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भारत का संविधान और संसदीय राजभाषा समिति

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भारत का संविधान और संसदीय राजभाषा समिति के बीच अंतर

भारत का संविधान vs. संसदीय राजभाषा समिति

भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। . महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय राजभाषा विषय पर विचार-विमर्श किया था और यह निर्णय लिया कि देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूंप में अंगीकृत किया जाए। इसी आधार पर संविधान के अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। किन्तु, संविधान के निर्माण तथा अंगीकरण के समय यह परिकल्पना की गई थी कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए प्रारम्भिक 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं। परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की कालावधि पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की गई थी ताकि उक्त अन्तराल के बाद निर्बाध भाषाई-परिवर्तन हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा तैयारी की जा सके। संविधान के निर्माता इस बात के प्रति जागरूंक थे कि सभी क्षेत्रों में 1965 तक भाषाई परिवर्तन करना सम्भव न होगा। उन्हें यह भी आभास रहा होगा कि सुचारूं परिवर्तन के हित में 15 वर्ष की कालावधि के दौरान भी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के क्रमिक प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में भी संघ की राजभाषा के रूंप में हिंदी के विकास का संकेत दिया गया है। संविधान निर्माताओं ने इस भाषा के एक अखिल भारतीय रूंप की कल्पना की थी जो अन्य भारतीय भाषाओं की सहायता लेकर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा व्यापक रूंप से स्वीकार किए जाने की क्षमता प्राप्त कर सके। 1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। उक्त अधिनियम में, अन्य बातों के साथ-साथ, यह भी प्रावधान था कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक राजभाषा समिति गठित की जाए। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (3) के प्रख्यापन के दस वर्ष बाद इस समिति का गठन किया जाना था। समिति का गठन अधिनियम की धारा 4 के तहत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में संसद के 30 सदस्य होने का प्रावधान है, 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से। बाद में 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् समिति का पुनर्गठन हुआ है। समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं। सुलभ संदर्भ के लिए राजभाषा अधिनियम की धारा 4 को नीचे उद्धृत किया गया है.

भारत का संविधान और संसदीय राजभाषा समिति के बीच समानता

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