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रामदरश मिश्र

सूची रामदरश मिश्र

डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। .

57 संबंधों: ऐसे में जब कभी, तना हुआ इन्द्रधनुष, दिन एक नदी बन गया, दिल्ली विश्‍वविद्यालय, दैनंदिनी, नयी कविता, निबन्ध, पड़ोस की खुशबू, पथ के गीत, पक गई है धूप, पूर्णिमा, बड़ोदरा, बारिश में भीगते बच्चे, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ, भारत, भोर का सपना, महाराज सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, यात्रावृत्तांत, ललित निबंध, श्रावण, सहचर है समय, सामाजिक, साहित्यकार, संस्मरण, स्मृतियों के छन्द, हँसी ओठ पर आँखें नम हैं, हिन्दू पंचांग, हिन्दी, हिन्दी कहानी : अंतरंग पहचान, हिन्दी कविता : आधुनिक आयाम, हिन्दी उपन्यास : एक अंतयात्रा, हिंदी साहित्य, जन्म, जुलूस कहां जा रहा है, वाराणसी, गद्य, ग़ज़ल, गुरुवार, गुजरात, गुजरात विश्वविद्यालय, गौरा बरहज, गोरखपुर, गीत, आत्मकथा, आग कुछ नहीं बोलती, कहानी, काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय, काव्य, कवि, कंधे पर सूरज, ..., अपने लोग, उत्तर प्रदेश, उपन्यास, उपन्यासकार, छायावाद का रचनालोक, १५ अगस्त, १९२४ सूचकांक विस्तार (7 अधिक) »

ऐसे में जब कभी

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तना हुआ इन्द्रधनुष

यह किताब तना हुआ इन्द्रधनुष रामदर्श मिश्र द्वारा लिखा गया है।.

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दिन एक नदी बन गया

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दिल्ली विश्‍वविद्यालय

दिल्ली विश्वविद्यालय (अंग्रेजी:University of Delhi), भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। भारत की राजधानी दिल्ली स्थित यह विश्वविद्यालय 1922 में स्थापित हुआ था। यह स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है। भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलाधिपति हैं। THES-QS की विश्व के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग के अनुसार यह भारत का शीर्ष गैर-आईआईटी विश्वविद्यालय है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं जो दिल्ली के उत्तरी और दक्षिणी भाग में स्थित हैं। इन्हें क्रमश: उत्तरी परिसर और दक्षिणी परिसर कहा जाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय का उत्तरी परिसर में दिल्ली मेट्रो की पीली लाइन के साथ सुनियोजित ढंग से जुड़ा हुआ है और मेट्रो स्टेशन का नाम 'विश्वविद्यालय' है। उत्तरी परिसर दिल्ली विधान सभा से 2.5 किमी और अंतरराज्यीय बस अड्डे से 7.0 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।तो वहीं इसका दक्षिणी परिसर गुलाबी (पिंक)लाइन से जुड़ा है और मेट्रो स्टेशन का नाम 'दुर्गाबाई देशमुख साउथ केम्पस 'है| .

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दैनंदिनी

दैनंदिनी हिन्दी साहित्य में गद्य की एक विधा है। श्रेणी:डायरी.

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नयी कविता

नयी कविता भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गईं उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया। यह भी कहा जा सकता है कि प्रयोगवाद के बाद हिंदी कविता की जो नवीन धारा विकसित हुई, वह नई कविता है। नयी कविता नाम आज़ादी के बाद लिखी गई उन कविताओं के लिए रूढ हो गया, जो अपनी वस्तु-छवि और रूप-छवि दोनों में प्रगतिवाद और प्रयोगवाद का विकास होकर भी विशिष्ट है। नयी कविता-आंदोलन का आरंभ इलाहाबाद की साहित्यिक संस्था परिमल के कवि लेखकों- जगदीश गुप्त, रामस्वरुप चतुर्वेदी और विजयदेवनरायण साही के संपादन में १९५४ में प्रकाशित "नयी कविता" पत्रिका से माना जाता है। इससे पहले अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित काव्य-संग्रह 'दूसरा सप्तक' की भूमिका तथा उसमें शामिल कुछ कवियों के वक्तव्यों में अपनी कवितओं के लिये 'नयी कविता' शब्द को स्वीकार किया गया था। .

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निबन्ध

निबन्ध (Essay) गद्य लेखन की एक विधा है। लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत में भी निबंध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबंध संस्कृत के निबंधों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबंध की विधा का संबंध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबंध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है। निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा है- इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबंध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतंत्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है। .

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पड़ोस की खुशबू

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पथ के गीत

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पक गई है धूप

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पूर्णिमा

पूर्णिमा पंचांग के अनुसार मास की 15वीं और शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य मनाया जाता हैं। .

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बड़ोदरा

बड़ोदरा गुजरात राज्य का तीसरा सबसे अधिक जनसन्ख्या वाला शहर है। यह एक शहर है जहा का महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय अपने सुंदर स्थापत्य के लिए जाना जाता है। वड़ोदरा गुजरात का एक महत्त्वपूर्ण नगर है। वड़ोदरा शहर, वडोदरा ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय, पूर्वी-मध्य गुजरात राज्य, पश्चिम भारत, अहमदाबाद के दक्षिण-पूर्व में विश्वामित्र नदी के तट पर स्थित है। वडोदरा को बड़ौदा भी कहते हैं। इसका सबसे पुराना उल्लेख 812 ई. के अधिकारदान या राजपत्र में है, जिसमें इसे वादपद्रक बताया गया है। यह अंकोत्तका शहर से संबद्ध बस्ती थी। इस क्षेत्र को जैनियों से छीनने वाले दोर राजपूत राजा चंदन के नाम पर शायद इसे चंदनवाटी के नाम से भी जाना जाता था। समय-समय पर इस शहर के नए नामकरण होते रहे, जैसे वारावती, वातपत्रक, बड़ौदा और 1971 में वडोदरा। .

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बारिश में भीगते बच्चे

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बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भोर का सपना

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महाराज सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय

सयाजीराव गायकवाड विश्वविद्यालय गुजरात, भारत का एक विश्वविद्यालय है। यह बड़ौदा में स्थित है। .

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यात्रावृत्तांत

यात्रावृत्तांत गद्य लेखन की एक विधा है। श्रेणी:यात्रा वृत्तांत.

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ललित निबंध

ललित निबंध निबंध का एक प्रकार है। ललित निबन्ध विधा की उपस्थिति का अभास आधुनिक काल और गद्य विधा के आरम्भ के साथ ही मिलने लगता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, सरदार पूर्ण सिंह, चन्द्रधर्शर्मा गुलेरी, बालमुकुन्द गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी आदि के निबन्धों में इस विधा के पूर्वाभास दिखाई पडने लगते हैं, लेकिन एक व्यवस्थित और महत्वपूर्ण विधा के रूप में इसकी पहचान पहले-पहल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबन्धों में दिखाई पडती है। ‘अशोक के फूल’, ‘कुटज ’और ‘कल्पलता’ संकलनों के निबंध पहले-पहल इस विधा के प्रतिदर्श बने। अतः उनके ये निबन्ध ही इस विधा के वास्तविक प्रस्थान विन्दु हैं। आगे चलकर कुबेर नाथ राय, विद्या निवास मिश्र, विवेकी राय, परिचय दास आदि निबन्धकारों ने इसे और समृद्ध किया। .

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श्रावण

Rahman .

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सहचर है समय

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सामाजिक

सामाजिक शब्द का शाब्दिक अर्थ सजीव से है चाहे वो मानव जनसंख्या हों अथवा पशु। यह एक सजीव का अन्य सजीवों के साथ सह-अस्तित्व तथा निरपेक्षता का सूचक शब्द है कि उनमें इस तरह की अन्योन्य क्रियाएं होती हैं अथवा नहीं। निरपेक्षता उनकी इच्छा अथवा स्वैच्छा पर निर्भर करती है। .

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साहित्यकार

साहित्य की रचना करने वालों को साहित्यकार कहते हैं। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:व्यवसाय.

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संस्मरण

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकारा गया है। .

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स्मृतियों के छन्द

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हँसी ओठ पर आँखें नम हैं

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हिन्दू पंचांग

हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना की समान संकल्पनाओं और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं। भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख क्षेत्रीय पञ्चाङ्ग ये हैं-.

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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हिन्दी कहानी : अंतरंग पहचान

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हिन्दी कविता : आधुनिक आयाम

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हिन्दी उपन्यास : एक अंतयात्रा

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हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

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जन्म

जीवों के शरीर बहुत छोटी-छोटी काशिकाओं से बने हैं। सरलतम एक-कोशिकाई (unicellular) जीव को लें। कोशिका की रासायनिक संरचना हम जानते हैं। कोशिकाऍं प्रोटीन (protein) से बनी हैं और उनके अंदर नाभिक में नाभिकीय अम्ल (nuclear acid) है। ये प्रोटीन केवल २० प्रकार के एमिनो अम्‍ल (amino acids) की श्रृंखला-क्रमबद्धता से बनते हैं और इस प्रकार २० एमिनो अम्ल से तरह-तरह के प्रोटीन संयोजित होते हैं। अमेरिकी और रूसी वैज्ञानिकां ने प्रयोग से सिद्ध किया कि मीथेन (methane), अमोनिया (ammonia) और ऑक्सीजन (oxygen) को काँच के खोखले लट्टू के अंदर बंद कर विद्युत चिनगारी द्वारा एमिनो अम्ल का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहना प्रारंभ किया कि अत्यंत प्राचीन काल में जीवविहीन पृथ्वी पर मीथेन, अमोनिया तथा ऑक्सीजन से भरे वातावरण में बादलों के बीच बिजली की गड़गड़ाहट से एमिनो अम्ल बने, जिनसे प्रोटीन योजित हुए। अपने प्राचीन ग्रंथों में सूर्य को जीवन का दाता कहा गया है। इसीसे प्रेरित होकर भारत में (जो जीवोत्पत्ति के शोधकार्य में सबसे आगे था) प्रयोग हुए कि जब पानी पर सूर्य का प्रकाश फॉरमैल्डिहाइड (formaldehyde) की उपस्थिति में पड़ता है तो एमिनो अम्ल बनते हैं। इसमें फॉरमैल्डिहाइड उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करती है। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के वायुमंडल में विद्युतीय प्रक्षेपण की आवश्यकता नहीं। अब कोशिका का नाभिकीय अम्ल ? इमली के बीज से इमली का ही पेड़ उत्पन्न होगा, पशु का बच्चा वैसा ही पशु बनेगा, यह नाभिकीय अम्ल की माया है। यही नाभिकीय अम्ल जीन (gene) के नाभिक को बनाता है, जिससे शरीर एवं मस्तिष्क की रचना तथा वंशानुक्रम में प्राप्त होनेवाले गुण—सभी पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को प्राप्त होते हैं। जब प्रजनन के क्रम में एक कोशिका दो कोशिका में विभक्त होती है तो दोनो कोशिकायें जनक कोशिका की भाँति होंगी, यह नाभिकीय अम्ल के कारण है। पाँच प्रकार के नाभिकीय अम्ल को लेकर सीढ़ी की तरह अणु संरचना से जितने प्रकार के नाभिकीय अम्ल चाहें, बना सकते हैं। नाभिकीय अम्ल में अंतर्निहित गुण है कि वह उचित परिस्थिति में अपने को विभक्त कर दो समान गुणधर्मी स्वतंत्र अस्तित्व धारणा करता है। दूसरे यह कि किस प्रकार का प्रोटीन बने, यह भी नाभिकीय अम्ल निर्धारित करता है। एक से उसी प्रकार के अनेक जीव बनने के जादू का रहस्य इसी में है। क्या किसी दूरस्थ ग्रह के देवताओं ने, प्रबुद्ध जीवो ने ये पाँच नाभिकीय अम्ल के मूल यौगिक (compound) इस पृथ्वी पर बो दिए थे? एक कोशिका में लगभग नौ अरब (९x१०^९) परमाणु (atom) होते हैं। कैसे संभव हुआ कि इतने परमाणुओं ने एक साथ आकर एक जीवित कोशिका का निर्माण किया। विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रोटीन या नाभिकीय अम्ल बनने के पश्चात भी यह प्रश्न शेष रहता है कि इन्होंने किस परिस्थिति में संयुक्त होकर जीवन संभव किया। भारत में डॉ॰ कृष्ण बहादुर ने प्रकाश-रासायनिक प्रक्रिया (photo-chemical process) द्वारा जीवाणु बनाए। फॉरमैल्डिहाइड की उत्प्रेरक उपस्थिति में सूर्य की किरणों से प्रोटीन तथा नाभिकीय अम्ल एक कोशिकीय जीवाणु मे संयोजित हुए। ये जीवाणु अपने लिए पोषक आहार अंदर लेकर, उसे पचाकर और कोशिका का भाग बनाकर बढ़ते हैं। जीव विज्ञान (biology) में इस प्रकार स्ववर्धन की क्रिया को हम उपापचय (metabolism) कहते हैं। ये जीवाणु अंदर से बढ़ते हैं, रसायनशाला में घोल के अंदर टँगे हुए सुंदर कांतिमय रवा (crystal) की भाँति बाहर से नहीं। जीवाणु बढ़कर एक से दो भी हो जाते हैं, अर्थात प्रजनन (reproduction) भी होता है। और ऐसे जीवाणु केवल कार्बन के ही नहीं, ताँबा, सिलिकन (silicon) आदि से भी निर्मित किए, जिनमें जीवन के उपर्युक्त गुण थे। कहते हैं कि जीव के अंदर एक चेतना होती है। वह चैतन्य क्या है? यदि अँगुली में सुई चुभी तो अँगुली तुरंत पीछे खिंचती है, बाह्य उद्दीपन के समक्ष झुकती है। मान लो कि एक संतुलित तंत्र है। उसमें एक बाहरी बाधा आई तो एक इच्छा, एक चाह उत्पन्न हुई कि बाधा दूर हो। निराकरण करने के लिए किसी सीमा तक उस संतुलित तंत्र में परिवर्तन (बदल) भी होता है। यदि यही चैतन्य है तो यह मनुष्य एवं जंतुओं में है ही। कुछ कहेंगे, वनस्पतियों, पेड़-पौधों में भी है। पर एक परमाणु की सोचें—उसमें हैं नाभिक के चारों ओर घूमते विद्युत कण। पास के किसी शक्ति-क्षेत्र (fore-field) की छाया के रूप में कोई बाह्य बाधा आने पर यह अणु अपने अंदर कुछ परिवर्तन लाता है और आंशिक रूप में ही क्यों न हो, कभी-कभी उसे निराकृत कर लेता है। बाहरी दबाव को किसी सीमा तक निष्प्रभ करने की इच्छा एवं क्षमता—आखिर यही तो चैतन्य है। यह चैतन्य सर्वव्यापी है। महर्षि अरविंद के शब्दों में, ‘चराचर के जीव (वनस्पति और जंतु) और जड़, सभी में निहित यही सर्वव्यापी चैतन्य (cosmic consciousness) है।‘ पर जीवन जड़ता से भिन्न है, आज यह अंतर स्पष्ट दिखता है। सभी जीव उपापचय द्वारा अर्थात बाहर से योग्य आहार लेकर पचाते हुए शरीर का भाग बनाकर, स्ववर्धन करते तथा ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जड़ वस्तुओं में इस प्रकार अंदर से बढ़ने की प्रक्रिया नहीं दिखती। फिर मोटे तौर पर सभी जीव अपनी तरह के अन्य जीव पैदा करते हैं। निरा एक- कोशिक सूक्ष्मदर्शीय जीव भी; जैसे अमीबा (amoeba) बढ़ने के बाद दो या अनेक अपने ही तरह के एक-कोशिक जीवों में बँट जाता है। कभी-कभी अनेक अवस्थाओं से गुजरकर जीव प्रौढ़ता को प्राप्त होते हैं और तभी प्रजनन से पुन: क्रम चलता है। किसी-न-किसी रूप में प्रजनन जीवन की वृत्ति है, मानो जीव-सृष्टि इसी के लिए हो। पर ये दोनों गुण‍ जीवाणु में भी हैं। यदि यही वृत्तिमूलक परिभाषा (functional definition) जीवन की लें तो जीवाणु उसकी प्राथमिक कड़ी है। कोशिका में ये वृत्तियाँ क्यों उत्पन्न हुई ? इसका उत्तर दर्शन, भौतिकी तथा रसायन के उस संधि-स्थल पर है जहां जीव विज्ञान प्रारंभ होता है। यहां सभी विज्ञान धुँधले होकर एक-दूसरे में मिलते हैं, मानों सब एकाकार हों। इसके लिये दो बुनियादी भारतीय अभिधारणाएँ हैं—(1) यह पदार्थ (matter) मात्र का गुण है कि उसकी टिकाऊ इकाई में अपनी पुनरावृत्ति करनेकी प्रवृत्ति है। पुरूष सूक्त ने पुनरावृत्ति को सृष्टि का नियम कहा है। (2) हर जीवित तंत्र में एक अनुकूलनशीलता है; जो बाधाऍं आती हैं उनका आंशिक रूप में निराकरण, अपने को परिस्थिति के अनुकूल बनाकर, वह कर सकता है। इन गुणों का एक दूरगामी परिणाम जीव की विकास-यात्रा है। चैतन्य सर्वव्यापी है और जीव तथा जड़ सबमें विद्यमान है, यह विशुद्ध भारतीय दर्शन साम्यवादियों को अखरता था। उपर्युक्त दोनों भारतय अभिधारणाओं ने, जो जीवाणु का व्यवहार एवं जीव की विकास-यात्रा का कारण बताती हैं, उन्हें झकझोर डाला। यह विश्वास अनेक सभ्यताओं में रहा है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना की। भारतीय दर्शन में ईश्वर की अनेक कल्पनाऍं हैं। ऐसा समझना कि वे सारी कल्पनाऍं सृष्टिकर्ता ईश्वर की हैं, ठीक न होगा। ईश्वर के विश्वास के साथ जिसे अनीश्वरवादी दर्शन कह सकते हैं, यहाँ पनपता रहा। कणाद ऋषि ने कहा कि यह सारी सृष्टि परमाणु से बनी है। सांख्य दर्शन को भी एक दृष्टि से अनीश्वरवादी दर्शन कह सकते हैं। सांख्य की मान्यता है कि पुरूष एवं प्रकृति दो अलग तत्व हैं और दोनों के संयोग से सृष्टि उत्पन्न हुई। पुरूष निष्क्रिय है और प्रकृति चंचल; वह माया है और हाव-भाव बदलती रहती है। पर बिना पुरूष के यह संसार, यह चराचर सृष्टि नहीं हो सकती। उपमा दी गई कि पुरूष सूर्य है तो प्रकृति चंद्रमा, अर्थात उसी के तेज से प्रकाशवान। मेरे एक मित्र इस अंतर को बताने के लिए एक रूपक सुनाते थे। उन्होंने कहा कि उनके बचपन में बिजली न थी और गैस लैंप, जिसके प्रकाश में सभा हो सके, अनिवार्य था। पर गैस लैंप निष्क्रिय था। न वह ताली बजाता था, न वाह-वाह करता था, न कार्यवाही में भाग लेता था, न प्रेरणा दे सकता था और न परामर्श। पर यदि सभा में मार-पीट भी करनी हो तो गैस लैंप की आवश्यकता थी, कहीं अपने समर्थक ही अँधेरे में न पिट जाऍं। यह गैस लैंप या प्रकाश सांख्य दर्शन का ‘पुरूष’ है। वह निष्क्रिय है, कुछ करता नहीं। पर उसके बिना सभा भी तो नहीं हो सकती थी। इसी प्रकार प्रसिद्ध नौ उपनिषदों में पाँच उपनिषदों को, जिस अर्थ में बाइबिल ने सृष्टिकर्ता ईश्वर की महिमा कही, उस अर्थ में अनीश्वरवादी कह सकते हैं। जो ग्रंथ ईश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में मानते हैं उनमें एक प्रसिद्ध वाक्य आता है, ‘एकोअहं बहुस्यामि’। ईश्वर के मन में इच्छा उत्पन्न हुई कि मैं एक हूँ, अनेक बनूँ और इसलिए अपनी ही अनेक अनुकृतियाँ बनाई—ऐसा अर्थ उसमें लगाते हैं। पर एक से अनेक बनने का तो जीव का गुण है। यही नहीं, यह तो पदार्थ मात्र की भी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। भारतीय दर्शन के अनुसार यह सृष्टि किसी की रचना नहीं है, जैसा कि ईसाई या मुसलिम विश्वास है। यदि ईश्वर ने यह ब्रम्हाण्ड रचा तो ईश्वर था ही, अर्थात कुछ सृष्टि थी। इसलिए ईश्वर स्वयं ही भौतिक तत्व अथवा पदार्थ था, ऐसा कहना पड़ेगा। (उसे किसने बनाया?) इसी से कहा कि यह अखिल ब्रम्हांड केवल उसकी अभिव्यक्ति अथवा प्रकटीकरण (manifestation) है, रचना अथवा निर्मित (creation) नहीं। उसी प्रकार जैसे आभूषण स्वर्ण का आकार विशेष में प्रकटीकरण मात्र है। इसी रूप में भारतीय दर्शन ने सृष्टि को देखा। धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह विचार कि जीवन इस पृथ्वी पर स्वाभाविक और अनिवार्य रासायनिक- भौतिक प्रक्रिया द्वारा बिना किसी चमत्कारी शक्ति के उत्पन्न हुआ, इसलिए प्रतिकूल पड़ता है कि वे जीव का संबंध आत्मा से जोड़ते हैं। उनका विश्वास है कि बिना आत्मा के जीवन संभव नहीं और इसलिए कोई परमात्मा है जिसमें अंततोगत्वा सब आत्माऍं विलीन हो जाती हैं। पर जड़ प्रकृति का स्वाभाविक सौंदर्य, वह स्फटिक (crystal), वह हिमालय की बर्फानी चोटियों पर स्वर्ण-किरीट रखता सूर्य, वह उष:काल की लालिमा या कन्याकुमारी का तीन महासागरों के संधि-स्थल का सूर्यास्त, अथवा झील के तरंगित जल पर खेलती प्रकाश-रश्मियाँ- ये सब कीड़े-मकोडों से या कैंसर की फफूँद से या अमरबेल या किसी क्षुद्र जानवर से निम्न स्तर की हैं क्या? पेड़-पौधे और उनमें उगे कुकुरमुत्ते में आत्मा है क्या ? एक बात जो मुसलमान या ईसाई नहीं मानते। सृष्टि में इस प्रकार के जीवित तथा जड़ वस्तुओं में भेदभाव भला क्यों ? शायद हम सोचें, सभी जीवधारियों का अंत होता है। ‘केहि जग काल न खाय।‘ वनस्पति और जंतु सभी मृत्यु को प्राप्त होते हैं और उनका शरीर नष्ट हो जाता है। परंतु यदि एक-कोशिक जीव बड़ा होकर अपने ही प्रकार के दो या अधिक जीवों में बँट जाता है तो इस घटना को पहले जीव की मृत्यु कहेंगे क्या ? वैसे तो संतति भी माता-पिता के जीवन का विस्तार ही है, उनका जीवनांश एक नए शरीर में प्रवेश करता है। श्रेणी:ज्योतिष श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:दर्शन.

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जुलूस कहां जा रहा है

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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गद्य

सामान्यत: मनुष्य की बोलने या लिखने पढ़ने की छंदरहित साधारण व्यवहार की भाषा को गद्य (prose) कहा जाता है। इसमें केवल आंशिक सत्य है क्योंकि इसमें गद्यकार के रचनात्मक बोध की अवहेलना है। साधारण व्यवहार की भाषा भी गद्य तभी कही जा सकती है जब यह व्यवस्थित और स्पष्ट हो। रचनात्मक प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए गद्य को मनुष्य की साधारण किंतु व्यस्थित भाषा या उसकी विशिष्ट अभिव्यक्ति कहना अधिक समीचीन होगा। .

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ग़ज़ल

यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। .

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गुरुवार

गुरुवार सप्ताह का पाँचवा दिन है। इसे बृहस्पतिवार, वीरवार या बीफ़े भी कहा जाता है। यह बुधवार के बाद और शुक्रवार से पहले आता है। मुसलमान इसे ज़ुमेरात कहते हैं क्योंकि यह जुम्मा (शुक्रवार) से एक दिन पहले आता है। .

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गुजरात

गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०७७ किलोमीटर है। गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। .

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गुजरात विश्वविद्यालय

गुजरात विश्वविद्यालय राज्यव्यापी संस्थान है जिससे भारत के गुजरात राज्य के कई प्रतिष्ठित कॉलेज सम्बद्ध (affiliated) हैं। इसे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं मान्यता परिषद (एनएएसी) (National Assessment and Accreditation Council (NAAC)) द्वारा बी++ रैंकिंग दी गई है। यह भारत के सबसे श्रेष्ठ और बहुमुखी उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक है। इसके अलावा, यह अपने कैंपस (परिसर) के 2,24,000 से अधिक छात्रों और विभिन्न संबद्ध कॉलेजों के साथ उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी विश्वविद्यालय प्रणालियों में से एक है। यह विशेष रूप से अपनी चिकित्सा, इंजीनियरिंग व टैक्नोलॉजी, फार्मेसी, वाणिज्य और प्रबंधन कॉलेजों के लिए प्रसिद्ध है। विश्वविद्यालय पोर्ट मैनेजमैंट, नैनो प्रौद्योगिकी, टिशु कल्चर में क्षेत्रीय/विशेष कार्यक्रम चलाता है। .

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गौरा बरहज

गौरा बरहज उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद का एक नगर है। यह घाघरा नदी (सरयू) के तट पर स्थित है। यहाँ का 'सोना मंदिर' प्रसिद्ध है। बरहज प्रसिद्ध गांधीवादी सन्त बाबा राघवदास की कर्मभूमि रही है। बरहज में चार महान तीर्थों का समावेश है जो "बरहज" नाम में भी अपना बोध करा रहे हैं, ब .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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गीत

स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है। गीत, सहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। इसमें एक मुखड़ा तथा कुछ अंतरे होते हैं। प्रत्येक अंतरे के बाद मुखड़े को दोहराया जाता है। गीत को गाया भी जाता है। .

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आत्मकथा

आत्मकथा हिंदी गद्य की एक विधा है जिसमें लेखक अपनी ही कथा स्मृतियों के आधार पर लिखता है। आत्मकथा में निष्पक्षता जरूरी है। इसे काल्पनिक बातों और घटनाओं से बचाना भी जरूरी है और रोचकता भी बनाए रखने की जरूरी है। .

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आग कुछ नहीं बोलती

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कहानी

कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्‍चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .

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काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (आम तौर पर बी.एच.यू.) वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक १६, सन् १९१५) महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विधालय की स्थापना मे मदन मोहन मालवीय जी का योगदान सिर्फ सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप मे था,महाराजा दरभंगा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान ले कर की ।इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। विश्वविद्यालय को "राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान" का दर्ज़ा प्राप्त है। संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (१३०० एकड़) वाराणसी में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी। मुख्य परिसर में ६ संस्थान्, १४ संकाय और लगभग १४० विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (२७०० एकड़) पर स्थित है। ७५ छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय है जिसमे ३०,००० से ज्यादा छात्र अध्यनरत हैं जिनमे लगभग ३४ देशों से आये हुए छात्र भी शामिल हैं। इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुक-डिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी.

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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कवि

कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) .

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कंधे पर सूरज

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अपने लोग

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उपन्यास

उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। .

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उपन्यासकार

उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.

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छायावाद का रचनालोक

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१५ अगस्त

15 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 227वॉ (लीप वर्ष मे 228 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 138 दिन बाकी है। .

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१९२४

1924 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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