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बवंडर

सूची बवंडर

ओकलाहोमा में एक बवंडर। ''चिमनीकार'' सरंचना पतली नलीका की तरह है जो पृथ्वी से बादलों तक जाती है। इस बवंडर का नीचला भाग पारदर्शी धूल के बादलों से घिरा हुआ है जो सतह पर चलने वाली बवंडर की तेज हवाओं ने उपर उठा दिया है। बवंडर की हवा इसकी चिमनी की त्रिज्या से बहुत अधिक विस्तारित होती हैं। बवण्डर हवा के प्रचंडतापूर्वक चक्रन करने वाले स्तंभ को बवंडर (बवंडर) कहा जाता है जो पृथ्वी की सतह और कपासी वर्षी बादल दोनों को जोड़ता है। कुछ दुर्लभ अवस्थाओं में ऐसा भी पाया जाता है कि यह कपासी मेघ का आधार होता है। इन्हें अक्सर ट्विस्टर्स अथवा चक्रवात कहा जाता है। हालांकि मौसम विज्ञान में 'चक्रवात' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में अल्पदाब वाले परिसंचरण के लिये किया जाता है। बवंडर विभिन्न आकार और आकृतियों वाले होते हैं लेकिन वे आमतौर पर संक्षेपण कीप के रूप में खिखते हैं जिनका संकीर्ण भाग पृथ्वी की सतह को स्पर्श करता है और इसका दूसरा सिरा धूल के बादलों द्वारा घेर लिया जाता है। अधिकतर बवंडरों में हवा की गति से कम और लगभग से अधिक होती है तथा छितराने से पूर्व कुछ मीलों (कुछ किलोमीटर) तक चलता है। मुख्य चरम मान तक पहुँचने वाले बवंडर से भी अधिक गति प्राप्त कर सकते हैं तथा ३ किमी से भी अधिक विस्तारित हो सकते हैं एवं दर्ज़नों मील (सैकड़ों किलोमीटर) पृथ्वी की सतह पर चल सकते हैं। .

5 संबंधों: चक्रवात, पृथ्वी का वायुमण्डल, मौसम विज्ञान, कपासी बादल, कपासी वर्षी बादल

चक्रवात

फ़रवरी 27, 1987 को बेरिंट सागर के ऊपर ध्रुवीय ताप चक्रवात (साइक्लोन) घूमती हुई वायुराशि का नाम है। उत्पत्ति के क्षेत्र के आधार पर चक्रवात के दो भेद हैं.

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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मौसम विज्ञान

वायुवेगमापी ऋतुविज्ञान या मौसम विज्ञान (Meteorology) कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं। मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक इसमें खास प्रगति नहीं हो सकी थी। उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से इस क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी। मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन की दर (समय और दूरी के सापेक्ष) बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं। .

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कपासी बादल

कपासी बादलों (Cumulus clouds) की उत्पत्ति वायु की संवहनीय धाराओं के कारण होती है जिसके कारण ये ऊर्ध्वाधर रूप से विकसित होते हैं। इनके कपास के ढेर जैसा दिखने के कारण यह नाम है। शीत वाताग्र पर ऐसे बादल, वायु के ऊर्ध्वाधर रूप से ऊपर उठने के कारण बन जाते हैं। इसी प्रकार भारत में किसी-किसी अत्यधिक गर्म दिन में, जलवाष्प युक्त हवा के सीधे ऊपर उठने से ऐसे बादल बन जाते हैं। कपासी बादलों का ही एक प्रकार कपासी वर्षी बादल हैं जो बारिश भी करते हैं, वैसे सामान्य कपासी बादल साफ़ मौसम की सूचना देते हैं। साफ़ मौसम के बाद इनका दिखाना शीत वाताग्र के आने की सूचना होता है और थोड़ी देर बाद बारिश की भी। बारिश के बाद इनका दिखाना मौसम के साफ़ हो जाने की सूचना देता है। भारत में कपासी बादल सामान्य रूप से बारिश के गुजर जाने के बाद नीले आकाश में सफ़ेद रुई के गोलों जैसे दीखते हैं। .

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कपासी वर्षी बादल

कपासी वर्षा बादल कपासी वर्षी बादल लम्बवत रचना वाले बादल होते हैं अर्थात इनका विस्तार ऊंचाई में अधिक होता है। इस वज़ह से ये पर्वत सदृश या लम्ब्वत स्तम्भ के रूप में द्रष्टिगत होते हैं। इसके साथ वर्षा ओला तथा तड़ित झंझा की अधिक सम्भावना रहती है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

टॉरनैडो, टोरनाडो

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