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भरणपोषण और माता-पिता

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भरणपोषण और माता-पिता के बीच अंतर

भरणपोषण vs. माता-पिता

विधि द्वारा कतिपय व्यक्ति बाध्य हैं कि वे कुछ व्यक्तियों का, जो उनसे विशेष संबंध रखते हैं, भरणपोषण करें। यही भरणपोषण (Maintenance, मेंटनेंस) या गुजारा पाने का अधिकार है। भरणपोषण में अन्न, वस्त्र एवं निवास ही नहीं वरन्‌ आधारित व्यक्ति के स्तर की सुख और सुविधा की वस्तुएँ भी सम्मिलित हैं। भरणपोषण पाने का अधिकार व्यक्तिगत विधि में भी प्रदत्त है और आपराधिक व्यवहारसंहिता धारा 488 में भी। हिंदू दत्तक एवं पोषण विधि, 1956, में इस अधिकार को विस्तृत कर दिया गया है। दो प्रकार के व्यक्ति भरणपोषण के अधिकारी हैं: 1. माता-पिता या जनक का अंग्रेजी अनुवाद अधिक प्रयोग में आता है, जिसे  parent शब्द से उल्लिखित किया जाता है। भारतीय सभ्यता में माता-पिता का एक विशिष्ट स्थान है उन्हें गुरु व भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। इसे अति सरल शब्दो में समझनें के लिये बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत में जितने भी अवतार आज तक हुए हैं, उन में से अधिकतर ने किसी न किसी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। चाहे भगवान श्री राम चन्द्र हो, श्री कृष्ण हो, श्री वामन अवतार हो, परशुराम अवतार हो या फिर संकट मोचन हनुमान हो। ये अवतार चाहे किसी भी भगवान ने लिया हो सब को किसी न किसी माता के गर्भ से जन्म लेना ही पड़ा है। अर्थात् हर अवतार को परिपूर्ण रूप से माता-पिता की स्नेह रूपी छाया में रह कर प्राम्भिक शिक्षा, संस्कार व आचार विहार सब कुछ ग्रहण करना पड़ता है। इस श्रेणी में पालक माता-पिता और पालक सम्बन्धी भी अन्तर्भूत होते हैं। जिसका सन्दर्भ श्रीकृष्ण की पालक/अभिभावक माता यशोदा और नन्द हैं। भारतीय सभ्यता का मूल रूप व आचरण सर्व प्र्थम माता-पिता द्वारा दी गई प्रारम्भिक शिक्षा पर ही निर्भर करता है। जिसके लिये भारतवर्ष पूर्णतय शक्ष्म है लेकिन इन्ही सस्कांरो,आचरणो व आचार विहार को खण्डित करने में उन सभी बाहरी ताकतो ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जिन्होने इस पावन धरती पर हजारों साल राज किया और हमारी धरोहर संस्कृति को तार-२ करने में कोई कसर नहीं छोडी। ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पूर्वज कितने गुणवान,सभ्य व स्ंस्कारी थे और भारत का इतिहास व स्ंरचना तो ऐसे कर्मठ योगियों,साधु-सन्तो व ऋषि-मुनियों द्वारा रचित की गई है जो अपने आप में उस समय के पुर्ण विज्ञानिक थे उनके एक-२ शोध वेदों व विज्ञानिक दृषिट से सम्पुर्ण थे। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का आदर करना,उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करना बच्चो का प्र्मुख कर्त्तव्य रहता है भारतीय समाज निर्माण में भी माता-पिता का एक विशिष्ठ स्थान है यह एक ऐसा सत्य है जिसके बीसीयों परिमाण हमारे देश में मौज़ूद है माता-पिता के आदर्शो पर चलने वाले असख्य्ं ऐसे महापुरषों के उदाहरण है जेसे:- आदर्श पुरुष श्री राम चन्द्र जी, श्रवण कुमार, महाराजा रण्जीत सिंह, शिवाजी महाराजा, शहिद भगत सिंह व अन्य कितनी विडम्बना है कि आज के परिपेक्ष में हम लोग ही अपनी धरोहर संस्कृति से दूर होते जा रहें है इन सब के अनेक कारण है जेसे:- संयुक्त परिवार चित्र:गुणराज अवस्थीको परिवार.jpg|संयुक्त परिवार संयुक्त परिवार का विघटन, हजारों साल की गुलामी,पाश्चात्य संस्कृति का बिना सोचे समझे अनुसरण,कार्य की अत्यधिक व्यस्तता, बडों के प्र्ति आदर-सम्मान की कमी व मोबाईल और नेट के अत्य्धिक प्रचलन ने भी हमें अपनो से ही दूर होने पर मजबुर कर दिया है इस का एक और अत्यधिक सवेदनशील् ज्जवलंत कारण है पेसा कमाने की होड में आज के परिपेक्ष में माता-पिता दोनो का नौकरी करना जिसकी वजह से आज के युग में भारतीय बच्चे अपने माता-पिता के सुख व उनके द्वारा दिये जाने वाले संस्कारो से वंचित रह रहे हैं दूसरे एकाकी परिवारवाद ने भी हमें अपने बजुर्गो के आशिर्वाद से हमें वंचित कर दिया है परन्तुं अभी भी आधुनिक् भारतीय परिपेक्ष में हमनें अपने वैदिक संस्कारों को नहीं भुला है माता-पिता जितना भी हो सके अपने बच्चों में भरतीय संस्कार देना नहीं भुलते। .

भरणपोषण और माता-पिता के बीच समानता

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भरणपोषण और माता-पिता के बीच तुलना

भरणपोषण 1 संबंध नहीं है और माता-पिता 10 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (1 + 10)।

संदर्भ

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