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मध्य प्रदेश के शहरों की सूची

सूची मध्य प्रदेश के शहरों की सूची

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46 संबंधों: टीकमगढ़, झाबुआ, दतिया, दमोह, देवास, धार, नरसिंहपुर, नीमच, पन्ना, बड़वानी, बालाघाट, बुरहानपुर, बैतूल, भिण्ड, भोपाल, मंदसौर, मुरैना, रतलाम, रायसेन, राजगढ़, रीवा, शहडोल ज़िला, शाजापुर, शिवपुरी, श्योपुर, सतना, सागर, सिवनी, सिंगरौली, सीधी, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर, विदिशा, खण्डवा, खरगौन, गुना, ग्वालियर, इन्दौर, कटनी, अनूपपुर ज़िला, अशोकनगर, उमरिया ज़िला, उज्जैन, छतरपुर, छिंदवाड़ा

टीकमगढ़

टीकमगढ़जिला मुख्यालय टीकमगढ़ है। शहर का मूल नाम 'टेहरी' था, जो अब पुरानी टेहरी के नाम से जाना जाता है। 1783 ई विक्रमजीत (1776 - 1817 CE के शासक) ने ओरछा से अपनी राजधानी टेहरी जिला टीकमगढ़ में स्थानांतरित कर दी थी। टीकमगढ़ टीकम (श्री कृष्ण का एक नाम)से टीकमगढ़ पड़ा। टीकमगढ़ जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का एक हिस्सा है। यह और की एक सहायक नदी के बीच बुंदेलखंड पठार पर है। इस जिले के अंतर्गत क्षेत्र ओरछा के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था। ओरछा राज्य रुद्र प्रताप द्वारा 1501 में स्थापित किया गया था। विलय के बाद, यह 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया। 1 नवम्बर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1956 यह नए नक्काशीदार मध्य प्रदेश राज्य के एक जिले में बन गया। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर गढ़-कुंडार पढ़ा है। गढ कुण्डार का प्राचीन नाम गढ कुरार है। गढ़-कुंडार किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक भी है। गढ़कुंडार किले का सम्बन्ध चंदेल और खंगार नरेशों से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है। वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी। छोटी देवी जी(नन्ही भुवानी) टीकमगढ़। शहर के बीचों बीच श्री श्री 1008 श्री जानकी रमण मंदिर(श्री ठाकुर गोविंद जू विराजमान) छोटी देवी के अंदर टीकमगढ़ में स्थित हैं। यह मंदिर टीकमगढ़ में पपौरा चौराहा के समीप बुख़ारिया जी की गली में है। छोटी देवी मंदिर में प्रत्येक नवरात्रि में नो दिनों के लिये भव्य मेला लगाया जाता हैं। .

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झाबुआ

झाबुआ मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। समुद्र की सतह से इसकी ऊँचाई १,१७१ फुट है। यह बहादुरसागर नामक झील के किनारे स्थित है। झील के उत्तरी किनारे पर स्थित राजा का महल मिट्टी की दीवार से घिरा है। झाबुआ भूतपूर्व मध्य भारत में एक राज्य (रियासत) भी था। इसका क्षेत्रफल १,३३६ वर्ग मील था। अनस यहाँ की प्रमुख नदी है। माही नदी के आसपास के भाग में कृषि होती थी। यहाँ का 'घाटा' कहलानेवाला पर्वतीय भाग अनुपजाऊ है। मक्का, धान, चना, गेहूँ, ज्वार, कपास यहाँ की प्रमुख उपज हैं। .

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दतिया

इतिहास महाभारत कालीन दंतवक्र के नाम के आधार पर दतिया नाम हुआ। जिसके प्रमाण स्वरूप दतिया पीताम्बरा पीठ में स्थित वनखंडेश्वर मंदिर महाभारत कालीन हैं। पीताम्बरा पीठ का मुख्य द्वार दतिया भारत के मध्य प्रदेशके बुंदेलखंड प्रांत का एक शहर है। ग्वालियर के निकट उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश का लोकप्रिय तीर्थस्थल है। पहले यह मध्यप्रेदश राज्य में देशी रियासत थी पर अब यह स्वतंत्र जिला है। यह उत्तर में भिंड, एवं जालौन, दक्षिण में शिवपुरी एवं झाँसी, पूर्व में समथर एवं झाँसी तथा पश्चिम में ग्वालियर से घिरा है। सिंध एवं पहूज जिले की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ की अधिकांश मिट्टी अनुपजाऊ है। दलहन, गेहूँ, ज्वार, कपास आदि की यहाँ कृषि की जाती है। दतिया नगर झाँसी से 16 मील दूर, झाँसी-ग्वालियर सड़क पर स्थित है। पुराने समय से ही यहाँ के क्षत्रिय प्रसिद्ध रहे हैं। यहाँ कई प्राचीन महल, डाक बँगला, अस्पताल, कारागृह एवं अनेक शिक्षा संस्थाएँ हैं। दतिया का पुराना कस्बा चारों ओर से पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है, जिसमें बहुत से महल और उद्यान बने हुए हैं। 17वीं शताब्दी में बना बीर सिंह महल उत्तर भारत के सबसे बेहतरीन इमारतों में माना जाता है। यहां का पीताम्बरा देवी शक्तिपीठ भारत के श्रेष्ठतम और महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में एक है। प्रतिवर्ष यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को आवागमन लगा रहता है। .

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दमोह

दमोह भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। यह सागर संभाग का एक जिला और बुंदेलखंड अंचल का शहर है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के राजा नल की पत्नी दमयंती के नाम पर ही इसका नाम दमोह पड़ा। अकबर के साम्राज्य में यह मालवा सूबे का हिस्सा था। दमोह के अधिकतर प्राचीन मंदिरों को मुग़लों ने नष्ट कर दिया तथा इनकी सामग्री एक क़िले के निर्माण में प्रयुक्त की गई। इस नगर में शिव, पार्वती एवं विष्णु की मूर्तियों सहित कई प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। दमोह में दो पुरानी मस्जिदें, कई घाट और जलाशय हैं। दमोह का 14 वीं सदी में मुसलमानों के प्रभाव से महत्त्व बढ़ा और यह मराठा प्रशासकों का केन्द्र भी रहा। ऐतिहासिक नगर दमोह के आस-पास का इलाका पुरातत्त्व की दृष्टि से समृद्ध है, जहाँ छित्ता एवं रोंड जैसे प्राचीन स्थल हैं।जिले को जानिये जिले का प्रोफाइल जिले का मेप कलेक्टर के कार्यकाल जिला पंचायत एन.आई.सी.जिला केंद्र मायसेम सीमेंट रेलवे समय सारणी हमसे संपर्क करें सिटीजन ऑनलाइन आवेंदन/ एस.एम.एस.

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देवास

देवास भारत के मध्य प्रदेश का एक शहर है। यह इन्दौर से लगभग ३५ किमी उत्तर में स्थित है। यहाँ की माता की टेकरी पर चामुण्डा माता और तुलजा भवानी माता के प्रसिद्ध मन्दिर हैं जिसके दर्शन के लिये लोग दूर-दूर से आते हैं। देवास एक औद्योगिक नगर है। लोक मान्यता है कि यहाँ देवी माँ के दो स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं। इन दोनों स्वरूपों को छोटी माँ और बड़ी माँ के नाम से जाना जाता है। बड़ी माँ को तुलजा भवानी और छोटी माँ को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है। यहाँ के पुजारी बताते हैं कि बड़ी माँ और छोटी माँ के मध्य बहन का रिश्ता था। एक बार दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद से क्षुब्द दोनों ही माताएँ अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी माँ पाताल में समाने लगीं और छोटी माँ अपने स्थान से उठ खड़ी हो गईं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं। माताओं को कुपित देख माताओं के साथी (माना जाता है कि बजरंगबली माता का ध्वज लेकर आगे और भेरूबाबा माँ का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं) हनुमानजी और भेरूबाबा ने उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की। इस समय तक बड़ी माँ का आधा धड़ पाताल में समा चुका था। वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गईं। वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं। वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गईं। इस तरह आज भी माताएँ अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं। यहाँ के लोगों का मानना है कि माताओं की ये मूर्तियाँ स्वयंभू हैं और जागृत स्वरूप में हैं। सच्चे मन से यहाँ जो भी मन्नत माँगी जाती है, हमेशा पूरी होती है। इसके साथ ही देवास के संबंध में एक और लोक मान्यता यह है कि यह पहला ऐसा शहर है, जहाँ दो वंश राज करते थे- पहला होलकर राजवंश और दूसरा पँवार राजवंश। बड़ी माँ तुलजा भवानी देवी होलकर वंश की कुलदेवी हैं और छोटी माँ चामुण्डा देवी पँवार वंश की कुलदेवी। टेकरी में दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ी और छोटी माँ के साथ-साथ भेरूबाबा के दर्शन अनिवार्य मानते हैं। नवरात्र के दिन यहाँ दिन-रात लोगों का ताँता लगा रहता है। इन दिनों यहाँ माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। .

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धार

प्राचीन काल में धार नगरी के नाम से विख्यात मध्य प्रदेश के इस शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह मध्यकालीन शहर पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। बेरन पहाड़ियों से घिर इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। धार के प्राचीन शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला और भोजशाला मन्‍दीर की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है। साथ ही इसके आसपास अनेक ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को रिझाने में कामयाब होते हैं। धार जिला तीन भौगोलिक खंडों में फैला हुआ है जो क्रमशः उत्तर में मालवा, विंध्यांचल रेंज मध्य क्षेत्र में तथा दक्षिण में नर्मदा घाटी। हालांकि घाटी पुनः दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों द्वारा बंद होती है। धार जिला भारत के सांस्कृतिक मानचित्र में प्रारंभ से ही रहा है। लोगों ने अपने आपको ललित कला, चित्रकारी, नक्काशी, संगीत व नृत्य इत्यादि में संलिप्त रखा था। इस संपूर्ण जिले में बहुत से धार्मिक स्थल हैं, जहां वार्षिक मेलों के आयोजन में हजारों लोग एकत्र होते हैं। धार जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पहले यह धार नगरी के नाम से जाना जाता था। 1857 स्वतंत्रता की लड़ाई में भी धार महत्वपूर्ण केंद्र था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने धार के किले पर अपना कब्जा कर लिया था। दूसरी ओर बाग भी राष्ट्रीय महत्व का स्थान है। बाग नदी के किनारे स्थित गुफाएं ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां पर 5वीं और 6वीं शताब्दी की चित्रकला भी है। यहां भारतीय चित्रकला का अनूठा नजारा देखने को मिलता है। यहां की बौद्धकला भारत ही नहीं एशिया में भी प्रसिद्ध है। .

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नरसिंहपुर

नरसिंह पुर मध्य प्रदेश के केन्द्र में स्थित एक शहर है।यह नरसिंहपुर जिला मुख्यालय भी है। मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित नरसिंहपुर 5000 वर्ग किमी.

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नीमच

नीमच मध्य प्रदेश के नीमच जिला का मुख्यालय है। नीमच को 30 जून 1998 में मध्य प्रदेश का स्वतंत्र जिला घोषित किया गया था। प्रारंभ में यह मंदसौर जिले का हिस्सा था। ब्रिटिश शासन के दौरान यहां एक छावनी स्थापित की गई थी। आजादी के बाद छावनी को भारत की पैरा मिल्रिटी सेना की छावनी में परिवर्तित कर दिया गया। वर्तमान में यह सीआरपीएफ अर्थात क्रेन्दीय रिजर्व पुलिस बल के नाम से जाना जाता है। नीमच को सीआरपीएफ की जन्मस्थली माना जाता है। 3879 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जिला सुखानंद महादेव, ऑक्‍टरलोनी इमारत, नीलकंठ महादेव, आंत्री माता मंदिर, जीरन का किला और भादवा माता मंदिर आदि के लिए विख्यात है। मंदसौर के समान यहां भी बड़े पैमाने पर अफीम का उत्पादन होता है। नीमच के दर्शनीय स्थलों में भादवा माता का मंदिर है, जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, काली, स्कन्दमाता और कात्यायनी माता की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर में काले पत्थर से निर्मित विष्णु की प्रतिमा भी है। .

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पन्ना

पन्ना, बेरिल (Be3Al2(SiO3)6) नामक खनिज का एक प्रकार है जो हरे रंग का होता है और जिसे क्रोमियम और कभी-कभी वैनेडियम की मात्रा से पहचाना जाता है।हर्ल्बट, कॉर्नेलियस एस.

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बड़वानी

बड़वानी, मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले का मुख्यालय और नगरपालिका है।यह नगर नर्मदा नदी के बाँए किनारे पर स्थित है। पहले यह बड़वानी रियासत की राजधानी था। यहाँ जाने के लिए केवल सड़क मार्ग से ही जाया जा सकता है। यह एक जैन तीर्थ स्थल भी है। श्रेणी:मध्य प्रदेश के नगर.

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बालाघाट

बालाघाट वैनगंगा नदी की गोद में दक्षिण–पूर्वी मध्यप्रदेश का एक शान्त, सुन्दर शहर। बालाघाट शहर सतपुडा पर्वतमाला के छोर पर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ की त्रिकोणीय सीमा पर बसा है। वैसे तो यह शहर शुद्ध हिन्दी भाषी है, पर यहां कुछ बोलियां भी प्रचलित है। इसके ५०% भाग में जंगल है। यह एक नगरपालिका व बालाघाट जिले का प्रशासकीय मुख्यालय है। माना जाता है की इसे पहले "बूरा" या "बुरहा" के नाम से जाना जाता था और बाद मे इसका नाम बालाघाट पडा परन्तु इस बात का कोई प्रामाणिक स्रोत नही है। .

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बुरहानपुर

बुरहानपुर भारत के मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। बुरहानपुर मध्य प्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे पर स्थित एक नगर है। यह ख़ानदेश की राजधानी था। इसको चौदहवीं शताब्दी में ख़ानदेश के फ़ारूक़ी वंश के सुल्तान मलिक अहमद के पुत्र नसीर द्वारा बसाया गया। .

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बैतूल

बैतूल, मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में बाड़नूर से ५ किमी दूर इटारसी-नागपुर रेलमार्ग पर स्थित नगर है। यहाँ बरतन बनाना, चाँदी का काम, लाख की चूड़ियों का छोटे पैमाने पर काम होता है। .

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भिण्ड

भिण्ड में गौरी सरोवर अपने आप में एक पर्यटन स्थल है। गौरी सरोवर पर बहुत से पार्को को नए रूप से विकसित किया गया हैं। चम्बल सम्भाग - भिंड भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक शहर है। .

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भोपाल

भोपाल भारत देश में मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी है और भोपाल ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है,क्योंकि यहाँ कई छोटे-बड़े ताल हैं। यह शहर अचानक सुर्ख़ियों में तब आ गया जब १९८४ में अमरीकी कंपनी, यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से लगभग बीस हजार लोग मारे गये थे। भोपाल गैस कांड का कुप्रभाव आज तक वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण के अलावा जैविक विकलांगता एवं अन्य रूपों में आज भी जारी है। इस वजह से भोपाल शहर कई आंदोलनों का केंद्र है। भोपाल में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) का एक कारखाना है। हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने अपना दूसरा 'मास्टर कंट्रोल फ़ैसिलटी' स्थापित की है। भोपाल में ही भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भी है जो भारत में वन प्रबंधन का एकमात्र संस्थान है। साथ ही भोपाल उन छह नगरों में से एक है जिनमे २००३ में भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान खोलने का निर्णय लिया गया था तथा वर्ष २०१५ से यह कार्यशील है। इसके अतिरिक्त यहाँ अनेक विश्वविद्यालय जैसे राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय,अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय,मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय,माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भारतीय राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय। इसके अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय संस्थान जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,भारतीय वन प्रबंधन संस्थान,भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान,राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान मानित विश्वविद्यालय भोपाल इंजीनियरिंग महाविद्यालय,गाँधी चिकित्सा महाविद्यालय तथा अनेक शासकीय एवं पब्लिक स्कूल हैं। .

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मंदसौर

सौंधनी स्थित यशोधर्मन का विजय-स्तम्भ मंदसौर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। मंद्सौर का प्राचिन नाम दशपुर था ! पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत को संजोए उत्तरी मध्य प्रदेश का मंदसौर एक ऐतिहासिक जिला है। यह 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। आजादी के पहले यह ग्वालियर रियासत का हिस्सा था। मंदसौर हिन्दू और जैन मंदिरों के लिए खासा लोकप्रिय है। पशुपतिनाथ मंदिर, बाही पारसनाथ जैन मंदिर और गांधी सागर बांध यहां के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं। इस जिले में अफीम का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। मंदसौर राजस्थान के चित्तौड़गढ़, कोटा, भीलवाड़ा, झालावाड़ और मध्य प्रदेश के रतलाम जिलों से घिरा हुआ है। .

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मुरैना

मुरैना भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक नगर है। यह मुरैना जिला मुख्यालय भी है। उत्तरी मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना चंबल घाटी का प्रमुख जिला है। 5000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस जिले से चंबल, कुंवारी, आसन और सांक नदियां बहती हैं। पर्यटन के लिए आने वालों के देखने के लिए यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इन दर्शनीय स्थलों में सिहोनिया, पहाडगढ़, मीतावली, नूराबाद, सबलगढ़ का किला और राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य प्रमुख हैं। यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय और गैलरी भी देखी जा सकती है। यह जिला ग्वालियर नगर से लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर है। मुरैना का प्राचीन नाम मयूरवन है जो की महाभारत काल के समय बहुत प्रसिद्ध था। इसी जिले का एक छोटा सा साॅटा नामक गांव हैं जिसमें जिले के सभी गांवों की अपेक्षाकृत अधिक मोर पाये जाते हैं यह मुरैना नगर से १० किलो मीटर की दूरी पर स्थित है । .

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रतलाम

रतलाम भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के मालवा क्षेत्र का एक जिला है। रतलाम शहर समुद्र सतह से १५७७ फीट कि ऊन्चाई पर स्थित है। रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे। यह नगर सेव, सोना, सट्टा,मावा, साडी तथा समोसा कचौरी के लिये प्रसिद्ध है। महाराजा रतनसिंह और उनके पुत्र रामसिंह के नामों के संयोग से शहर का नाम रतनराम हुआ, जो बाद में अपभ्रंशों के रूप में बदलते हुए क्रमशः रतराम और फिर रतलाम के रूप में जाना जाने लगा। मुग़ल बादशाह शाहजहां ने रतलाम जागीर को रतन सिह को एक हाथी के खेल में, उनकी बहादुरी के उपलक्ष में प्रदान की थी। उसके बाद, जब शहजादा शुजा और औरंगजेब के मध्य उत्तराधिकारी की जों जंग शरू हुई थी, उसमे रतलाम के राजा रतन सिंह ने बादशाह शाहजहां का साथ दिया था। औरंगजेब के सत्ता पर असिन होने के बाद, जब अपने सभी विरोधियो को जागीर और सत्ता से बेदखल किया, उस समय, रतलाम के राजा रतन सिंह को भी हटा दिया था और उन्हें अपना अंतिम समय मंदसौर जिले के सीतामऊ में बिताना पड़ा था और उनकी मृत्यु भी सीतामऊ में भी हुई, जहाँ पर आज भी उनकी समाधी की छतरिया बनी हुई हैं। औरंगजेब द्वारा बाद में, रतलाम के एक सय्यद परिवार, जों की शाहजहां द्वारा रतलाम के क़ाज़ी और सरवनी जागीर के जागीरदार नियुक्त किये गए थे, द्वारा मध्यस्ता करने के बाद, रतन सिंह के बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया गया। इसके आलावा रतलाम जिले का ग्राम सिमलावदा अपने ग्रामीण विकास के लिये पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हे। यहाँ के ग्रामीणों द्वारा जनभागीदारी से गांव में ही कई विकास कार्य किये गए हे। रतलाम से 30 किलोमीटर दूर बदनावर इंदौर रोड पर कवलका माताजी का अति प्राचीन पांडवकालीन पहाड़ी पर स्थित मन्दिर हे। यहाँ पर दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने और खासकर सन्तान प्राप्ति के लिए यहाँ पर मान लेते हे| madhya paradesh no.1 श्रेणी:मध्य प्रदेश के नगर.

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रायसेन

रायसेन, मध्य प्रदेश के रायसेन जिले का मुख्यालय तथा एक नगर है। .

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राजगढ़

राजगढ़ बीकानेर से १३५ मील पूर्वोत्तर में बसा हुआ है। यह नगर १७६६ ई० में महाराजा गजसिंह ने अपने पुत्र राजसिंह के नाम पर बसाया था। यहां का किला महाराजा की आज्ञा से उसके मंत्री महता बख्तावरसिंह ने बनवाया था। .

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रीवा

रीवा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का नगर है। यह इलाहाबाद नगर से १३१ किलोमीटर दक्षिण स्थित प्रमुख नगर है। यह शहर मध्य प्रदेश प्रांत के विंध्य पठार का एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस एवं उसकी सहायता नदियों द्वारा सिंचित है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में सतना एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिले स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल २,५०९ वर्ग मील है। यह पहले एक बड़ी रियासत थी। यहाँ के निवासियों में गोंड एवं कोल जाति के लोग भी शामिल हैं जो पहाड़ी भागों में रहते हैं। जिले में जंगलों की अधिकता है, जिनसे लाख, लकड़ी एवं जंगली पशु प्राप्त होते हैं। रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ की नस्ल पाई गई हैं। जिले की प्रमुख उपज धान है। जिले के ताला नामक जंगल में बांधागढ़ का ऐतिहासिक किला है। भूतपूर्व रीवा रियासत की स्थापना लगभग 1400 ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी। मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया और 1597 ई, में इसे भूतपूर्व रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन 1812 ई. में यहाँ के स्थानीय शासक ने ब्रिटिश सत्ता से समझौता कर अपनी सम्प्रभुता अंग्रेज़ों को सौंप दी। यह शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की राजधानी भी रहा। यातायात:- रीवा रेल मार्ग से देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा है जिससे की रीवा आसानी से पंहुचा जा सकता है। जैसे- दिल्ली, राजकोट, सूरत,नागपुर,जबलपुर,कानपुर,ईलाहाबाद,इंदौर,भोपाल,सतना,बिलासपुर इत्यादि। सड़क मार्ग:- रीवा सड़क मार्ग से निम्न शहरों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। और नियमित बसों का संचालन:- भोपाल,इंदौर,जबलपुर,नागपुर,बिलासपुर,रायपुर,ग्वालियर,ईलाहाबाद,बनारस,अमरकंटक.शहडोल.सतना आदि शहरों से है। .

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शहडोल ज़िला

शह़डोल जिला मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। इसका गठन 1959 मे किया गया। शहडोल जिले का कुल क्षेत्रफल 5671 वर्ग कि॰मी॰ है। यह पूर्व में अनुपपूर, दक्षिण में मंडला और बिलासपुर, उत्तर में सतना एवं सीधी तथा पश्चिम में उमरिया जिले से घिरा हुआ है। यह जिला पूर्व से पश्चिम में 110 वर्ग कि.मी..

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शाजापुर

शाजापुर जिला क्षेत्रीय चित्रण की वर्तमान योजना के अनुसार केन्द्रीय मध्य प्रदेश पठार रतलाम पठार माइक्रो क्षेत्र का एक हिस्सा है। जिले राज्य के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित है और झूठ 32 "06 'और 24" 19' अक्षांश उत्तर और 75 "41 'और 77' 02 'पूर्वी देशांतर के बीच.

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शिवपुरी

शिवपुरी मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है जो ग्वालियर से 113 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह एक पर्यटक नगरी है और यहाँ का सौँदर्य अनुपम हैं। शिवपुरी की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने के लिए यहाँ पर्यटक बड़ी संख्या में आते है। शिवपुरी में ग्वालियर के सिंधिया वंश की समर कैपिटल थी। वे शिवपुरी में गर्मियों के दिनों में यहाँ रहने के लिए आया करते थे। शिवपुरी के घने जंगलों में मुगल सम्राट शिकार खेलने आते थे। अकबर ने यहीं से हाथियों के विशाल झुंड और शेरों को पकड़ा था। शिवपुरी के इन घने जंगलों को अब अभयारण्य में तब्दील कर दिया गया है, जहाँ अनेक दुर्लभ पशु-पक्षियों और वनस्पतियों को देखा जा सकता है। शिवपुरी में बने कुछ महल और झीलें यहाँ आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहती हैं।पूरे वर्ष शिवपुरी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहता है। .

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श्योपुर

श्योपुर, मध्य प्रदेश का एक नगर तथा श्योपुर जिले का मुख्यालय है। यह नगर छोटी लाइन की रेलवे द्वारा ग्वालियर से जुड़ा है। श्योपुर लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। चम्बल नदी यहाँ से केवल २५ किमी की दूरी पर बहती है तथा राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा बनाती है। .

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सतना

सतना भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। .

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सागर

कोई विवरण नहीं।

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सिवनी

सिवनी (अंग्रेजी:Seoni) भारत के मध्य प्रदेश का एक जिला है। सिवनी जबलपुर संभाग के अन्तर्गत आता हैँ राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 7 इस जिले से होकर जाता हैँ।यह के पडोसी जिले उत्तर दिश की ओर जबलपुर,मंडला, नरसिँहपुर जिले है पूर्व दिशा कि ओर बालाघाट पश्चिम दिश की ओर छिँदवाडा और दक्षिण दिशा कि ओर नागपुर हैँ। जिले की 8 तहसील में बांटा गया है, जिसमे सिवनी, लखनादौन, केवलारी, घंसौर, छपारा, बरघाट,कुरई और धनौरा है जिले के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यह जनजातीय बाहुल है! छ्पारा गोंड राजा राम सिंह की गड़ी है .

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सिंगरौली

सिंगरौली, भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक कस्बा है और सिंगरौली जनपद का मुख्यालय भी है। सिंगरौली मध्य प्रदेश की ऊर्जा राजधानी,singrauli me 3 power plant hain,relance,NTPC,hindalko .

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सीधी

सीधी मध्य प्रदेश का एक नगर और नगरपालिका है। यह सीधी जिले का मुख्यालय है। सीधी.

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सीहोर

सीहोर मध्‍य प्रदेश का एक जिला मुख्‍यालय है जो कि भोपाल से 37 किलोमीटर की दूरी पर है ये एक अंग्रेजों के द्वारा बसाया गया शहर है जो कि आज भी उस दौर के कई पुरातात्‍विक महत्‍व के भवनों को समेटे हुए है। मध्‍य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध देवी मंदिर सलकनपुर में है। यहां पर पहाड़ की ऊंची टेकरी पर बीजासन देवी की पिंडी है और हजारों की संख्‍या में श्रद्धालू यहां पर दर्शनों के लिये देश भर से आते हैं विशेषकर नवरात्रि में तो ये संख्‍या काफी बढ़ जाती है। मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित ये मंदिर राजधानी भोपाल से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यहा पर पेशवाकालीन गणेश मन्दिर है। .

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होशंगाबाद

होशंगाबाद भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। होशंगाबाद जिला मुख्यालय है। होशंगाबाद की स्थापना मांडू (मालवा) के द्वितीय राजा सुल्तान हुशंगशाह गौरी द्वारा पन्द्रहवी शताब्दी के आरंभ में की गई थी। होशंगाबाद नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। इसके किनारे पर सतपुड़ा पर्वत स्थित है। नर्मदा नदी जिले की उत्तरी सीमा के साथ-साथ बहती है। नर्मदा की सहायक नदी दूधी है जोकि होशंगाबाद जिले की उत्तरी पूर्वी सीमा बनाती है। होशंगाबाद में प्रतिभूति कागज कारखाना है जिसमें भारतीय रुपया छापने के लिए कागज बनाया जाता है। यहाँ एक केन्द्रीय विद्यालय भी है जिसका पूरा नाम केन्द्रीय विद्यालय प्रतिभूति कागज कारखाना होशंगाबाद है। होशंगाबाद के पास प्राचीन पहाड़ियाँ हैं जिन्हें "पहाड़िया" कहा जाता है। इन पहाड़ियों में कुछ गुफायें हैं जिनमें शैलचित्र जिन्हें राक पेंटिंग भी कहते हैं उकेरे गये हैं। ये राक पेंटि्ग्स आदि मानव द्वारा निर्मित हैं। हजारों साल से खुले आसमान के नीचे रहने के बाद भी ये पेंटिंग्स अभी भी मिटी नहीं हैं। नर्मदा नदी का प्रसिद्ध सेठानी घाट होशंगाबाद में ही है। होशंगाबाद में एक प्राचीन गुरुकुल है। .

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जबलपुर

जबलपुर भारत के मध्यप्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय तथा राज्य विज्ञान संस्थान है। इसे मध्यप्रदेश की संस्कारधानी भी कहा जाता है। थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय आयुध निर्माणियों के कारखाने तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। .

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विदिशा

विदिशा जिला विदिशा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह मालवा के उपजाऊ पठारी क्षेत्र के उत्तर- पूर्व हिस्से में अवस्थित है तथा पश्चिम में मुख्य पठार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। नगर से दो मील उत्तर में जहाँ इस समय बेसनगर नामक एक छोटा-सा गाँव है, प्राचीन विदिशा बसी हुई है। यह नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है। विदिशा में जन्में श्री कैलाश सत्यार्थी को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। .

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खण्डवा

खंडवा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई पर है। यह जिला नर्मदा और ताप्‍ती नदी घाटी के मध्य बसा है। 6200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले खंडवा की सीमाएं बेतूल, होशंगाबाद, बुरहानपुर, खरगोन और देवस से मिलती हैं। ओमकारेश्‍वर यहां का लोकप्रिय और पवित्र दर्शनीय स्‍थल है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिगों में शुमार किया जाता है। इसके अलावा घंटाघर, दादा धुनीवाले दरबार, हरसुद,मूँदी, सिद्धनाथ मंदिर और वीरखाला रूक यहां के अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। .

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खरगौन

खरगौन भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। खरगौन नगर, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत, नर्मदा नदी की सहायक कुंडा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। .

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गुना

गुना भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। यह शहर मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित है। ३५ किलोमीटर दूर राजस्थान सीमा है, पार्वती नदी मध्य प्रदेश और राजस्थान को अलग करती है। गुना मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है और ग्वालियर संभाग में आता है। गुना शहर ७७' देशांतर तथा २५' अक्षांश तथा राष्ट्रीय राजमार्ग ३ (आगरा-मुम्बई) पर स्थित है। कोटा और बीना शहर से रेल मार्ग द्वारा भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। शहर में मुख्यतः हिन्दू, मुस्लिम तथा जैन समुदाय के लोग निवास करते हैं।। खेती यहाँ का मुख्य कार्य है। गुना (ग्वालियर संयुक्त राष्ट्र सेना, डॉ राजीव दुआ) प्राचीन अवंती किंगडम चंद Pradyota Mahesena द्वारा स्थापित का हिस्सा था। बाद में Shishusangh अवंत का राज्य है, जो मगध के बढ़ते साम्राज्य के गुना शामिल जोड़ा। 18 वीं सदी में, गुना मराठा नेता रामोजी राव सिंधिया ने विजय प्राप्त की, और शीघ्र ही भारत की आजादी के बाद जब तक ग्वालियर के राज्य का हिस्सा बना रहा था। गुना राज्य के ईसागढ़ जिले के हिस्से के रूप में दिलाई। 1897 में भारतीय रेलवे मिडलैंड एक रेल मार्ग गुना से गुजर निर्माण किया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति, गुना अपने 16 जिलों में से एक के रूप में 28 मई 1948 को मध्य भारत के नए राज्य का हिस्सा बन गया। 1 नवंबर, 1956 को मध्य भारत मध्य प्रदेश राज्य में विलय कर दिया गया था। गुना के पास बजरंगढ नामक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ महावीर भगवान की प्राचीन मूर्ति है। स्वतंत्रता से पहले गुना ग्वालियर राज घराने का हिस्सा था। जिस पर सिन्धिया वंश का अधिकार था। कुल क्षेत्रफल ६४८४.६३ वर्ग कि॰मी॰ तथा जनसंख्या ८३८०२६ है। .

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ग्वालियर

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र.

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इन्दौर

इन्दौर (अंग्रेजी:Indore) जनसंख्या की दृष्टि से भारत के मध्य प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा शहर है। यह इन्दौर ज़िला और इंदौर संभाग दोनों के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। इंदौर मध्य प्रदेश राज्य की वाणिज्यिक राजधानी भी है। यह राज्य के शिक्षा हब के रूप में माना जाता है। इंदौर भारत का एकमात्र शहर है, जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान (IIM इंदौर) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT इंदौर) दोनों स्थापित हैं। मालवा पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित इंदौर शहर, राज्य की राजधानी से १९० किमी पश्चिम में स्थित है। भारत की जनगणना,२०११ के अनुसार २१६७४४७ की आबादी सिर्फ ५३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वितरित है। यह मध्यप्रदेश में सबसे अधिक घनी आबादी वाले प्रमुख शहर है। यह भारत में के तहत आता है। इंदौर मेट्रोपोलिटन एरिया (शहर व आसपास के इलाके) की आबादी राज्य में २१ लाख लोगों के साथ सबसे बड़ी है। इंदौर अपने स्थापना के इतिहास में १६वीं सदी क डेक्कन (दक्षिण) और दिल्ली के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अपने निशान पाता है। मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम के मालवा पर पूर्ण नियंत्रण ग्रहण करने के पश्चात, १८ मई १७२४ को इंदौर मराठा साम्राज्य में सम्मिलित हो गया था। और मल्हारराव होलकर को वहाँ का सुबेदार बनाया गया। जो आगे चल कर होलकर राजवंश की स्थापना की। ब्रिटिश राज के दिनों में, इन्दौर रियासत एक १९ गन सेल्यूट (स्थानीय स्तर पर २१) रियासत था जो की उस समय (एक दुर्लभ उच्च रैंक) थी। अंग्रेजी काल के दौरान में भी यह होलकर राजवंश द्वारा शासित रहा। भारत के स्वतंत्र होने के कुछ समय बाद यह भारत अधिराज्य में विलय कर दिया गया। इंदौर के रूप में सेवा की राजधानी मध्य भारत १९५० से १९५६ तक। इंदौर एक वित्तीय जिले के समान, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी के रूप में कार्य करता है। और भारत का तीसरा सबसे पुराने शेयर बाजार, मध्यप्रदेश स्टॉक एक्सचेंज इंदौर में स्थित है। यहाँ का अचल संपत्ति (रीयल एस्टेट) बज़ार, मध्य भारत में सबसे महंगा है। यह एक औद्योगिक शहर है। यहाँ लगभग ५,००० से अधिक छोटे-बडे उद्योग हैं। यह सारे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वित्त पैदा करता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ४०० से अधिक उद्योग हैं और इनमे १०० से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के प्रमुख उद्योग व्यावसायिक वाहन बनाने वाले व उनसे सम्बन्धित उद्योग हैं। व्यावसायिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश की प्रमुख वितरण केन्द्र और व्यापार मंडीयाँ है। यहाँ मालवा क्षेत्र के किसान अपने उत्पादन को बेचने और औद्योगिक वर्ग से मिलने आते है। यहाँ के आस पास की ज़मीन कृषि-उत्पादन के लिये उत्तम है और इंदौर मध्य-भारत का गेहूँ, मूंगफली और सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक है। यह शहर, आस-पास के शहरों के लिए प्रमुख खरीददारी का केन्द्र भी है। इन्दौर अपने नमकीनों व खान-पान के लिये भी जाना जाता है। प्र.म. नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटी मिशन में १०० भारतीय शहरों को चयनित किया गया है जिनमें से इंदौर भी एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के पहले चरण के अंतर्गत बीस शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जायेगा और इंदौर भी इस प्रथम चरण का हिस्सा है। 'स्वच्छ सर्वेक्षण २०१७' के परिणामों के अनुसार इन्दौर भारत का सबसे स्वच्छ नगर है। .

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कटनी

'चूना पत्थर के शहर' के नाम से लोकप्रिय उत्तरी मध्य प्रदेश का कटनी 4950 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह कटनी जिला का मुख्यालय है। विजयराघवगढ़, ढीमरखेड़ा, बहोरीबंद, मुड़वारा और करोन्दी यहां के लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। मुडवारा, कटनी, छोटी महानदी और उमदर यहां से बहने वाली प्रमुख नदियां हैं। कटनी का स्लिमनाबाद गांव संगमरमर के पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है। कटनी नगर का नामकरण कटनी नदी के नाम पर हुआ है। इस नदी पर नगर पश्चिम में 2किमी दूर कटाए घाट है। वास्तव में यह 'कटाव घाट' है, उस कटाव पहाड़ी का जो बहोरीबंद में है। घाट का आशय चढ़ाव है। डॉ॰ शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास 'नीला चाँद' में इस कटाव घाट के रास्ते से होकर युद्ध के लिए जाने की सलाह काशी नरेश को दी जाती है। 'मध्यप्रदेश की बारडोली ' कटनी - यह गौरवशाली उपाधि इसलिए मिली कि नगर एवं पचासों गाँव गँवइयों के लोगोँ ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बापू का साथ दिया था। प्रदेश में सबसे बढ़कर संख्या बल जेल जाने वालोँ का यहाँ के लोगों का था। माता कस्तूरबा से मुलाकात करने यहाँ के रेल्वे प्लेटफार्म पर उनके बड़े पुत्र यहाँ आए थे। साहित्य में उल्लेखनीय है विजयराघवगढ़ रियासत के ठाकुर जगमोहन सिंह के काव्य-उपन्यास 'श्यामा स्वप्न' की भारतेंदुकालीन परंपरा। आगे गाँधीवादी कवि राममनोहर बृजपुरिया सम्राट के बाद कथा कविता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण लेखक कटनी में हुए। कहानी उपन्यास एवँ व्यंग्य लेखन में सर्वाधिक उल्लेखनीय हैँ - सुबोधकुमार श्रीवास्तव, देवेन्द्र कुमार पाठक। कविता की गीत नवगीत लेखन परंपरा को समृद्ध करने वाले सुरेंद्र पाठक, राम सेंगर, राजा अवस्थी आदि के अलावा ओम रायजादा, अनिल खंपरिया ग़ज़ल गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैँ। मंचके कवियोँ की परंपरा भी यहाँ खूब समृद्ध है। 'किरण' यहाँ पर कला संगीत का सक्रिय मंच है। बघेली, बुँदेली और गोंडी बोलियों की त्रिधारा कटनी को बोलियों का प्रयाग बनाती है। किन्नर प्रत्याशी कमला जान ने नगर महापौर बनकर पूरे देश में कटनी की धूम मचा दी थी। करमा, राई, फाग, भगत आदि लोकनृत्य लोकगीत यहाँ नाचे गाए जाते हैँ .

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अनूपपुर ज़िला

अनूपपुर, भारतीय राज्य मध्य प्रदेश का एक जिला है। जो मध्य प्रदेश को छत्तीसगढ़ राज्य से मिलाता है। यह जिला से 15 अगस्त 2003 को शहडोल जिले से अलग हुआ था। अनूपपुर रेलवे स्टेशन मध्य प्रदेश का अन्तिम जंक्शन है, इसके बाद जैतहरी, वेन्कटनगर स्टेशन छोटे स्टेशन जो मध्य प्रदेश में हैं। वेन्कटनगर कस्बा मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ दोनो राज्य के मध्य बसा हुआ है। .

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अशोकनगर

अशोक नगर, भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक शहर है। यह अशोक नगर जिला का मुख्यालय है। यह नगर चन्देरी सिल्क सारियों के लिये भी जाना जाता है। अशोकनगर (भी अशोक नगर) मध्य भारत राज्य मध्य भारत के अशोकनगर जिले में एक शहर और नगर पालिका परिषद है। यह अशोकनगर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इससे पहले यह गुना जिले का हिस्सा था। अशोकनगर अपने अनाज मंडी और "शरबती गहु" के लिए प्रसिद्ध है, एक प्रकार का गेहूं। निकटतम शहर गुना शहर से 45 किमी दूर है। अशोकनगर को पहले प्रचार के नाम से जाना जाता था। रेलवे लाइन शहर के बीच से गुजरती है। अशोकनगर में एक रेलवे स्टेशन और दो बस स्टेशन हैं। अशोकनगर सड़क और रेलवे द्वारा मध्य प्रदेश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है अशोकनगर मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित है, सिंध और बेतवा की नदियों के बीच। यह मालवा पठार के उत्तरी भाग के अंतर्गत आता है, हालांकि इसके जिले का मुख्य भाग बुंदेलखंड पठार में स्थित है। जिले की पूर्वी और पश्चिमी सीमाएं अच्छी तरह से नदियों से परिभाषित हैं। बेतवा पूर्वी सीमा के साथ बहती है जो इसे सागर जिले और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले से अलग करती है। सिंध पश्चिमी सीमा पर बहने वाली मुख्य नदी है अशोकनगर का एक हिस्सा चंदेरी अपने ब्रोकेड और मुस्लिमों के लिए प्रसिद्ध है, खासकर अपनी हाथों से बने चन्द्रियों के लिए। अशोकनगर पश्चिमी मध्य रेलवे के कोटा-बिना रेलवे खंड पर स्थित है। अशोकनगर जिले पूर्व में उत्तर प्रदेश की सीमा तक उत्तर प्रदेश में ललितपुर से करीब 87 किमी दूर है। अशोकनगर राज्य भोपाल की राजधानी से लगभग 190 किमी दूर है, इंदौर से 360 किमी और ग्वालियर से लगभग 250 किमी दूर है। इतिहास यह क्षेत्र ग्वालियर के भारतीय रियासत राज्य के इसागढ़ जिले के हिस्से के रूप में शासन किया गया था। ऐसा माना जाता है कि उज्जैन की जीत से राजा अशोक लौटने पर पचार भूमि पर रात की रुकती हुई थी, इसलिए अशोकनगर नाम का नाम था। जनसांख्यिकी 2001 की जनगणना में, अशोकनगर की जनसंख्या 67,705 थी 2011 की जनगणना में, अशोकनगर की जनसंख्या 844,9 9 9 थी, जिसमें पुरुष और महिलाएं क्रमशः 444,651 और 400,328 थीं। 2001 के अनुसार आबादी की तुलना में जनसंख्या में 22.65 प्रतिशत परिवर्तन हुआ था। भारत की पिछली जनगणना में 2001, अशोकनगर जिले ने 1991 की तुलना में जनसंख्या में 23.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। प्रारंभिक अनंतिम डेटा 2011 में 147 की तुलना में 2011 में 181 घनत्व का सुझाव देते हैं। अशोकनगर जिले के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल लगभग 4,674 किमी 2 है। 2011 में अशोकनगर की औसत साक्षरता दर क्रमश: 67.90 थी और 2001 की 62.26 के मुकाबले 67.90 थी। अगर लिंग के अनुसार, पुरुष और महिला साक्षरता क्रमश: 80.22 और 54.18 थी, 2001 की जनगणना के लिए, इसी आंकड़े अशोकनगर जिले में 77.01 और 45.24 पर खड़े थे। अशोकनगर जिले में कुल साक्षर 480,957 थे, जिनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 299,40 9 और 185,548 थे। 2001 में, अशोकनगर जिले में कुल क्षेत्रफल 344,760 था। अशोकनगर में लिंग अनुपात के संबंध में, यह 9 8 9 के 2001 की जनगणना की तुलना में प्रति 1000 पुरुष था। जनगणना 2011 निदेशालय की नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक भारत में औसत राष्ट्रीय सेक्स अनुपात 940 है। दक्षिण में, अशोकनगर से लगभग 35 किमी दूर प्रसिद्ध ' करीला माता मंदिर' है, जो भगवान राम और सीता माता के पुत्र लव और कुश का जन्मस्थान है। हर साल रंगपंचमी पर एक विशाल मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें राय डांस बेदी महिला द्वारा किया जाता है। टुमन एक मशहूर ऐतिहासिक तीर्थयात्री केंद्र है जो त्रिविणी में स्थित है, जिसे माता विंध्यवासिनी मंदिर के लिए जाना जाता है। अशोकनगर जिले में धार्मिक महत्व के कई और अधिक स्थान हैं। चंदेरी अशोकनगर जिले का तहसील है और यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पर्यटन महल है। चंदेरी के लोगों का मुख्य व्यवसाय हस्तकला है। चंदेरी साड़ियों दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इन्हें कपास और रेशम द्वारा खटका से हाथ मिलाया जाता है। साड़ियां तैयार करने के लिए खतका एक स्वनिर्मित मशीन है। अशोकनगर जिले में एक अन्य प्रसिद्ध स्थान श्री आनंदपुर है, जो श्री आदवीथ परमहंस संप्रदाय का विश्व मुख्यालय है। विश्वभर से चेलों ने वैसासिक और गुरु पौर्णिमा में दो बार एक वर्ष में आनंदपुर को गुरुओं से आशीर्वाद लेने के लिए यात्रा की। कदवेया, जिले का एक छोटा सा गांव प्राचीन शिव मंदिर, गढ़ी और माता मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। पर्यटक चंदेरी चंदेरी किला शहर से ऊपर 71 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मुख्य रूप से चंदेरी के मुस्लिम शासकों द्वारा दुर्ग की दीवारों का निर्माण किया गया। किले का मुख्य दृष्टिकोण तीन दरवाजों की एक श्रृंखला के माध्यम से होता है, जिनमें से सबसे ऊपर हवा पौंड और निम्नतम के रूप में जाना जाता है जिसे खुनी दरवाजा कहा जाता है या रक्त के द्वार कहा जाता है। अजीब नाम इस तथ्य से लिया गया है कि अपराधियों को इस बिंदु पर ऊपरी बंगालों से फेंकने के द्वारा मार डाला गया था और इस प्रकार उनके शरीर को पैरों पर टुकड़ों में डाल दिया गया था। किले के भीतर बंडेला चीफ्स द्वारा निर्मित दो और दो बर्बाद इमारतों हैंवा और नौ-खांदा महल हैं। किले का सबसे सुंदर स्थान उत्तरी रिज पर एक आराम घर है, जहां से देश के नीचे शहर के एक आकर्षक दृश्य प्राप्त किया जा सकता है। चंदेरी फोर्ट दक्षिण की ओर किले के लिए पहाड़ी की ओर से बने कट्टी-घट्टी नामक एक उत्सुक प्रवेश द्वार है। यह 59 मीटर लंबा 12 मीटर चौड़ा और चट्टान के अपने हिस्से के बीच 24.6 मीटर ऊंचा है, एक गेट के आकार में देखा गया है, जिसमें एक बिंदु वाला कमान है, जो लपटों के टावरों से घूमता है। कौशक महल चंदारी चंदेरी के कौशक महल को तावरी-ई-फ़रीशता में जाना जाता है। यह उसमें दर्ज किया गया है, एएच 849 (सीएडी 1445) में। मालवा के महमूद शाह खिलजी चंदेरी से गुजर रहे थे उन्होंने सात मंजिला महल का निर्माण करने का आदेश दिया। कौशिक महल इस आदेश का नतीजा है। यह कुछ भव्यता का भव्य भवन है, हालांकि एक आधा बर्बाद स्थिति में खड़ा है। शहर के दक्षिण, पूर्व और उत्तर में क्रमशः रामनगर, पंचमनगर और सिंघपुर के सुव्यवस्थित महलों हैं। सभी 18 वीं शताब्दी में चंदेरी के बुंदेला चीफों द्वारा निर्मित किए गए हैं। तुमैन- माँ विन्ध्यवासिनी मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। यह अशोक नगर जिले से दक्षिण दिशा की ओर तुमैन (तुम्वन) मे स्थित हैं। यहाॅ खुदाई में प्राचीन मूर्तियाँ निकलती रहती है यह राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से जानी जाती है यहाॅ कई प्राचीन दाश॔निक स्थलो में वलराम मंदिर,हजारमुखी महादेव मंदिर,ञिवेणी संगम,वोद्ध प्रतिमाएँ,लाखावंजारा वाखर,गुफाएँ, माँ पहाडा वाली मंदिर आदि कई स्थल है तुमैन का प्राचीन नाम तुम्वन था। सन् 1970-72 में पुरातत्व विभाग के द्वारा यहाँ जव खुदाई की गई तव यहाँ 30 फुट नीचे जमीन मे ताँवे के सिक्को से भरा एक घडा मिला कई प्राचीन मूर्तियाँ और मनुष्य के डाॅचे एवं कई प्राचीन अवशेष यहाॅ से प्राप्त हुए। सभी अवशेषो को सागर विश्वविद्यालय मे कुछ गूजरी महल ग्वालियर मे रख दिए है। फिर भी यहाॅ कई प्राचीन मूर्तियाँ है जो तुमैन संग्रहालय मे है।वत॔मान मे आज भी अगर इस ग्राम की खुदाई की जाए तो यहाँ कई सारे प्राचीन अवशेष प्राप्त होगे। तुमैन ञिवेणी नदी  का इतिहास- प्राचीन काल में अलीलपुरी जी महाराज रोज अपनी साधना के अनुसार स्रान करने के लिए पृयाग (इलावाद)जाया करते थे। एकदिन गंगा माई प्रशन्र हो गयी ओर वोली माँगो भक्त क्या चाहिए! माँअगर आप प्रशन्र है तो माँ मेरी कुटिया को पवित्र कर दीजिए गंगाजी तुमैन में गुप्त गंगा  के नाम सेजानी गई ओर तीन नदियों का संगम हुआ उमिॅला,सोवत,अखेवर, आज भी जो लोग इलाहाबाद नहीं जा पाते वे तुमैन ञिवेणी में आकर गोता लगाते हैं तुमैन मे हर वष॔ मकर संक्रांति पर मेले का आयोजन भी होता है तुमैन अपने इतिहास मे मशहूर है इसका लेख कितावो मे भी मिलता है। तुमैन  मंदिरों के लिए भी जानी जाती है यहाँ जहाँ पर करो खुदाई वहां पर निकलती है मूर्तिया। तुमैन गाँव का वडा मंदिर विन्धयवासिनी मंदिर है। यह मंदिर वहुत ही पुराना है इस मंदिर में जो तोड़ फोड़ हुई मुगल साम्राज्य ओरंगजेव के समय पर हुई है। मंदिर का इतिहास वहुत ही पुराना है।विन्धयवासिनी मंदिर या तो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित है या फिर मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले के  10km दूरी पर तुमैन गाँव मे स्थित है। *कविता के माध्यम से इतिहास-  तुम्वन नगरी आय के, कर लीजे दो काम। प्रथम ञिवेणी स्नान कर, दूजे विंन्ध्यवासिनी धाम।। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। इसका नाम जगत में ऊॅचा, करके हमे दिखाना।। यहॉ मोरध्वज का राज्य हुआ, विक्रम की वाणी पड़ी सुनाई, ताम्रध्वज के शासन ने यहा नई झलक दिखलाई। मोरध्वज ने अपने जीवन में सत्य धर्म अपनाया।। विक्रम ने भी यहॉ से जा उज्जेन में राज्य बनाया। उन विक्रम के नव-रत्न आज भी करता याद जमाना।। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। चौसठ खम्ब विंध्यवासिनी का है मंदिर अति भारी फाटक पर बलदाऊ जी की मूरत वहुत प्यारी। भूतेश्वर का घाट मनोहर,है तोरन दरवाजा।। नदी बागो की शोभा न्यारी,जहाॅ मन्जह सकल समाजा।। ताम्रध्वज का किला मनोहर, जहॉ शिव सहस्त्र अस्थाना। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। जब तुम्बन के आस - पास कही पक्के भवन नही थे। बडे़ प्रेम से हम दृढ भवनो में रहते थे।। बने हुये थे चोका चारो, होज भवन अति सुन्दर, रहता था भण्डार कला का हरदम, इसके अंदर। बुद्धि कला कौशल का इसमें भरा हुआ था खजाना। । यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। विप्र वंश के वेद मंत्र यहॉ गूंजे सबके कानो में। शिव लिंगों के ढे़र रहे त्रिवेणी के मैदानों में घाट वाट चौपाल बने खंधक है भारी। इन्द्र भवन सौ सजी सभी चौपाले सारी।। गन्धर्व सेन को तन भस्म भयो तब नगरी धूल समाना। । यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। है लाखा बंजारे की बाखर की ताजी गाथा। बैठा देव ने किया नगरी का अब भी ऊचॉ माथा।। सुना रहे है अब रो-रोकर यह सांची सांची गाथा। सब नगरिन से यह नगरी का है, आज भी ऊचॉ माथा।। है देवी दरवार महा तुम दर्शन,,करने आना। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना।। आनंदपुर "श्री आनंदपुर साहिब", एक शानदार धार्मिक स्थान है, जिला मुख्यालय अशोकनगर से लगभग 30 किमी दूर ईसागर तहसील का हिस्सा है। संस्था "एडवाट मेट" से प्रभावित होती है इस संस्था का संस्थापक श्री एडवाट औरंद जी था। उन्हें महाराज परमहंस दयाल जी के नाम से भी जाना जाता है। जगह अच्छी तरह से हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से घिरी हुई है। आश्रम "विंध्याचल पर्वत" की सीमाओं के पास स्थित है और यह अपनी शानदार इमारत और प्रदूषण मुक्त वातावरण के आकर्षण का केंद्र है। अनदपुर का विकास 1 9 3 9 में वापस शुरू हुआ और 1 9 64 तक जारी रहा। यह संस्थान 22 अप्रैल, 1 9 54 को "श्री आनंदपुर ट्रस्ट" के रूप में स्थापित किया गया। इसके अधिकांश विकास "श्री चौथे" और "श्री पांचवां पदशै" के दौरान हुए। "श्री आनंद शांति भवन स्मारक का मुख्य भाग शुद्ध सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इस स्तंभ को इस स्थान से दूर देखा जा सकता है।" सत्संग भवन "स्मारक का एक बड़ा और आकर्षक स्थान है। यह आकर्षण का केन्द्र है भक्तों के लिए यह जगह शरद ऋतु के मौसम में देखने के लिए एक सुंदरता है जब बगीचे में रंगीन फूलों से भरा होता है। बाकी का घर पर्यटकों के लिए उपलब्ध है जो दूर क्षेत्र से यहां आते हैं। अस्पताल, स्कूल, डाकघर आदि की सुविधा है। प्रसिद्ध टीवी शो "कुच से लॉग कांगेज" की प्रसिद्धि में क्रितिका कामरा इस जगह के हैं। ISSAGARH अशोकनगर तहसील का एक छोटा गांव कडवेया में कई मंदिर हैं। इन मंदिरों में से एक का निर्माण 10 वीं शताब्दी में वास्तुकला की कच्छापघता शैली में किया गया है। इसकी गर्भ-ग्रिह (गर्भगृह), अंतराल और मंडपा है इस मंदिर में 1067 और 1105 ई। के कुछ तीर्थ यात्रियों का रिकॉर्ड है। कडवेया का एक और दिलचस्प लेकिन पुराना मंदिर चन्दल गणित के रूप में जाना जाता है। गांव में एक बर्बाद मठ है, एक बहुत पुराना रिकॉर्ड से उठाया गया था जिसमें कहा गया है कि मस्ताधीश का निर्माण करने के लिए बनाया गया था शैवा पंथ के कुछ सदस्यों को Matta Mourya के रूप में जाना जाता है अकबर के शासनकाल के दौरान कदवेया ग्वालियर के आगरा के सुबा के सरकार में एक महालय का मुख्यालय था। थुबोनजी सिधाधा केेत्रा यहां तीर्थयात्रियों को शांति, अहिंसा और अस्वाभाविक मस्तिष्क की मालिश प्रदान करने वाले 26 बहुत खूबसूरत मंदिरों का एक समूह है। इस पवित्र स्थान थुवनजी को प्रसिद्ध व्यापारी श्री पददाह की अवधि के दौरान ज्ञान में आया था। यह कहा जाता है कि श्री पददाह धातु टिन में काम कर रहा था और जब उसने अपनी धातु टिन डाल दिया, तो इसे चांदी में बदल दिया गया था। इतने सारे चमत्कारी और आकर्षक मूर्तियों के साथ 26 खूबसूरत और विशाल मंदिरों का एक समूह है। मंदिर नं। 15 उनमें से मुख्य हैं, यहां पर बड़े मंदिर के रूप में जाना जाता है, भगवान आसिनाथ के 28 फीट ऊंचे अदभुत महाकाव्य के साथ, पवित्रा पद में स्थित, विक्रम संवत 1672 में स्थापित किया गया है। Atishay: यह कहा जाता है कि रात में कई संगीत वाद्यों की आवाज सुनाई देती है क्योंकि स्वर्ग के देवता प्रार्थना और पूजा के लिए यहां आते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस उच्च संवहनी को पूरा करने के बाद, बहुत से भक्त इस स्थिति में खड़े होने में इसे स्थापित करने में असमर्थ थे, उस रात समारोह के प्रमुख ने एक सपना देखा और अगली सुबह उन्होंने सपने से कोलोसस की पूजा की और फिर अकेले रखा उच्च राजकुमार खड़े सार्वजनिक उपस्थित ने चमत्कार के साथ इस चमत्कार को देखा मंदिर: भगवान पार्श्वनाथ जैन मंदिर - सिर पर एक बहुत ही कलात्मक सर्प हुड के साथ 1864 में वीएस 1864 में स्थापित भगवान पार्श्वनाथ (23 वें तेरथंकर) का एक शानदार 15 फीट ऊंचा कोलोसस है। यह हुड एक खूबसूरत ढंग से अलग-अलग सांपों द्वारा किया जाता है और बृहस्पति के दोनों तरफ में देखा जा सकता है। भगवान शांतीनाथ जैन मंदिर: भगवान शांतीनाथ (16 वीं तीर्थंकर) के 18 फीट ऊंचे खड़े आसन। अजीतनाथ जैन मंदिर (द्वितीय तीर्थंकर) Adinath जैन: मंदिर एक शानदार और विशाल भगवान Adinath के 16 फीट ऊंचा colossus के साथ विशाल है यह 1873 में वी.एस.

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उमरिया ज़िला

उमरिया भारतीय राज्य मध्य प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय उमरि‍या है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.

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उज्जैन

उज्जैन का प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन (उज्जयिनी) भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि॰मी॰ पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मंदिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल है। इसकी जनसंख्या लगभग 5.25 लाख है। यह मध्य प्रदेश का पाँचवा सबसे बड़ा शहर है। नगर निगम सीमा का क्षेत्रफल ९३ वर्ग किलोमीटर है। .

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छतरपुर

छतरपुर भारत के मध्य प्रदेश प्रांत का एक शहर है। विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर इसी जिले में हैं। छतरपुर नगर, उत्तर-भारत मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत में स्थित है। इसकी पूर्वी सीमा के पास से सिंघारी नदी बहती है। आरंभ में पन्ना सरदारों द्वारा शासित इस नगर पर 18वीं शताब्दी में कुंवर सोन सिंह का अधिकार हो गया। यह चारों ओर से पहाड़ों से घिरा है और वृक्षों, तालाबों तथा नदियों की बहुतायत के कारण अत्यंत दर्शनीय स्थल है। राव सागर, प्रताप सागर और किशोर सागर यहाँ के तीन महत्त्वपूर्ण तालाब हैं। छतरपुर का एक देशी राज्य था जो अब एक जिला हैं। इसमें मुख्यत: मैदानी भाग था। जिले की समुद्रतट से औसत ऊँचाई ६०० फुट है। केन यहाँ की प्रमुख नदी है। उर्मल और कुतुरी उसकी सहायता नदियाँ हैं। यहाँ पुरातत्व की दृष्टि से महत्व के स्थानों में खुजराहो, १८वीं सदी की इमारतें, छतरपुर से १० मील पश्चिम स्थित राजगढ़ के पास एक किले के अवशेष एवं चंदेलों द्वारा निर्मित अनेक तालाब हैं। कोदो, तिल, जौ, बाजरा, चना, गेहूँ तथा कपास यहाँ के मुख्य कृषिपदार्थ हैं। छतरपुर नगर छतरपुर जिले का प्रधान कार्यालय है। यह बाँदा-सागर-सड़क पर स्थित है। पहले नगर तीन ओर से दीवालों से घिरा था। नगर के केंद्र में रामहल तथा अन्य कई अच्छे मकान हैं। यहाँ एक स्नातकोत्तर डिग्री कालेज तथा कुछ स्कूल हैं। ताँबे के बर्तन, लकड़ी के सामान तथा साबुन निर्माण यहाँ के उद्योगों में प्रमुख हैं। समुद्र की सतह से ऊँचाई १,००० फुट है। नगर के कई तालाबों में रानी ताल प्रमुख हैं। .

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छिंदवाड़ा

छिंदवाडा़ भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। छिंदवाड़ा नगर, दक्षिण-मध्य मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत, कुलबेहरा की धारा बोदरी के तट पर स्थित है। यह 671 मीटर की ऊँचाई पर सतपुड़ा के खुले पठार पर स्थित है और उपजाऊ कृषि भूमि से घिरा है, जिसमें बीच-बीच में आम के बाग़ हैं और इसके पश्चिमोत्तर में कम ऊँचाई वाले ऊबड़ खाबड़ पहाड़ तथा दक्षिण में नागपुर के मैदानों की ओर ढलान है। पठार के दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में चौराई गेहुं के उपजाऊ मैदान हैं। नागपुर का मैदान कपास और ज्वार की खेती का समृद्ध इलाका है और इस समूचे क्षेत्र का सबसे संपन्न और सर्वाधिक आबादी वाला हिस्सा है। वैनगंगा, पेंच और कन्हन नदियाँ इस क्षेत्र को अपवाहित करती हैं। यहाँ की मिट्टी बजरीयुक्त और जल्दी सूखने वाली है। अपेक्षाकृत कम बारिश के बावजूद यहाँ का मौसम विशेष रूप से स्वास्थ्यवर्द्धक और खुशनुमा है। इस नगर का नामकरण 'छिंद', यानी खजूर के वृक्ष के नाम पर हुआ है। .

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