म्यूनिख और लिथो छपाई
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म्यूनिख और लिथो छपाई के बीच अंतर
म्यूनिख vs. लिथो छपाई
म्यूनिख म्यूनिख (अन्ग्रेजी: Munich, जर्मनः München) जर्मनी का तीसरा सबसे बड़ा नगर है। यह जर्मनी के बवेरिया राज्य की राजधानी है। इसकी जनसंख्या लगभग १३ लाख है। यह नदी इसार पर स्थित है (बावेरिया के एल्प्स पहाड़ों के उत्तर में)। सन् ११५८ से पहले का कोई भी दस्तावेज ना मिलने के कारण यह मान लिया गया है की इस नगर की स्थापना भी इसी सन् में हुई होगी। कई सालों से म्यूनिख जर्मनी का सबसे अच्छा शहर माना जा रहा है। शहर की मूलभूत संरचना अच्छी है और वहां के जीवन का स्तर भी बढ़िया है। बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियों ने शहर का वैभव और ख्याति बढ़ाई है। . '''म्युनिक का मानचित्र''': लिथो छपाई का प्रस्तर तथा उसकी दर्पण छबि (मिरर इमेज) म्युनिक में मानचित्रों की छपाई के लिये प्रयुक्त एक लिथो प्रेस तितलियाँ (1923) लिथो छपाई (Lithography) पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा डिज़ाइन बनाकर, उसके द्वारा छाप उतारने की कला है। लिथोग्रैफी शब्द यूनानी भाषा के लिथो (पत्थर) एवं ग्रैफी (लिखना) शब्दों के मिलने से बना है। पत्थर के स्थान पर यदि जस्ता, ऐलुमिनियम इत्यादि पर उपर्युक्त विधि से लेख लिखकर या डिज़ाइन बनाकर छापा जाए तो उसे भी लिथोग्रैफी कहेंगे। लिथोछपाई या पत्थरछपाई को सतह या समतल लिखावट (Planographic) प्रक्रम (process) भी कहते हैं। इसमें मुद्रणीय और अमुद्रणीय क्षेत्र एक ही तल पर होते हैं, परंतु डिज़ाइन चिकनी स्याही से बने होने के कारण और बाकी सतह नम रखी जाने के कारण, स्याही-रोलर स्याही को स्याही ग्राही डिज़ाइन पर ही निक्षिप्त कर पाता है। अमुद्रणीय क्षेत्र की नमी, या आर्द्रता, स्याही को प्रतिकर्षित करती है। इस प्रकार लिथोछपाई चिकनाई और पानी के विद्वेष सिद्धांत पर आधारित है। इस प्रक्रम का आविष्कार बेवेरिया में एलॉइस जेनेफ़ेल्डर (Alois Senefelder) ने 6 नवम्बर 1771 ई. को किया था। सौ वर्षों से अधिक काल तक प्रयोग और परख होते रहने के बाद आधुनिक फोटो ऑफ़सेट लिथो छपाई के रूप में उसका विकास हुआ। लिथो छपाई में आरेखन और मुद्रण दोनों की विधियाँ सन्निहित है। समतल लिखावट मुद्रण द्वारा प्रिंटों (prints) को छापने की दो प्रमुख विधियाँ हैं: स्वलिथोछपाई (autolithography) और ऑफ़सेट फ़ोटोलिथोछपाई। स्वलिथोछपाई नक्शानवीस (draftsman), या कलाकार द्वारा प्रस्तर, धातु की प्लेट, या अंतरण कागज (transfer paper) पर अंकित मूल लेखन, या आरेखन से आरंभ होता है। डिज़ाइन में सर्जक के मन की छाप और कलाकार के व्यक्तिगत स्पर्श की छाप होती है। इस शिल्प के व्यापारिक पक्ष के अनेक विभाग हैं और ऐसे शिल्पी कम होते हैं जो अपने विभाग के अलावा दूसरे विभाग की भी जानकारी रखते हों। अत: सहज कलात्मक प्रेरणाएँ व्यर्थ जाती हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि ऑफसेट लिथोछपाई में कलापक्ष का अभाव होता है, परंतु यह मान लेने की बात है कि इसमें कलापक्ष क्रमश: गौण हो रहा है, खास कर उस स्थिति में जबकि फोटोग्राफी स्वलिथोछपाई का स्थान ले रही है। लिथो छपाई का आरंभ पत्थर से छापने के रूप में हुआ और आज भी उसका महत्व कम नहीं हुआ है, परंतु फ़ोटोग्रॉफसेट को, जो छपाई का परोक्ष प्रक्रम है और जिसमें शीघ्रता, सस्तापन और यथार्थता के लिए छपाई के काम में प्रकाशयांत्रिक (photomechanical) विधियों का उपयोग होता है, त्यागा नहीं जा सकता। .
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