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भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार और संविधान संशोधन

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार और संविधान संशोधन के बीच अंतर

भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार vs. संविधान संशोधन

मौलिक अधिकार भारत के संविधान के तीसरे भाग में वर्णित लोगों के मूल अधिकार हैं। ये अधिकार सभी भारतीय नागरिकों की नागरीक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं जैसे सभी भारत के लोग, भारतीय नागरिक के रूप में शान्ति के साथ समान रूप से जीवन व्यापन कर सकते हैं। . विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को संशोधन (amendment) कहते हैं। सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बना हुआ हो किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बँधी हुई है। भविष्य में आनेवाली और बदलनेवाली सभी परिस्थितियों की कल्पना वह संविधान के निर्माणकाल में नहीं कर सकता; अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की गुत्थियों के कारण भी संविधान में संशोधन, परिवर्तन करना वांछनीय एवं आवश्यक हो जाता है। संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख लिखित संविधान का आवश्यक अंग माना गया है। गार्नर के शब्दों में 'कोई भी लिखित संविधान इस प्रकार के उपबंधों के बिना अपूर्ण है'। संविधान के गुणावगुण परखने की कसौटी भी संशोधन की प्रक्रिया है - प्रक्रिया सरल है अथवा कठोर है। कुछ देशों के संविधान का संशोधन विधिनिर्माण की साधारण प्रक्रिया के अनुसार ही होता है। ऐसे संविधानों को नमनीय या सरल संविधान कहते हैं। इस प्रकार के संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण इंग्लैंड का संविधान है। कुछ संविधानों के संशोधन की प्रक्रिया के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया का आलंबन किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल एवं दुरूह होती है। ऐसे संविधान जटिल या अनममीय संविधान कहलाते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका का संविधान ऐसे संविधानों का सर्वोत्तम उदाहरण है। भारतीय गणतंत्र संविधान के संशोधन का कुछ अंश नमनीय है और कुछ अंश की अनमनीय प्रक्रिया है। इन दोनों विधियों को ग्रहण करने से देश के मौलिक सिद्धांतों का पोषण होगा और संविधान में परिस्थितियों के अनुकूल विकसित होने की प्रेरणाशक्ति भी होगी। .

भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार और संविधान संशोधन के बीच समानता

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संदर्भ

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