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बहुसृत काठिन्य और विषाणु

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

बहुसृत काठिन्य और विषाणु के बीच अंतर

बहुसृत काठिन्य vs. विषाणु

मल्टिपल स्किलरोसिस (जिसे संक्षिप्त रूप से एम्एस कहा जाता है, प्रसृत उतक दृढ़न (disseminated sclerosis) या मस्तिष्क और सुषुम्ना प्रदाह के प्रसार (encephalomyelitis disseminata) के नाम से भी जाना जाता है) एक रोग है जिसमें मस्तिष्क तथा सुषुम्ना रज्जु शोथ के चारों ओर वसायुक्त माइलिन के आवरण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे माइलिन के आवरण नष्ट होने और घाव के निशान होने के साथ-साथ रोग के संकेत और लक्षणों के स्थूल क्रम उत्पन्न होते हैं। बीमारी की शुरुआत आम तौर पर युवा वयस्कों में पायी जाती है और यह महिलाओं में ज्यादा आम होती है। इसकी व्यापकता प्रति 100,000 2 से 150 के बीच होती है। एम्एस का वर्णन पहली बार 1868 में जीन मार्टिन चार्कोट के द्वारा किया गया। एम्एस मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं के एक दूसरे से संवाद करने की क्षमता को प्रभावित करता है। तंत्रिका कोशिकाएं लम्बे तंतुओं के नीचे कार्य क्षमता नामक विद्युत संकेत भेज कर संवाद स्थापित करते हैं जिन्हें तंत्रिकाक्ष कहा जाता है। वे माइलिन नामक एक रोधक पदार्थ में लिपटे हुए रहते हैं। एम्एस में, शरीर का अपना प्रतिरोधी तंत्र माइलिन पर हमला करता है और उसे नुकसान पहुंचाता है। जब माइलिन नष्ट हो जाता है तो तंत्रिकाक्ष प्रभावकारी ढंग से संकेतों को बिलकुल ही संचालित नहीं कर सकता है। मल्टिपल स्क्लेरोसिस (बहु उतक दृढ़न) मस्तिष्क और मेरु रज्जु (सुषुम्ना) के सफेद पदार्थ, जो मुख्य रूप से माइलिन का बना होता है, में घाव के निशानों को सूचित करता है। हालांकि बीमारी प्रक्रिया में शामिल रचना तंत्र के बारे में बहुत कुछ जाना जाता है, इसका कारण अज्ञात बना रहता है। सिद्धांत आनुवंशिकी या संक्रमणों को शामिल करते हैं। पर्यावरण संबंधी जोखिम उत्पन्न करने वाले विभिन्न कारक भी पाए गए हैं। बीमारी के साथ प्रायः कोई भी लक्षण और अक्सर शारीरिक और संज्ञानात्मक अक्षमता विकसित हो सकती है। एम्एस के विभिन्न रूप होते हैं, असतत दौरों में उत्पन्न होने वाले (बीमारी के पुनरावर्तन वाले रूप) या धीरे-धीरे संचित होने वाले (तेजी से फैलने वाले रूप). विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है। विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन १८८६ में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी १८९२ में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा। विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं। .

बहुसृत काठिन्य और विषाणु के बीच समानता

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