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भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो) के बीच अंतर

भाषा vs. रिपब्लिक (प्लेटो)

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। . रिपब्लिक (मूल यूनानी नाम: Πολιτεία / पॉलीतिया) प्लेटो द्वारा ३८० ईसापूर्व के आसपास रचित ग्रन्थ है जिसमें सुकरात की वार्ताएँ वर्णित हैं। इन वार्ताओं में न्याय (δικαιοσύνη), नगर तथा न्यायप्रिय मानव की चर्चा है। यह प्लेटो की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में विभिन्न व्यक्तियों के मध्य हुए लम्बे संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि हमारा न्याय से सरोकार होना चाहिए। रिपब्लिक के केन्द्रीय प्रश्न तथा उपशीर्षक न्याय से ही सम्बन्धित हैं, जिनमें वह न्याय की स्थापना हेतु व्यक्तियों के कर्तव्य-पालन पर बल देते हैं। प्लेटो कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा के तीन मुख्य तत्त्व हैं – तृष्णा या क्षुधा (Appetite), साहस (Spirit), बुद्धि या ज्ञान (Wisdom)। यदि किसी व्यक्ति की आत्मा में इन सभी तत्वों को समन्वित कर दिया जाए तो वह मनुष्य न्यायी बन जाएगा। ये तीनों गुण कुछेक मात्रा में सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं लेकिन प्रत्येक मनुष्य में इन तीनों गुणों में से किसी एक गुण की प्रधानता रहती है। इसलिए राज्य में इन तीन गुणों के आधार पर तीन वर्ग मिलते हैं। पहला, उत्पादक वर्ग – आर्थिक कार्य (तृष्णा), दूसरा, सैनिक वर्ग – रक्षा कार्य (साहस), तीसरा, शासक वर्ग – दार्शनिक कार्य (ज्ञान/बुद्धि)। प्लेटो के अनुसार जब सभी वर्ग अपना कार्य करेंगे तथा दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और अपना कर्तव्य निभाएंगे तब समाज व राज्य में न्याय की स्थापना होगी। अर्थात् जब प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगा, तब समाज में न्याय स्थापित होगा और बना रहेगा। .

भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो) के बीच समानता

भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो) आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): प्लेटो

प्लेटो

प्लेटो (४२८/४२७ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून, यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था। वह सुकरात (Socrates) का शिष्य तथा अरस्तू (Aristotle) का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति की दार्शनिक आधार तैयार किया। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। .

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भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो) के बीच तुलना

भाषा 22 संबंध है और रिपब्लिक (प्लेटो) 4 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.85% है = 1 / (22 + 4)।

संदर्भ

यह लेख भाषा और रिपब्लिक (प्लेटो) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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