मदल पंजी और राजतरंगिणी के बीच समानता
मदल पंजी और राजतरंगिणी आम में 6 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): बुरंजी, महावंश, श्रीलंका, जगन्नाथ मन्दिर, पुरी, कश्मीर, असम।
बुरंजी
प्राचीन हस्थलिखि - बुरंजी। बुरंजी, असमिया भाषा में लिखी हुईं ऐतिहासिक कृतियाँ हैं। अहोम राज्य सभा के पुरातत्व लेखों का संकलन बुरंजी में हुआ है। प्रथम बुरंजी की रचना असम के प्रथम राजा सुकफा के आदेश पर लिखी गयी जिन्होने सन् १२२८ ई में असम राज्य की स्थापना की। आरंभ में अहोम भाषा में इनकी रचना होती थी, कालांतर में असमिया भाषा इन ऐतिहासिक लेखों की माध्यम हुई। इसमें राज्य की प्रमुख घटनाओं, युद्ध, संधि, राज्यघोषणा, राजदूत तथा राज्यपालों के विविध कार्य, शिष्टमंडल का आदान प्रदान आदि का उल्लेख प्राप्त होता है - राजा तथा मंत्री के दैनिक कार्यों के विवरण भी प्रकाश डाला गया है। असम प्रदेश में इनके अनेक वृहदाकार खंड प्राप्त हुए हैं। राजा अथवा राज्य के उच्चपदस्थ अधिकारी के निर्देशानुसार शासनतंत्र से पूर्ण परिचित विद्वान् अथवा शासन के योग्य पदाधिकारी इनकी रचना करते थे। घटनाओं का चित्रण सरल एवं स्पष्ट भाषा में किया गया है; इन कृतियों की भाषा में अलंकारिकता का अभाव है। सोलहवीं शती के आरंभ से उन्नीसवीं शती के अंत तक इनका आलेखन होता रहा। बुरंजी राष्ट्रीय असमिया साहित्य का अभिन्न अंग हैं। गदाधर सिंह के राजत्वकाल में पुरनि असम बुरंजी का निर्माण हुआ जिसका संपादन हेमचंद्र गोस्वामी ने किया है। पूर्वी असम की भाषा में इन बुरंजियों की रचना हुई है। "बुरंजी" मूलत: एक टाइ शब्द है, जिसका अर्थ है "अज्ञात कथाओं का भांडार"। इन बुरंजियों के माध्यम से असम प्रदेश के मध्ययुग का काफी व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध है। बुरंजी साहित्य के अंतर्गत कामरूप बुरंजी, कछारी बुरंजी, आहोम बुरंजी, जयंतीय बुंरजी, बेलियार बुरंजी के नाम अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं। इन बुरंजी ग्रंथों के अतिरिक्त राजवंशों की विस्तृत वंशावलियाँ भी इस काल में हुई। आहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रवृत्ति धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। राजाओं का यशवर्णन इस काल के कवियों का एक प्रमुख कर्तव्य हो गया। वैसे भी अहोम राजाओं में इतिहासलेखन की परंपरा पहले से ही चली आती थी। कवियों की यशवर्णन की प्रवृत्ति को आश्रयदाता राजाओं ने इस ओर मोड़ दिया। पहले तो अहोम भाषा के इतिहास ग्रंथों (बुरंजियों) का अनुवाद असमिया में किया गया और फिर मौलिक रूप से बुरंजियों का सृजन होने लगा। .
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महावंश
महावंश एक महान इतिहास के लिखि पद्य है। महावंश (शाब्दिक अर्थ: महान इतिहास) पालि भाषा में लिखी पद्य रचना है। इसमें श्रीलंका के राजाओं का वर्नन है। इसमें कलिंग के राजा विजय (५४३ ईसा पूर्व) के श्रीलंका आगमन से लेकर राजा महासेन (334–361) तक की अवधि का वर्णन है। यह सिंहल का प्रसिद्ध ऐतिहासिक महाकाव्य है। भारत का शायद ही कोई प्रदेश हो, जिसका इतिहास उतना सुरक्षित हो, जितना सिंहल का; डब्ल्यू गेगर की इस सम्मति का आधार महावंस ही है। महान लोगों के वंश का परिचय करानेवाला होने से तथा स्वयं भी महान होने से ही इसका नाम हुआ "महावंस" (महावंस टीका)। इस टीका ग्रंथ की रचना "महानाम" स्थविर के हाथों हुई। आप दीघसंद सेनापति के बनाए विहार में रहते थे (महावंस टीका, पृ. 502)। दीघसंद सेनापति राजा देवानांप्रिय तिष्य का सेनापति था। "महावंस" पाँचवीं शताब्दी ई पू से चौथी शताब्दी ई तक लगभग साढ़े आठ सौ वर्षों का लेखा है। उसमें तथागत के तीन बार लंका आगमन का, तीनों बौद्ध संगीतियों का, विजय के लंका जीतने का, देवानांप्रिय तिष्य के राज्यकाल में अशोकपुत्र महेंद्र के लंका आने का, मगध से भिन्न भिन्न देशों में बौद्ध धर्म प्रचारार्थ भिक्षुओं के जाने का तथा बोधि वृक्ष की शाखा सहित महेंद्र स्थविर की बहन अशोकपुत्री संघमित्रा के लंका आने का वर्णन है। सिंहल के महापराक्रमी राजा दुष्टाग्रामणी से लेकर महासेन तक अनेक राजाओं और उनके राज्य काल का वर्णन है। इस प्रकार कहने को "महावंस" केवल सिंहल का इतिहासग्रंथ है, लेकिन वस्तुत: यह सारे भारतीय इतिहास की मूल उपादान सामग्री से भरा पड़ा है। "महावंस" की कथा महासेन के समय (325-352 ई) तक समाप्त हो जाती है। किंतु सिंहल द्वीप में इस "महावंस" का लिखा जाना आगे जारी रहा है। यह आगे का हिस्सा चूलवंस कहा जाता है। "महावंस" सैंतीसवें परिच्छेद की पचासवीं गाथा पर पहुँचकर एकाएक समाप्त कर दिया गया है। छत्तीस परिच्छेदों में प्रत्येक परिच्छेद के अंत में "सुजनों के प्रसाद और वैराग्य के लिये रचित महावंस का......परिच्छेद" शब्द आते हैं। सैंतीसवाँ परिच्छेद अधूरा ही समाप्त है। जिस रचयिता ने महावंस को आगे जारी रखा उसने इसी परिच्छेद में 198 गाथाएँ और जोड़कर इस परिच्छेद को "सात राजा" शीर्षक दिया। बाद के हर इतिहासलेखक ने अपने हिस्से के इतिहास को किसी परिच्छेद पर समाप्त न कर अगले परिच्छेद की भी कुछ गाथाएँ इसी अभिप्राय से लिखी प्रतीत होती हैं कि जातीय इतिहास को सुरक्षित रखने की यह परंपरा अक्षुण्ण बनी रहे। महानाम की मृत्यु के बाद महासेन (302 ई) के समय से दंबदेनिय के पंडित पराक्रमबाहु (1240-75) तक का महावंस धम्मकीर्ति द्वितीय ने लिखा। यह मत विवादास्पद है। उसके बाद से कीर्ति राजसिंह की मृत्यु (1815) के समय तक का इतिहास हिक्कडुवे सुमंगलाचार्य तथा बहुबंतुडावे पंडित देवरक्षित ने। 1833 में दोनों विद्वानों ने "महावंस"का एक सिंहली अनुवाद भी छापा। 1815 से 1935 तक का इतिहास यगिरल प्रज्ञानंद नायक स्थविर ने पूर्व परंपरा के अनुसार 1936 में प्रकाशित कराया। मूल महावंस की टीका के रचयिता का नाम भी महानाम है। किसी किसी का कहना है कि महावंस का रचयिता और टीकाकार एक ही है। पर यह मत मान्य नहीं हो सकता। महावंस टीकाकार ने अपनी टीका को "वंसत्थप्पकासिनी" नाम दिया है। इसकी रचना सातवीं आठवीं शताब्दी में हुई होगी। और स्वयं महावंस की? इसकी रचना महावंस टीका से एक दो शताब्दी पहले। धातुसेन नरेश का समय छठी शताब्दी है, उसी के आस पास इस महाकाव्य की रचना होनी चाहिए। .
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श्रीलंका
श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .
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जगन्नाथ मन्दिर, पुरी
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे। .
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कश्मीर
ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .
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असम
असम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा २४° १' उ॰अ॰-२७° ५५' उ॰अ॰ तथा ८९° ४४' पू॰दे॰-९६° २' पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है। .
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मदल पंजी और राजतरंगिणी के बीच तुलना
मदल पंजी 9 संबंध है और राजतरंगिणी 18 है। वे आम 6 में है, समानता सूचकांक 22.22% है = 6 / (9 + 18)।
संदर्भ
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