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मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त के बीच अंतर

मनोविज्ञान vs. स्नेह सिद्धान्त

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। . स्नेह सिद्धान्त में जॉन बाल्बी ने मनुष्य की विशेष अन्यों से मज़बूत स्नेह बंधन बनाने की प्रवृत्ति को वैचारिक रूप दिया, तथा विरह से उत्पन्न व्यक्तित्व की समस्याओं व संवेगात्मक पीड़ा के साथ-साथ चिंता, गुस्से, उदासी तथा अलगाव की व्याख्या की। बच्चे के जन्म के समय उसके चारों ओर के वातावरण में माँ की अहम् भूमिका है। बच्चे का पहला सम्बन्ध माँ से आरम्भ होता है। स्मिथ कहते हैं कि कुदरत ने इस रिश्ते को मज़बूत बनाया है, तो समाज, धर्म और साहित्य ने माँ और बच्चे के स्नेह को पवित्रता प्रदान की। इस लेख में, समाजशास्त्रियों की मानव समाज में प्रेममूलक सम्बन्धों की दो अवधारणाओं की चर्चा के बाद, स्नेह की वैकल्पिक सोच के संदभ में, लारेन्ज़ के हंस, बतख आदि पक्षियों के चूज़ों, तथा हार्लो के बंदर के बच्चों, पर अध्ययनों का संक्षिप्त वर्णन देकर, बाल्बी के स्नेह सिद्धान्त को रखा गया है। और अंत में स्नेह सिद्धान्त के अन्य क्षेत्रों में बढ़ते दायरे पर नज़र डाली गयी है। .

मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त के बीच समानता

मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): स्मृति, व्यवहार, अधिगम

स्मृति

स्मृति हिन्दू धर्म के उन धर्मग्रन्थों का समूह है जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। इनमें वेद नहीं आते। स्मृति का शाब्दिक अर्थ है - "याद किया हुआ"। यद्यपि स्मृति को वेदों से नीचे का दर्ज़ा हासिल है लेकिन वे (रामायण, महाभारत, गीता, पुराण) अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़ी जाती हैं, क्योंकि वेदों को समझना बहुत कठिन है और स्मृतियों में आसान कहानियाँ और नैतिक उपदेश हैं। इसकी सीमा में विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों—गीता, महाभारत, विष्णुसहस्रनाम की भी गणना की जाने लगी। शंकराचार्य ने इन सभी ग्रन्थों को स्मृति ही माना है। मनु ने श्रुति तथा स्मृति महत्ता को समान माना है। गौतम ऋषि ने भी यही कहा है कि ‘वेदो धर्ममूल तद्धिदां च स्मृतिशीले'। हरदत्त ने गौतम की व्खाख्या करते हुए कहा कि स्मृति से अभिप्राय है मनुस्मृति से। परन्तु उनकी यह व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती क्योंकि स्मृति और शील इन शब्दों का प्रयोग स्रोत के रूप में किया है, किसी विशिष्ट स्मृति ग्रन्थ या शील के लिए नहीं। स्मृति से अभिप्राय है वेदविदों की स्मरण शक्ति में पड़ी उन रूढ़ि और परम्पराओं से जिनका उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं किया गया है तथा शील से अभिप्राय है उन विद्वानों के व्यवहार तथा आचार में उभरते प्रमाणों से। फिर भी आपस्तम्ब ने अपने धर्म-सूत्र के प्रारम्भ में ही कहा है ‘धर्मज्ञसमयः प्रमाणं वेदाश्च’। स्मृतियों की रचना वेदों की रचना के बाद लगभग ५०० ईसा पूर्व हुआ। छठी शताब्दी ई.पू.

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व्यवहार

किसी के साथ किस तरह आप रहते हैं वह व्यव्हार कहलाता है। .

मनोविज्ञान और व्यवहार · व्यवहार और स्नेह सिद्धान्त · और देखें »

अधिगम

सीखना या अधिगम (जर्मन: Lernen, learning) एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाऐं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। उदाहरणार्थ - छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जानेपर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो जाता है। इसीविचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त के बीच तुलना

मनोविज्ञान 54 संबंध है और स्नेह सिद्धान्त 30 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 3.57% है = 3 / (54 + 30)।

संदर्भ

यह लेख मनोविज्ञान और स्नेह सिद्धान्त के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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