बालचर और भाषा
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बालचर और भाषा के बीच अंतर
बालचर vs. भाषा
स्काउट गाइड कार्यक्रम - एक जानकारी बेसिक शिक्षा परिषद् के सन्दर्भ में स्काउटिंग (Scouting) या बालचरी एक आन्दोलन है जिसमें बच्चों से बड़ो तक के उच्च् कोटि की नैतिकता व योग्यता का विकास किया जाता है। स्काउटिंग आन्दोलन के जनक राबर्ट स्टिफैंस स्मिथ बैडन पावेल थे। भारत स्काउटिंग 1913 में ऐनी बेसेन्ट द्वारा प्रारम्भ करायी थी। अब भारत स्काउट व गाइड संस्था है। युवा लोगो की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास का समर्थन करता है। 20 वीं सदी की पहली छमाही के दौरान, आंदोलन, लड़कों के लिऐ (शावक स्काउट, लड़के स्काउट, रोवर स्काउट) और 1910 में, एक नए संगठन, लड़की गाइड्स, लड़कियों के लिए बनाया गया था (ब्राउनी गाइड, लड़की गाइड और गर्ल स्काउट, रेंजर गाइड)। यह दुनिया भर में कई युवा संगठनों में से एक है। 1906 और 1907 में रॉबर्ट बादेन्-पॉवेल, ब्रिटिश सेना के लेफ्टिनेंट जनरल टोही और स्काउटिंग के बारे में लड़कों के लिए एक पुस्तक लिखी। बादेन्-पॉवेल फ्रेडरिक रसेल बर्नहैम (ब्रिटिश अफ्रीका में स्काउट्स के प्रमुख), वूद्क्रफट भारतीयों के अर्नेस्ट थॉम्पसन सेटोन्, विलियम अलेक्जेंडर स्मिथ के प्रभाव और समर्थन के साथ, सैन्य स्काउटिंग के बारे में अपने पहले के पुस्तकों के आधार पर, लड़कों के लिए स्काउटिंग (लंदन, 1908) लिखा है। 1907 की गर्मियों में बादेन-पॉवेल ने अपनी पुस्तक के लिए विचारों का परीक्षण करने के लिए इंग्लैंड में द्वीप पर एक शिविर का आयोजन किया। इस शिविर और 'लड़कों के लिए स्काउटिंग' के प्रकाशन आम तौर पर स्काउट आंदोलन की शुरुआत के रूप में माना जाता है। दो सबसे बड़ी छतरी संगठनों मे, 'स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन' (WOSM) 'लड़की गाइड्स और लड़की स्काउट्स के वर्ल्ड' एसोसिएशन (WAGGGS) है। वर्ष 2007 के व्यापक दुनिया स्काउटिंग की शताब्दी के रूप में चिह्नित है और सदस्य संगठनों के अवसर का जश्न मनाने के लिए घटनाओं की योजना बनाई है। . भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .
बालचर और भाषा के बीच समानता
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