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भविष्य विज्ञान और यशयाह

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भविष्य विज्ञान और यशयाह के बीच अंतर

भविष्य विज्ञान vs. यशयाह

मूर नियम (मूर्ज़ लॉ) भविष्य विज्ञान का एक उदाहरण है भविष्य विज्ञान अध्ययन के उस क्षेत्र को बोलते हैं जिसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं और स्थितियों को समझने की कोशिश की जाती है। इस अध्ययन में भिन्न दृष्टिकोणों को लिया जाता है। उदाहरण के लिए अतीत और वर्तमान की स्थितियों के आधार पर भविष्य में उत्पन्न होने वाली चीज़ों की भविष्यवाणी की जा सकती है, जैसे की "मूर नियम" (Moore's Law, मूर्ज़ लॉ) नामक सिद्धांत में अतीत में हुए विकास को देखते हुए इलेक्ट्रोनिक सूक्ष्मीकरण में आने वाले विकास के बारे में भविष्यवानियाँ की गई हैं। या फिर कई संभावित घटनाओं की कल्पना की जा सकती है, ताकि उनसे निबटने की तैयारी की जा सके, जैसा की भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्‍लोबल वॉर्मिंग) के सन्दर्भ में समुद्र सतह उठने से तटीय इलाक़ों को ख़तरे, हिमानियों के घटने से भारत-चीन में पानी को लेकर झड़पें और फ़सलों को नुकसान की संभावनाओं को परखकर किया जा रहा है। भविष्य विज्ञान में किसी मनचाहे ध्येय को लेकर परिस्थितियों को उसके अनुकूल बनाने के प्रयास को भी गिना जाता है, जैसे की कुछ पूंजीवादी अपना पैसा चिकित्सा, जीव-विज्ञान और अनुवांशिकी में लगा रहे हैं ताकि आगे चलकर इन सभी में विकास और तालमेल होने से मानव जीवन को १५० वर्ष या उस से भी अधिक करने के जुगाड़ बन सकें। विशेषज्ञों और लेखकों में इस बात को लेकर मतभेद है के भविष्य विज्ञान वास्तव में विज्ञान है या कला। . यशयाह (लगभग 760 - 701 ई0 पूर्व) बाइबिल के पूर्वार्ध के मुख्य नबियों में सबसे महान्‌। वह राजधानी येरूसलेम के एक प्रभावशाली परिवार के थे। उन्होंने येरूसलेम में ही अपना सारा जीवन बिताया। एक परवर्ती अप्रामाणिक परंपरा के अनुसार आरे से उनका शरीर आरपार काटकर उनको मार डाला गया था। यशयाह येरूसलेम के मंदिर की पवित्रता तथा ईश्वर की पूजा के औचित्य की चिंता किया करते थे। ईश्वर के आदेश से उन्होंने यहूदियों के उत्तरी राज्य इसराइल तथा दक्षिणी राज्य यूदा, दोनों के विनाश की घोषणा की। दोनों राज्य बाद में क्रमश: नष्ट किए गए - 722 ई0 पू0 में असीरियों द्वारा और 586 ई0पू0 में बाबीलोनियो द्वारा। यशयाह ने इस विनाश को ईश्वर पर यहूदिययों के अविश्वास का दंड माना है। यहूदी लोग विदेशी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संधियों पर भरोसा रखते थे, किंतु यशयाह उनसे कहा करते थे कि ईश्वर पर ही भरोसा रखना चाहिए। बाइबिल के पूर्वार्ध में जो यशयाह नामक ग्रंथ समिलित है इसके प्रथम 39 अध्याय प्रामाणिक हैं। शेष अध्याय यशयाह की शिष्य परंपरा के एक नबी द्वारा लिखे गए हैं जो 550 ई0पू0 के लगभग बाबुल में प्रवासी यहूदियों के बीच रहते थे। इस अंश में दु:खश् भोगने वाले ईश्वरदास का जो चित्रण किया गया है। वह ईसा का प्रतीक माना जाता है। .

भविष्य विज्ञान और यशयाह के बीच समानता

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भविष्य विज्ञान और यशयाह के बीच तुलना

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संदर्भ

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