लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बीच अंतर

बौद्ध धर्म का इतिहास vs. विक्रमशिला विश्वविद्यालय

सम्राट अशोक (260–218 ई.पू.) के शिलालेखों के अनुसार उनके समय में ही बौद्ध धर्म का प्रसार दूर-दूर तक हो चुका था। सत्य और अहिंसा के मार्ग को दिखाने वाले भगवान बुद्ध दिव्य आध्यात्मिक विभूतियों में अग्रणी माने जाते हैं। भगवान बुद्ध के बताए आठ सिद्धांत को मानने वाले भारत समेत दुनिया भर में करोड़ो लोग हैं। भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म जीवन की पवित्रता बनाए रखना और पूर्णता प्राप्त करना है। साथ ही निर्वाण प्राप्त करना और तृष्णा का त्याग करना है। इसके अलावा भगवान बुद्ध ने सभी संस्कार को अनित्य बताया है। भगवान बुद्ध ने मानव के कर्म को नैतिक संस्थान का आधार बताया है। यानी भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है। जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे। और उन्होने ये भी बताया कि केवल विद्वान होना ही पर्याप्त नहीं है। विद्वान वही है जो अपने की ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे। धर्म को लोगों की जिंदगी से जोड़ते हुए भगवान बुद्ध ने बताया कि करूणा शील और मैत्री अनिवार्य है। इसके अलावा सामाजिक भेद भाव मिटाने के लिए भी भगवान बुद्ध ने प्रयास करते हुए बताया था कि लोगों का मुल्यांकन जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होना चाहिए। भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर दुनिया भर के करोड़ों लोग चलते है। जिससे वो सही राह पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं।तथागत गौतम बुद्ध अपने आपको भगवान या ईश्वर नहीं बताते है। बौद्ध धर्म का उद्भव एवं प्रसार . विक्रमशिला विश्वविद्यालय अतीश दीपंकर विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने ७७५-८०० ई० में की। इस विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के तुरन्त बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वानों की एक लम्बी सूची है। तिब्बत के साथ इस शिक्षा केन्द्र का प्रारम्भ से ही विशेष सम्बंध रहा है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। इन विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध दीपंकर श्रीज्ञान थे जो उपाध्याय अतीश के नाम से विख्यात हैं। विक्रमशिला का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में बारहवीं शताब्दी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या ३००० थी। विश्वविद्यालय के कुलपति ६ भिक्षुओं के एक मण्डल की सहायता से प्रबंध तथा व्यवस्था करते थे। कुलपति के अधीन ४ विद्वान द्वार-पण्डितों की एक परिषद प्रवेश लेने हेतु आये विद्यार्थियों की परीक्षा लेती थी। इस विश्वविद्यालय में व्याकरण, न्याय, दर्शन और तंत्र के अध्ययन की विशेष व्यवस्था थी। इस विश्वविद्यालय की व्यवस्था अत्यधिक सुसंगठित थी। बंगाल के शासक शिक्षा की समाप्ति पर विद्यार्थियों को उपाधि देते थे। सन १२०३ ई० में बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। यहाँ बौद्ध धर्म और दर्शन के अतिरिक्त न्याय, तत्त्वज्ञान, व्याकरण आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती थीं तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान विद्वान आचार्यों द्वारा किया जाता था। यहाँ देश से ही नहीं विदेशों से भी विद्याध्ययन के लिए छात्र आते थे। शिक्षा समाप्ति के बाद विद्यार्थी को उपाधि प्राप्त होती थी जो उसके विषय की दक्षता का प्रमाण मानी जाती थी। पूर्व मध्ययुग में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अतिरिक्त कोई शिक्षा केन्द्र इतना महत्त्वपूर्ण नहीं था कि सुदूर प्रान्तों के विद्यार्थी जहाँ विद्या अध्ययन के लिए जाएँ। इसीलिए यहाँ छात्रों की संख्या बहुत अधिक थी। यहाँ के अध्यापकों की संख्या ही ३००० के लगभग थी अतः विद्यार्थियों का उनसे तीन गुना होना तो सर्वथा स्वाभाविक ही था। इस विश्वविद्यालय के अनेकानेक विद्वानों ने विभिन्न ग्रंथों की रचना की, जिनका बौद्ध साहित्य और इतिहास में नाम है। इन विद्वानों में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- रक्षित, विरोचन, ज्ञानपाद, बुद्ध, जेतारि रत्नाकर शान्ति, ज्ञानश्री मिश्र, रत्नवज्र और अभयंकर। दीपंकर नामक विद्वान ने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की थी। वह इस शिक्षाकेन्द्र के महान प्रतिभाशाली विद्वानों में से एक थे। अब इस विश्वविद्यालय के केवल खण्डहर ही अवशेष हैं। .

बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बीच समानता

बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। .

बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्म का इतिहास · बौद्ध धर्म और विक्रमशिला विश्वविद्यालय · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बीच तुलना

बौद्ध धर्म का इतिहास 7 संबंध है और विक्रमशिला विश्वविद्यालय 16 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 4.35% है = 1 / (7 + 16)।

संदर्भ

यह लेख बौद्ध धर्म का इतिहास और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »