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ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु के बीच अंतर

ब्रह्मसूत्र vs. विज्ञानभिक्षु

ब्रहमसूत्र, हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। इसके रचयिता बादरायण हैं। इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरिक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस पर अनेक भाष्य भी लिखे गये हैं। वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं - उपनिषद्, भगवदगीता एवं ब्रह्मसूत्र। इन तीनों को प्रस्थान त्रयी कहा जाता है। इसमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं। ब्रह्म सूत्रों को न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है कि ये वेदान्त को पूर्णतः तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है। (न्याय . विज्ञानभिक्षु (1550 - 1600) भारत के दार्शनिक थे। वे एक प्रकार से सांख्य के अंतिम आचार्य हैं। इन्होंने ही सांख्यमत में ईश्वरवाद का समावेश किया था। इन्होंने तीन दर्शनों पर भाष्य-ग्रंथ लिखे हैं- सांख्यप्रवचनभाष्य (सांख्यसूत्र); योगवार्तिक (व्यासभाष्य), विज्ञानामृतभाष्य (ब्रह्मसूत्र)। विज्ञानभिक्षु पूरे औचित्य के साथ सांख्यसूत्र पर अपना भाष्य प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि सांख्य 'कालभक्षित' हो गया था। इस तंत्रप्रणाली को पुन: पुनर्जीवित करने के लिए ही वे प्रयत्नशील रहे हैं। लुप्त हुए सांख्य के स्वरुप निर्माण की दिशा में अग्रसर होते हुए वे सदैव उपनिषद् और पुराणों के युग के अनंतर वियुक्त होने वाले सांख्य और वेदांत में सामंजस्य स्थापित करनेके प्रति प्रयत्नशील थे। विज्ञानभिक्षु वेदान्त के प्रति भी आस्थाशील थे। 'विज्ञानामृत' नाम से ब्रह्मसूत्र पर उनका भाष्य इस तथ्य को प्रमाणित करता है। इस बात को स्वीकार करने के अनेक कारण विद्यमान हैं जिनके आधार पर बताया जा सकता है कि सांख्य दर्शन धीरे-धीरे वेदांत दर्शन में विलुप्त होता प्रतीत होता है। यहां तक कि विज्ञानभिक्षु ने वेदांतिक मिथ्या प्रतीति सूचक माया को सांख्य की यथार्थ प्रतीतिसूचक प्रकृति को एक समान प्रतिपादित किये जाने का प्रयत्न किया था। यही कारण है कि परवर्ती बौद्ध तार्किकों के आविर्भाव के फलस्वरुप मीमांसा करने के प्रयास में भले ही अनेक तत्वमनीषी अविभूत हुए पर सांख्यमतवाद का किसी भी दृष्टिकोण से गंभीर अध्ययन प्रस्तुत नहीं किया गया। वस्तुत: एक ऐसे संशोधन के बाद जिसने सांख्यदर्शन का वेदांत की परिधि में पहुंचा दिया था, सांख्य का एक स्वतंत्र संप्रदाय के रूप में अस्तित्व समाप्त हो चुका था। सांख्य दर्शन के संबंध में मूलत: इन दो परस्पर विरोधी मताग्रहों के निराकरण के लिए शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र हमारी पर्याप्त सहायता कर सकता है। लक्ष्य करने की बात है कि ब्रह्मसूत्र ने सांख्यदर्शन के खंडन पर अत्यधिक बल दिया था क्योंकि ब्रह्रमसूत्रकार सांख्य को अपना घोर प्रतिद्वंद्वी स्वीकार करता था और था भी, क्योंकि सांख्य के प्रधानवाद अथवा कारणवाद में जहां एक मूल-भौतिक तत्व को विश्व का आद्यकारण बताया गया था, अद्वैत वेदांत के मूल चेतन कारणवाद के नितांत विपरीत खड़ा था। यही कारण था कि ब्रह्मसूत्र के प्रथम चार सूत्रों में ब्रह्म तथा वेदांत ग्रंथो के स्वरुप के संबंध में कुछ मौलिक महत्व की बातों का स्पष्टीकरण करते ही ब्रह्म सूत्रकार तत्काल अगले सात सूत्रों में यह स्पष्ट करने के लिए व्यग्र हो उठते हैं कि ब्रह्म एक चेतन तत्व है, जिसका पृथक्करण सांख्य दर्शन के 'प्रधान'से किया जाना चाहिए जो अचेतन अथवा भौतिक होने के कारण विश्व का मूल नहीं हो सकता। .

ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु के बीच समानता

ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): भाष्य

भाष्य

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं। भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में जाने जाते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य और ब्रह्मसूत्रों पर शांकरभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं। .

ब्रह्मसूत्र और भाष्य · भाष्य और विज्ञानभिक्षु · और देखें »

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ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु के बीच तुलना

ब्रह्मसूत्र 17 संबंध है और विज्ञानभिक्षु 9 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.85% है = 1 / (17 + 9)।

संदर्भ

यह लेख ब्रह्मसूत्र और विज्ञानभिक्षु के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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