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मेधातिथि और विवाह

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मेधातिथि और विवाह के बीच अंतर

मेधातिथि vs. विवाह

मेधातिथि मनुस्मृति के प्राचीनतम भाष्यकार हैं। उन्होने मनुस्मृति पर 'मनुभाष्य' नामक एक विशद टीका लिखी है। अपने ग्रंथ में ये कुमारिल का उल्लेख करते हैं अत: इनका जीवनकाल सातवीं शताब्दी क बाद का होना चाहिए। मनुस्मृति पर लिखी मिताक्षरा (१०७६ से ११२१) में इनका उल्लेख है। अत: डॉ० गंगानाथ झा के अनुसार इनका काल नवीं शताब्दी ठहरता है। डॉ० बुहलर इनको कश्मीर का तथा जॉली दक्षिण का मानते हैं। केवल इतना ही इनके ग्रंथ के आधार पर स्वीकार किया जा सकता है कि ये कश्मीर की बोली तथा कश्मीर और पंजाब के रीति रिवाजों से पूर्णत: परिचित थे। इनका एक अन्य ग्रंथ 'स्मृति विवेक' भी था। . हिन्दू विवाह का सांकेतिक चित्रण विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। .

मेधातिथि और विवाह के बीच समानता

मेधातिथि और विवाह आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): मनुस्मृति

मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वायंभुव मनु के मूलशास्त्र का आश्रय कर भृगु ने उस स्मृति का उपवृहण किया था, जो प्रचलित मनुस्मृति के नाम से प्रसिद्ध है। इस 'भार्गवीया मनुस्मृति' की तरह 'नारदीया मनुस्मृति' भी प्रचलित है। मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है। इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है। मनु महाराज के जीवन और उनके रचनाकाल के विषय में इतिहास-पुराण स्पष्ट नहीं हैं। तथापि सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है। मनुस्मृति में चार वर्णों का व्याख्यान मिलता है वहीं पर शूद्रों को अति नीच का दर्जा दिया गया और शूद्रों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया गया मनुस्मृति के आधार पर ही शूद्रों को तरह तरह की यातनाएं मनुवादियों द्वारा दी जाने लगी जो कि इसकी थोड़ी सी झलक फिल्म तीसरी आजादी में भी दिखाई गई है आगे चलकर बाबासाहेब आंबेडकर ने सर्वजन हिताय संविधान का निर्माण किया और मनु स्मृति में आग लगा दी गई जो कि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुई और छुआछूत ऊंच-नीच का आडंबर समाप्त हो गया। .

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मेधातिथि और विवाह के बीच तुलना

मेधातिथि 6 संबंध है और विवाह 17 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 4.35% है = 1 / (6 + 17)।

संदर्भ

यह लेख मेधातिथि और विवाह के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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