मिलावट और वैद्य की शपथ
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मिलावट और वैद्य की शपथ के बीच अंतर
मिलावट vs. वैद्य की शपथ
धनलोलुप और भ्रष्टाचारी व्यवसायियों द्वारा खाद्य पदार्थों में अशुद्ध, सस्ती अथवा अनावश्यक वस्तुओं के मिश्रण को अपमिश्रण या अपद्रव्यीकरण या मिलावट कहते हैं। छोटे-बड़े अनेक खाद्य व्यापारी अधिक लाभ के लोभवश नाना प्रकार की युक्तियों से घटिया वस्तु को बढ़िया बताकर ऊँचे दाम पर बेचने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार का कुत्सित व्यापार समाज के सभी वर्गो में न्यूनाधिक मात्रा में व्याप्त है, जिससे जनता को उचित मूल्य देने पर भी घटिया खाद्य सामग्री मिलती है और उससे स्वास्थ्य की हानि भी होती है। . भारत में वैद्य १५वीं शताब्दी ईसापूर्व से एक शपथ लेते रहे हैं जिसमें मांसभक्षण न करना, मद्यपान न करना और मिलावट न करना सम्मिलित है। इसके अलावा वैद्य को शपथ लेनी होती थी कि वे रोगियों का अहित नहीं करेंगे और अपने जीवन का खतरा लेकर भी उनकी देखभाल करेंगे। इस सम्बन्ध में चरकसंहिता में कुछ निर्देश और प्रतिज्ञाएँ दी गयीं हैं। चरक ने लिखा है कि विद्यार्थी को चाहिये कि स्नान-ध्यान करके अपने शरीर को पवित्र करे, यज्ञ द्वा देवताओं को प्रसन्न करे, फिर गुरु का आशीर्वाद लेकर यह प्रतिज्ञा करे- (चरकसंहिता, विमानस्थान, अध्याय ८, अनुच्छेद १३) चरकसंहिता में इन प्रतिज्ञाओं की सूची बहुत विस्तृत है, यह इस प्रकार है- उक्त शपथ तथा हिपोक्रीत्ज़ की शपथ में समानता ध्यान देने योग्य है। .
मिलावट और वैद्य की शपथ के बीच समानता
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संदर्भ
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