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फेफड़ा और महाधमनी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

फेफड़ा और महाधमनी के बीच अंतर

फेफड़ा vs. महाधमनी

ग्रे की मानव शारीरिकी'', 20th ed. 1918. हवा या वायु में सांस लेने वाले प्राणियों का मुख्य सांस लेने के अंग फेफड़ा या फुप्फुस (जैसा कि इसे वैज्ञानिक या चिकित्सीय भाषा मे कहा जाता है) होता है। यह प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे उपस्थित होता है। फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पंजी होती है। यह वक्ष-गुहा में स्थित होता है। इसमें लहू का शुद्धीकरण होता है। प्रत्येक फेफड़ा में एक फुफ्फुसीय शिरा हिया से अशुद्ध लहू लाती है। फेफड़े में लहू का शुद्धीकरण होता है। लहू में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है। फेफडो़ का मुख्य काम वातावरण से प्राणवायु लेकर उसे लहू परिसंचरण मे प्रवाहित (मिलाना) करना और लहू से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटे छोटे पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं जिन्हें अल्वियोली कहा जाता है मे होता है। यह शुद्ध लहू फुफ्फुसीय धमनी द्वारा हिया में पहुँचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अवयवों मे पम्प किया जाता है। . महाधमनी एक सुअर महाधमनी खुला भी कुछ छोड़ने धमनियों दिखा कटौती. महाधमनी (Aorta) शरीर की सबसे बड़ी तथा मुख्य धमनी है, जो हृदय के बाएँ निलय (ventricle) से आरंभ होती है तथा जिसमें से ऑक्सीजनमिश्रित रक्त सारे शरीर की ऊतकों में ऑक्सीजन का संचारण करता है। यह धमनी दैहिक (systemic) एवं फुफ्फुसीय (pulmonary) रक्त परिवहन करती है तथा दैहिक कोशिकाओं और शिरातंत्रों से होती हुई, पुन: हृदय के दाहिने अलिंद (auricle) में वापस जाती है। बाएँ निलय से, जहाँ इसका व्यास प्राय: तीन सेंटीमीटर होता है, निकल तथा कुछ ऊपर चढ़कर, धनुषाकार मुड़कर, वक्ष में पृष्ठ कशेरुकाओं (vertebra) के बाईं ओर से उदरगुहा में प्रवेश करती है तथा चौथी कटि कशेरुका के पास दाहिनी तथा बाईं श्रोणिफलक (iliac) धमनियों में विभक्त हो जाती है। सरलता के लिये इसे अधिरोही महाधमनी, महाधमनी की चाप (arch) तथा अवरोही वक्षीय और उदरीय महाधमनी में विभाजित करते हैं। महाधमनी की संरचना (योजनामूलक) महाधमनी के उद्गम भाग के छिद्र पर, अर्धगोलाकार तथा जेब के आकार के तीन वाल्व हैं, जिन्हें त्रिवलन कपाट (Tricuspid valves) कहते हैं। इन वाल्वों का नतोदर भाग हृदय की ओर रहता है। बाएँ निलय से रक्तपरिवतन के समय रुधिर चाप के कारण इन वाल्वों का मुख्य खुल जाता है, जिससे हृदय से महाधमनी में रक्तसंचारक होता है, पर विपरीत दशा में जब बाएँ निलय में अनुशिथिलन (diastole) रहता है, तब महाधमनी के स्थितिस्थापक प्रतिक्षेप (recoil) के कारण रक्तचाप महाधमनी से हृदय की ओर हो जाता है। इस कारण तीनों वाल्व रक्तचाप से फूलकर बंद हो जाते हैं, जिससे रक्त संचरण की दिशा विपरीत नहीं होती और रक्त महाधमनी से बाएँ निलय में वापस नहीं आ सकता है। हाँ, कपाटिकाओं में जब रोग के कारण शोथ आदि उत्पन्न हो जाता है, उस दशा में वाल्व ठीक कार्य नहीं करते तथा उनका मुख खुला रह जाने से रक्तसंचारण विपरीत दिशा में होता है। इससे रक्त पुन: महाधमनी से बाएँ निलय में प्रवेश करता है, जिसके कारण रक्त संचालन में विकृति होती है तथा रोग उत्पन्न होने लगता है। .

फेफड़ा और महाधमनी के बीच समानता

फेफड़ा और महाधमनी आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): रक्त, हृदय

रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

फेफड़ा और महाधमनी के बीच तुलना

फेफड़ा 3 संबंध है और महाधमनी 9 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 16.67% है = 2 / (3 + 9)।

संदर्भ

यह लेख फेफड़ा और महाधमनी के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: