भू-आकृति विज्ञान और भूगोल के बीच समानता
भू-आकृति विज्ञान और भूगोल आम में 8 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्रशान्त महासागर, पृथ्वी, भौतिक भूगोल, भूगणित, महाद्वीप, महासागर, शैल, जलविज्ञान।
प्रशान्त महासागर
श्रेणी:प्रशान्त महासागर प्रशान्त महासागरप्रशान्त महासागर अमेरिका और एशिया को पृथक करता है। यह विश्व का सबसे बड़ा तथा सबसे गहरा महासागर है। तुलनात्मक भौगौलिक अध्ययन से पता चलता है कि इस महासागर में पृथ्वी का भाग कम तथा जलीय क्षेत्र अधिक है। .
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पृथ्वी
पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .
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भौतिक भूगोल
पृथ्वी के धरातल और वतावरण का रंगीन चित्र भौतिक भूगोल (Physical geography) भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता हैं। यह धरातल पर अलग अलग जगह पायी जाने वाली भौतिक परिघटनाओं के वितरण की व्याख्या व अध्ययन करता है, साथ ही यह भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, जन्तु विज्ञान और रसायनशास्त्र से भी जुड़ा हुआ है। इसकी कई उपशाखाएँ हैं जो विविध भौतिक परिघटनाओं की विवेचना करती हैं। .
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भूगणित
बेल्जियम के ओस्टेन्ड नामक स्थान पर स्थित एक पुराना भूगणितीय स्तम्भ (1855) भूगणित (Geodesy or Geodetics) भूभौतिकी एवं गणित की वह शाखा है जो उपयुक्त मापन एवं प्रेक्षण के आधार पर पृथ्वी के पृष्ठ पर स्थित बिन्दुओं की सही-सही त्रिबिम-स्थिति (three-dimensional postion) निर्धारित करती है। इन्ही मापनों एवं प्रेक्षणों के आधार पर पृथ्वी का आकार एवं आकृति, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तथा भूपृष्ट के बहुत बड़े क्षेत्रों का क्षेत्रफल आदि निर्धारित किये जाते हैं। इसके साथ ही भूगणित के अन्दर भूगतिकीय (geodynamical) घटनाओं (जैसे ज्वार-भाटा, ध्रुवीय गति तथा क्रस्टल-गति आदि) का भी अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी के आकार तथा परिमाण का और भूपृष्ठ पर संदर्भ बिंदुओं की स्थिति का यथार्थ निर्धारण हेतु खगोलीय प्रेक्षणों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में इतनी यथार्थता अपेक्षित है कि ध्रुवों (poles) के भ्रमण से उत्पन्न देशांतरों में सूक्ष्म परिवर्तनों पर और समीपवर्ती पहाड़ों के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर रेखा की त्रुटियों पर ध्यान देना पड़ता है। पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के ज्वारीय (tidal) प्रभाओं का भी ज्ञान आवश्यक है और चूँकि सभी थल सर्वेक्षणों में माध्य समुद्रतल (mean sea level) आधार सामग्री होता है, इसलिये माहासागरों के प्रमुख ज्वारों का भी अघ्ययन आवश्यक है। भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है। .
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महाद्वीप
महाद्वीपों को समाहित या विभाजित किया जा सकता है, उदाहरणतः यूरेशिया को प्रायः यूरोप तथा एशिया में विभाजित किया जाता है लाल रंग में। बक्मिन्स्टर फुलर द्वारा डायमैक्सियम नक्शा जो दर्शित करता है भूमिखण्ड कम से कम विरूपण समेत, एक एक लगातार महाद्वीप में बंटे हुए विश्व के महाद्वीप महाद्वीप (en:Continent) एक विस्तृत ज़मीन का फैलाव है जो पृथ्वी पर समुद्र से अलग दिखाई देतै हैं। महाद्वीप को व्यक्त करने के कोई स्पष्ट मापदण्ड नहीं है। अलग-अलग सभ्यताओं और वैज्ञानिकों नें महाद्वीप की अलग परिभाषा दी है। पर आम राय ये है कि एक महाद्वीप धरती बहुत बड़ा का विस्तृत क्षेत्र होता है जिसकी सीमाएं स्पष्ट पहचानी जा सके.
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महासागर
महासागर जलमंडल का प्रमुख भाग है। यह खारे पानी का विशाल क्षेत्र है। यह पृथ्वी का ७१% भाग अपने आप से ढांके रहता है (लगभग ३६.१ करोड वर्ग b किलोमीटर)| जिसका आधा भाग ३००० मीटर गहरा है। प्रमुख महासागर निम्नलिखित हैं: १ प्रशान्त महासागर (en:Pacific Ocean) २ अन्ध महासागर (en:Atlantic Ocean) ३ उत्तरध्रुवीय महासागर (en:Arctic Ocean) ४ हिन्द महासागर (en:Indian Ocean) ५ दक्षिणध्रुवीय महासागर(en:Antarctic Ocean) महासागर श्रेणी:जलसमूह.
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शैल
कलराडो स्प्रिंग्स कंपनी का गार्डेन ऑफ् गॉड्स में स्थित ''संतुलित शैल'' कोस्टा रिका के ओरोसी के निकट की चट्टानें पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। इनकी रचना विभिन्न प्रकार के खनिजों का सम्मिश्रण हैं। चट्टान कई बार केवल एक ही खनिज द्वारा निर्मित होती है, किन्तु सामान्यतः यह दो या अधिक खनिजों का योग होती हैं। पृथ्वी की पपड़ी या भू-पृष्ठ का निर्माण लगभग २,००० खनिजों से हुआ है, परन्तु मुख्य रूप से केवल २० खनिज ही भू-पटल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भू-पटल की संरचना में ऑक्सीजन ४६.६%, सिलिकन २७.७%, एल्यूमिनियम ८.१ %, लोहा ५%, कैल्सियम ३.६%, सोडियम २.८%, पौटैशियम २.६% तथा मैग्नेशियम २.१% भाग का निर्माण करते हैं। .
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जलविज्ञान
जलविज्ञान (Hydrology) विज्ञान की वह शाखा है जो जल के उत्पादन, आदान-प्रदान, स्त्रोत, सरिता, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, उतारचढ़ाव, प्रपात, बाँध, संभरण तथा मापन आदि से संबंधित है। जो जल वृष्टि द्वारा पृथ्वी पर गिरता है, वह प्रथम तो भूमि के प्राकृतिक गुरुत्व के कारण या तो भूमि के अंतस्तल में प्रविष्ट हो जाता है, या नाली और नालिकाओं द्वारा नदियों में जा गिरता है और वहाँ से पुन: सागरों में प्रवेश करता है। कुछ जल वाष्प रूप में वायुमंडल में मिश्रित हो जाता है, कुछ वनस्पतियों द्वारा भूगर्भ से खिंचकर वायु के संपर्क से वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाता है। पृथ्वी के अंतस्तल में प्रविष्ट जल का कुछ अंश स्त्रोतों द्वारा प्रकट होकर नदी, नालों या अन्य नीचे स्थलों पर प्रवाहित या संकलित होने लगता है। जब जल की मात्रा किसी कारण बहुत बढ़ जाती है, तो नदी, नाले बाढ़ अथवा बढ़ोत्तरी के रूप में बह निकलते हैं और यदाकदा बड़ी क्षति पहुँचाते हैं। वैसे तो पानी का बहाव प्रकृति के अकाट्य नियमों के अंतर्गत होता है, किंतु प्रत्येक स्थल की भूमि की रूपरेखा, वनस्पति, आबहवा और मनुष्य द्वारा बनाए हुए साधनों के कारण, पानी के बहाव में बहुत परिवर्तन हो जाता है। यदि किसी जगह कोई रोक हो तो उस रोक के कारण, पानी के बहाव का वेग बढ़ना आवश्यक है। इसीलिये पानी की वेगवती धारा के संपर्क में बड़ी बड़ी चट्टानें भी धीरे धीरे घुल जाती हैं। इसी कारण नदियों के मुहानों पर नदियों द्वारा लाई हुई रेत से नई भूमि बनती जाती है, जिसको डेल्टा (delta) कहते हैं। वास्तव में पृथ्वी पर बड़े बड़े मैदान, जैसे उत्तरी भारत में गंगा और सिंधु के विशाल मैदान, हिमालय से लाई हुई रेत के बने हुए हैं। इस बनावट में सहस्त्रों क्या करोड़ों वर्ष लगे होंगे। अब भी गंगा के मुहाने पर सुंदरवन आदि के क्षेत्र प्राकृतिक जलागमन द्वारा ही बढ़ते चले जा रहे हैं। पृथ्वी के अंतस्तल में भी जल की अनेक परतें स्थित हैं। कहीं कहीं जल पृथ्वी तल के समीप मिलता है और कहीं पर अधिक गहराई में। इस क्षेत्र में जलविज्ञान का संबंध भूगर्भ विद्या से हो जाता है। जलोत्पादन के निमित्त जहाँ बड़े बड़े कूप खोदे जाते हैं या कृत्रिम नलकूप बनाए जाते हैं, वहाँ यह प्रकट हाता है कि रेत की परतों में जो जल विद्यमान है, वह अवसर मिलने पर साधारण जलस्त्रोत के तल तक आ जाता है। कभी कभी जल पृथ्वी के गर्भ में प्रविष्ट होकर वहाँ उसी दशा में सहस्त्रों वर्ष पड़ा रहता है। कुछ जलराशि धीरे धीरे समुद्र की ओर भूगर्भ में प्रवाहित होती रहती है। इस दिशा में जलविज्ञान की प्रगति अभी बहुत सीमित है। प्रवाहित जल का मापन भी जलविज्ञान का एक विशेष अंग है। इसका प्रयोग विशेषत: भूमिसिंचन के साधनों में जलविद्युत्, पनचक्की आदि में होता है। आजकल के युग में तो बहुत से कारखानों में भी जल का प्रयोग ठंडक पहुँचाने अथवा जल द्वारा चालित मशीनों को चलाने के लिये होता है। अत: भिन्न भिन्न प्रकार की जलमापन की विधियों का होना अनिवार्य है। बड़ी नदियों में जब बाढ़ आती है, उस समय जलमापन एक समस्या बन जाता है, क्योंकि नदियों के तल में रेत और मिट्टी भी जल के साथ बहती चलती है। वैसे जलमापन के निमित्त बहुत से यंत्र बन चुके हैं, जैसे धारावेगमापी (Current meter) आदि वर्षा द्वारा प्राप्त जल के मापन के लिये जगह जगह यंत्र लगाए जाते हैं, जिससे इस बात का अनुमान हो सके कि कितना जल वर्षा द्वारा प्राप्त होता है, कितना नदियों द्वारा समुद्र में चला जाता हे, कितना भूगर्भ में प्रविष्ट हो जाता हे और कित वाष्प में परिवर्तित होता है। जल के आवागमन का यही ज्ञान साधारणतया जलविज्ञान कहलाता है। .
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
- क्या भू-आकृति विज्ञान और भूगोल लगती में
- यह आम भू-आकृति विज्ञान और भूगोल में है क्या
- भू-आकृति विज्ञान और भूगोल के बीच समानता
भू-आकृति विज्ञान और भूगोल के बीच तुलना
भू-आकृति विज्ञान 51 संबंध है और भूगोल 71 है। वे आम 8 में है, समानता सूचकांक 6.56% है = 8 / (51 + 71)।
संदर्भ
यह लेख भू-आकृति विज्ञान और भूगोल के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: