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यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान के बीच अंतर

यक्ष्मा vs. शरीरक्रिया विज्ञान

यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी (tubercle bacillus का लघु रूप) एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरिया, आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम तपेदिक के विभिन्न प्रकारों की वजह से होती है। क्षय रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह हवा के माध्यम से तब फैलता है, जब वे लोग जो सक्रिय टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं, खांसी, छींक, या किसी अन्य प्रकार से हवा के माध्यम से अपना लार संचारित कर देते हैं। ज्यादातर संक्रमण स्पर्शोन्मुख और भीतरी होते हैं, लेकिन दस में से एक भीतरी संक्रमण, अंततः सक्रिय रोग में बदल जाते हैं, जिनको अगर बिना उपचार किये छोड़ दिया जाये तो ऐसे संक्रमित लोगों में से 50% से अधिक की मृत्यु हो जाती है। सक्रिय टीबी संक्रमण के आदर्श लक्षण खून-वाली थूक के साथ पुरानी खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन घटना हैं (बाद का यह शब्द ही पहले इसे "खा जाने वाला/यक्ष्मा" कहा जाने के लिये जिम्मेदार है)। अन्य अंगों का संक्रमण, लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रस्तुत करता है। सक्रिय टीबी का निदान रेडियोलोजी, (आम तौर पर छाती का एक्स-रे) के साथ-साथ माइक्रोस्कोपिक जांच तथा शरीर के तरलों की माइक्रोबायोलॉजिकल कल्चर पर निर्भर करता है। भीतरी या छिपी टीबी का निदान ट्यूबरक्यूलाइन त्वचा परीक्षण (TST) और/या रक्त परीक्षणों पर निर्भर करता है। उपचार मुश्किल है और इसके लिये, समय की एक लंबी अवधि में कई एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से उपचार की आवश्यकता पड़ती है। यदि आवश्यक हो तो सामाजिक संपर्कों की भी जांच और उपचार किया जाता है। दवाओं के प्रतिरोधी तपेदिक (MDR-TB) संक्रमणों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बढ़ती हुई समस्या है। रोकथाम जांच कार्यक्रमों और बेसिलस काल्मेट-गुएरिन बैक्सीन द्वारा टीकाकरण पर निर्भर करती है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया की आबादी का एक तिहाई एम.तपेदिक, से संक्रमित है, नये संक्रमण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की दर से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, 2007 में विश्व में, 13.7 मिलियन जटिल सक्रिय मामले थे, जबकि 2010 में लगभग 8.8 मिलियन नये मामले और 1.5 मिलियन संबंधित मौतें हुई जो कि अधिकतर विकासशील देशों में हुई थीं। 2006 के बाद से तपेदिक मामलों की कुल संख्या कम हुई है और 2002 के बाद से नये मामलों में कमी आई है। तपेदिक का वितरण दुनिया भर में एक समान नहीं है; कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में जनसंख्या का 80% ट्यूबरक्यूलाइन परीक्षणों में सकारात्मक पायी गयी, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी का 5-10% परीक्षणों के प्रति सकारात्मक रहा है। प्रतिरक्षा में समझौते के कारण, विकासशील दुनिया के अधिक लोग तपेदिक से पीड़ित होते हैं, जो कि मुख्य रूप से HIV संक्रमण की उच्च दर और उसके एड्स में विकास के कारण होता है। . शरीरक्रियाविज्ञान या कार्यिकी (Physiology/फ़िज़ियॉलोजी) के अंतर्गत प्राणियों से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन और उनका वर्गीकरण किया जाता है, साथ ही घटनाओं का अनुक्रम और सापेक्षिक महत्व के साथ प्रत्येक कार्य के उपयुक्त अंगनिर्धारण और उन अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे प्रत्येक क्रिया निर्धारित होती है। शरीरक्रियाविज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें शरीर में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मनुष्य या किसी अन्य प्राणी/पादप के शरीर में मौजूद भिन्न-भिन्न अंगों एवं तन्त्रों (Systems) के कार्यों और उन कार्यों के होने के कारणों के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित चिकित्सा विज्ञान के नियमों का भी ज्ञान दिया जाता है। उदाहरण के लिए कान सुनने का कार्य करते है और आंखें देखने का कार्य करती हैं लेकिन शरीर-क्रिया विज्ञान सुनने और देखने के सम्बन्ध में यह ज्ञान कराती है कि ध्वनि कान के पर्दे पर किस प्रकार पहुँचती है और प्रकाश की किरणें आंखों के लेंसों पर पड़ते हुए किस प्रकार वस्तु की छवि मस्तिष्क तक पहुँचती है। इसी प्रकार, मनुष्य जो भोजन करता है, उसका पाचन किस प्रकार होता है, पाचन के अन्त में उसका आंतों की भित्तियों से अवशोषण किस प्रकार होता है, आदि। .

यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान के बीच समानता

यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): चेचक

चेचक

यह मनुष्य तीव्र रक्तश्राव वाली चेचक से पीडित है। चेचक (शीतला, बड़ी माता, small pox) यह रोग अत्यंत प्राचीन है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। मिस्र में १,२०० वर्ष ईसा पूर्व की एक ममी (mummy) पाई गई थी, जिसकी त्वचा पर चेचक के समान विस्फोट उपस्थित थे। विद्वानों ने उसका चेचेक माना। चीन में भी ईसा के कई शताब्दी पूर्व इस रोग का वर्णन पाया जाता है। छठी शताब्दी में यह रोग यूरोप में पहुँचा और १६वीं शताब्दी में स्पेन निवासियों द्वारा अमरीका में पहुँचाया गया। सन्‌ १७१८ में यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले मौंटाग्यू ने पहली बार इसकी सुई (inoculation) प्रचलित की और सन्‌ १७९६ में जेनर ने इसके टीके का आविष्कार किया। चेचक विषाणु जनित रोग है, इसका प्रसार केवल मनुष्यों में होता है, इसके लिए दो विषाणु उत्तरदायी माने जाते है वायरोला मेजर और वायरोला माइनर. इस रोग के विषाणु त्वचा की लघु रक्त वाहिका, मुंह, गले में असर दिखाते है, मेजर विषाणु ज्यादा मारक होता है, इसकी म्रत्यु दर ३०-३५% रहती है, इसके चलते ही चेहरे पर दाग, अंधापन जैसी समस्या पैदा होती रही है, माइनर विषाणु से मौत बहुत कम होती है | यह रोग अत्यंत संक्रामक है। जब तब रोग की महामारी फैला करती है। कोई भी जाति और आयु इससे नहीं बची है। टीके के आविष्कार से पूर्व इस रोग से बहुत अधिक मृत्यु होती थी, यह रोग दस हजार इसा पूर्व से मानव जाति को पीड़ित कर रहा है, १८ वी सदी में हर साल युरोप में ही इस से ४ लाख लोग मरते थे, यह १/३ अंधेपन के मामले हेतु भी उत्तरदायी था, कुल संक्रमण में से २०-६०% तथा बच्चो में ८०% की म्रत्यु दर होती थी|बीसवी सदी में भी इस से ३०० से ५०० मिलियन मौते हुई मानी गयी है, १९५० के शुरू में ही इसके ५० मिलियन मामले होते थे, १९६७ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके चलते प्रति वर्ष विश्व भर में २० लाख मौते होनी मानी थी, पूरी १९ वी तथा २० वी सदी में चले टीकाकरण अभियानों के चलते दिसम्बर 1979 में इस रोग का पूर्ण उन्मूलन हुआ, आज तक के इतिहास में केवल यही ऐसा संक्रामक रोग है जिसका पूर्ण उन्मूलन हुआ है | .

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यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान के बीच तुलना

यक्ष्मा 40 संबंध है और शरीरक्रिया विज्ञान 31 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 1.41% है = 1 / (40 + 31)।

संदर्भ

यह लेख यक्ष्मा और शरीरक्रिया विज्ञान के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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