर पहुचा। राजा बहन के पुराने महल में ही ठहरा। राजा ने वह जगह खोदी तो हीरे से जडत थाल निकला। राजा ने बहन को बहुत सा धन भेट स्वरूप दिया। आगे चल मित्र के घर पहुँचकर उसी कमरे में ठहरा। वहाँ मित्र के लोहे के औजार मिल गये। आगे चलने पर उसकी धोती एक वृक्ष पर मिल गयी। नहा धोकर आगे बढने पर राजकुमार जिसको ने सर्प डस लिया था खेलता हुआ मिल गया। महलो में पहुचने पर रानी की सखियो ने मंगल गान गाकर उनका स्वागत किया। यह सब सम्पदा जी का डोरा बाँधने का ही फल था जो उनके बुरे दिन अच्छे दिनो में बदल गये।.

लक्ष्मी और सम्पदा व्रत के बीच समानता

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लक्ष्मी और सम्पदा व्रत के बीच तुलना

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संदर्भ

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