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भीष्मक

सूची भीष्मक

भीष्मक (रोमा) विदर्भ भोजवंशी शासक जो रुक्मिणी के पिता और कृष्ण के श्वसुर थे। इनकी राजधानी कुंडिनपुर नगरी थी। ये शिशुपाल तथा मगधराज जरासंध के प्रति भक्ति रखते थे। अपने अस्त्रकौशल के बल पर इन्होंने समूचे पांडव तथा बैशिक देशों पर आधिपत्य कर लिया था। पांडव सहदेव ने राजसूय यज्ञ के अवसर पर दो दिनों तक युद्ध करके इन्हें पराजित किया था। श्रेणी:भारतीय संस्कृति.

6 संबंधों: राजसूय, रुक्मिणी, शिशुपाल, सहदेव, जरासन्ध, कृष्ण

राजसूय

राजसूय वैदिक काल का विख्यात यज्ञ है। इसे कोई भी राजा चक्रवती सम्राट बनने के लिए किया करते थे। यह एक वैदिक यज्ञ है जिसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है। इस यज्ञ की विधी यह है की जिस किसी भी राजा को चक्रचती सम्राट बनना होता था वह राजसूय यज्ञ संपन्न कराकर एक अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया करता था। वह घोड़ा अलग-अलग राज्यों और प्रदेशों में फिरता रहता था। उस अश्व के पीछे-पीछे गुप्त रूप से राजसूय यज्ञ कराने वाले राजा के कुछ सैनिक भी हुआ करते थे। जब वह अश्व किसी राज्य से होकर जाता और उस राज्य का राजा उस अश्व को पकड़ लेता था तो उसे उस अश्व के राजा से युद्ध करना होता था और अपनी वीरता प्रदर्शित करनी होती थी और यदि कोई राजा उस अश्व को नहीं पकड़ता था तो इसका अर्थ यह था की वह राजा उस राजसूय अश्व के राजा को नमन करता है और उस राज्य के राजा की छत्रछाया में रहना स्वीकार करता है। रामायण काल में श्रीराम और महाभारत काल में महाराज युधिष्ठिर द्वारा यह यज्ञ किया गया था। .

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रुक्मिणी

रुक्मिणी भगवान कृष्ण की पत्नी थी। रुक्मिणी को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम विवाह किया था श्रेणी:कृष्ण.

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शिशुपाल

ग़शिशुपाल महाभारत कालीन चेदि राज्य का स्वामी था। महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२ में लिखा है-"चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं। यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है। पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते। यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं। सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं"। स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे। महाभारत में वर्णन है कि विदर्भराज के रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक पाँच पुत्र और एक पुत्री रुक्मणी थी। रुक्मणी सर्वगुण सम्पन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके माता-पिता उसका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे किन्तु रुक्म (रुक्मणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। अतः उसने रुक्मणी का टीका शिशुपाल के यहाँ भिजवा दिया। रुक्मणी कृष्ण पर आसक्त थी इसलिये उसने कृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। कृष्ण ने संदेश लाने वाले ब्राह्मण से कहा, "हे ब्राह्मण देवता! जैसा रुक्मणी मुझसे प्रेम करती हैं वैसे ही मैं भी उन्हीं से प्रेम करता हूँ। मैं जानता हूँ कि रुक्मणी के माता-पिता रुक्मणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं परन्तु उनका बड़ा भाई रुक्म मुझ से शत्रुता रखने के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है। तुम जाकर राजकुमारी रुक्मणी से कह दो कि मैं अवश्य ही उनको ब्याह कर लाउँगा।" कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह किया पर चेदिराज शिशुपाल ने इसे अपमान समझा और वह कृष्ण को अपना दुश्मन समझने लगा। युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ की तैयारी की तब सभी प्रमुख राजाओं को यज्ञ में आने का निमंत्रण दिया गया जिसमें चेदिराज शिशुपाल भी था। देवपूजा के समय कृष्ण का सम्मान देखकर वह जल गया और उनको गालियाँ देने लगा। उसके इन कटु वचनों की निन्दा करते हुये श्री कृष्ण के अनेक भक्त सभा छोड़ कर चले गये क्योंकि वे श्री कृष्ण की निन्दा नहीं सुन सकते थे। अर्जुन और भीमसेन अनेक राजाओं के साथ उसे मारने के लिये उद्यत हो गये किन्तु श्री कृष्ण ने उन सभी को रोक दिया। जब शिशुपाल श्री कृष्ण को एक सौ गाली दे चुका तब श्री कृष्ण ने गरज कर कहा, "बस शिशुपाल! अब मेरे विषय में तेरे मुख से एक भी अपशब्द निकला तो तेरे प्राण नहीं बचेंगे। मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसी लिये अब तक तेरे प्राण बचे रहे।" श्री कृष्ण के इन वचनों को सुन कर सभा में उपस्थित शिशुपाल के सारे समर्थक भय से थर्रा गये किन्तु शिशुपाल का विनाश समीप था, अतः उसने काल के वश होकर अपनी तलवार निकालते हुये श्री कृष्ण को फिर से गाली दी। शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कट कर गिर गया। मप्र के अशोकनगर जिले में है 'चंदेरी'। यहां एक किंवदंती सदियों से प्रचलित है। और वह यह कि यहां कभी ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी। यह बारिश द्वापरयुग में तब हुई थी, जब यहां का राजा शिशुपाल हुआ करता था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को अपमानित किया था। जिसके चलते भगवान ने उसका सिर, शरीर से सुदर्शन चक्र के द्वारा अलग कर दिया था। तब उसके राज्य चेदि (वर्तमान में संभवतः चंदेरी) में ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी। यह क्षेत्र बुंदेलखंड में आता है। सोने की बारिश तो द्वारयुग में हुई थी! लेकिन अलग-अलग तरह की बारिश होती रही है। इसका उल्लेख हमारे वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। .

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सहदेव

सहदेव महाभारत में पाँच पांडवों में से एक और सबसे छोटा था। वह माता माद्री के असमान जुड़वा पुत्रों में से एक थे, जिनका जन्म देव चिकित्सक अश्विनों के वरदान स्वरूप हुआ था। जब नकुल और सहदेव का जन्म हुआ था तब यह आकाशवाणी हुई की, ‘शक्ति और रूप में ये जुड़वा बंधु स्वयं जुड़वा अश्विनों से भी बढ़कर होंगे।’ .

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जरासन्ध

A painting from the Mahabharata Balabhadra fighting Jarasandha जरासंध महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश था। वह बहुत ही शक्तिशाली राजा था और उसका सपना चक्रवती सम्राट बनने का था। यद्यपि वह एक शक्तिशाली राजा तो था, लेकिन वह था बहुत क्रूर। अजेय हो क अपना सपना पूरा करने के लिए उसने बहुत से राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था। वह मथुरा के यदुवँशी नरेश कंस का ससुर एवं परम मित्र था उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा। जरासंध श्री कृष्ण का परम शत्रु और एक योद्धा था। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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