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फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा के बीच अंतर

फुफ्फुस कैन्सर vs. मेसोथेलियोमा

फुफ्फुस के दुर्दम अर्बुद (malignant tumor) को फुफ्फुस कैन्सर या 'फेफड़ों का कैन्सर' (Lung cancer या lung carcinoma) कहते हैं। इस रोग में फेफड़ों के ऊतकों में अनियंत्रित वृद्धि होने लगती है। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाय तो यह वृद्धि विक्षेप कही जाने वाली प्रक्रिया से, फेफड़े से आगे नज़दीकी कोशिकाओं या शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। अधिकांश कैंसर जो फेफड़े में शुरु होते हैं और जिनको फेफड़े का प्राथमिक कैंसर कहा जाता है कार्सिनोमस होते हैं जो उपकलीय कोशिकाओं से निकलते हैं। मुख्य प्रकार के फेफड़े के कैंसर छोटी-कोशिका फेफड़ा कार्सिनोमा (एससीएलसी) हैं, जिनको ओट कोशिका कैंसर तथा गैर-छोटी-कोशिका फेफड़ा कार्सिनोमा भी कहा जाता है। सबसे आम लक्षणों में खांसी (खूनी खांसी शामिल), वज़न में कमी तथा सांस का फूंलना शामिल हैं। फेफड़े के कैंसर का सबसे आम कारण तंबाकू के धुंए से अनावरण है, जिसके कारण 80–90% फेफड़े के कैंसर होता है। धूम्रपान न करने वाले 10–15% फेफड़े के कैंसर के शिकार होते हैं, और ये मामले अक्सर आनुवांशिक कारक, रैडॉन गैस, ऐसबेस्टस, और वायु प्रदूषण के संयोजन तथा अप्रत्यक्ष धूम्रपान से होते हैं। सीने के रेडियोग्राफ तथा अभिकलन टोमोग्राफी (सीटी स्कैन) द्वारा फेफड़े के कैंसर को देखा जा सकता है। निदान की पुष्टि बायप्सी से होती है जिसे ब्रांकोस्कोपी द्वारा किया जाता है या सीटी- मार्गदर्शन में किया जाता है। उपचार तथा दीर्घ अवधि परिणाम कैंसर के प्रकार, चरण (फैलाव के स्तर) तथा प्रदर्शन स्थितिसे मापे गए, व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करते हैं। आम उपचारों में शल्यक्रिया, कीमोथेरेपी तथा रेडियोथेरेपी शामिल है। एनएससीएलसी का उपचार कभी-कभार शल्यक्रिया से किया जाता है जबकि एससीएलसी का उपचार कीमोथेरेपी तथा रेडियोथेरेपी से किया जाता है। समग्र रूप से, अमरीका के लगभग 15 प्रतिशत लोग फेफड़े के कैंसर के निदान के बाद 5 वर्ष तक बचते हैं। पूरी दुनिया में पुरुषों व महिलाओं में फेफड़े का कैंसर, कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे आम कारण है और यह 2008 में वार्षिक रूप से 1.38 मिलियन मौतों का कारण था। . मेसोथेलियोमा, अधिक स्पष्ट रूप से असाध्य मेसोथेलियोमा (Malignant Mesothelioma), एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है, जो शरीर के अनेक आंतरिक अंगों को ढंककर रखनेवाली सुरक्षात्मक परत, मेसोथेलियम, से उत्पन्न होता है। सामान्यतः यह बीमारी एस्बेस्टस के संपर्क से होती है। प्लुरा (फेफड़ों और सीने के आंतरिक भाग का बाह्य-आवरण) इस बीमारी का सबसे आम स्थान है, लेकिन यह पेरिटोनियम (पेट का आवरण), हृदय, पेरिकार्डियम (हृदय को घेरकर रखने वाला कवच) या ट्युनिका वेजाइनलिस (Tunica Vaginalis) में भी हो सकती है। मेसोथेलियोमा से ग्रस्त अधिकांश व्यक्ति या तो ऐसे स्थानों पर कार्यरत थे जहां श्वसन के दौरान एस्बेस्टस और कांच के कण उनके शरीर में प्रवेश कर गये या फिर वे अन्य तरीकों से एस्बेस्टस कणों और रेशों के संपर्क में आए.

फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा के बीच समानता

फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा आम में 7 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): फेफड़ा, यक्ष्मा, शल्यचिकित्सा, ज्वर, कर्कट रोग, कीमोथेरेपी, अर्बुद

फेफड़ा

ग्रे की मानव शारीरिकी'', 20th ed. 1918. हवा या वायु में सांस लेने वाले प्राणियों का मुख्य सांस लेने के अंग फेफड़ा या फुप्फुस (जैसा कि इसे वैज्ञानिक या चिकित्सीय भाषा मे कहा जाता है) होता है। यह प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे उपस्थित होता है। फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पंजी होती है। यह वक्ष-गुहा में स्थित होता है। इसमें लहू का शुद्धीकरण होता है। प्रत्येक फेफड़ा में एक फुफ्फुसीय शिरा हिया से अशुद्ध लहू लाती है। फेफड़े में लहू का शुद्धीकरण होता है। लहू में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है। फेफडो़ का मुख्य काम वातावरण से प्राणवायु लेकर उसे लहू परिसंचरण मे प्रवाहित (मिलाना) करना और लहू से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटे छोटे पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं जिन्हें अल्वियोली कहा जाता है मे होता है। यह शुद्ध लहू फुफ्फुसीय धमनी द्वारा हिया में पहुँचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अवयवों मे पम्प किया जाता है। .

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यक्ष्मा

यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी (tubercle bacillus का लघु रूप) एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरिया, आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम तपेदिक के विभिन्न प्रकारों की वजह से होती है। क्षय रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह हवा के माध्यम से तब फैलता है, जब वे लोग जो सक्रिय टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं, खांसी, छींक, या किसी अन्य प्रकार से हवा के माध्यम से अपना लार संचारित कर देते हैं। ज्यादातर संक्रमण स्पर्शोन्मुख और भीतरी होते हैं, लेकिन दस में से एक भीतरी संक्रमण, अंततः सक्रिय रोग में बदल जाते हैं, जिनको अगर बिना उपचार किये छोड़ दिया जाये तो ऐसे संक्रमित लोगों में से 50% से अधिक की मृत्यु हो जाती है। सक्रिय टीबी संक्रमण के आदर्श लक्षण खून-वाली थूक के साथ पुरानी खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन घटना हैं (बाद का यह शब्द ही पहले इसे "खा जाने वाला/यक्ष्मा" कहा जाने के लिये जिम्मेदार है)। अन्य अंगों का संक्रमण, लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रस्तुत करता है। सक्रिय टीबी का निदान रेडियोलोजी, (आम तौर पर छाती का एक्स-रे) के साथ-साथ माइक्रोस्कोपिक जांच तथा शरीर के तरलों की माइक्रोबायोलॉजिकल कल्चर पर निर्भर करता है। भीतरी या छिपी टीबी का निदान ट्यूबरक्यूलाइन त्वचा परीक्षण (TST) और/या रक्त परीक्षणों पर निर्भर करता है। उपचार मुश्किल है और इसके लिये, समय की एक लंबी अवधि में कई एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से उपचार की आवश्यकता पड़ती है। यदि आवश्यक हो तो सामाजिक संपर्कों की भी जांच और उपचार किया जाता है। दवाओं के प्रतिरोधी तपेदिक (MDR-TB) संक्रमणों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बढ़ती हुई समस्या है। रोकथाम जांच कार्यक्रमों और बेसिलस काल्मेट-गुएरिन बैक्सीन द्वारा टीकाकरण पर निर्भर करती है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया की आबादी का एक तिहाई एम.तपेदिक, से संक्रमित है, नये संक्रमण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की दर से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, 2007 में विश्व में, 13.7 मिलियन जटिल सक्रिय मामले थे, जबकि 2010 में लगभग 8.8 मिलियन नये मामले और 1.5 मिलियन संबंधित मौतें हुई जो कि अधिकतर विकासशील देशों में हुई थीं। 2006 के बाद से तपेदिक मामलों की कुल संख्या कम हुई है और 2002 के बाद से नये मामलों में कमी आई है। तपेदिक का वितरण दुनिया भर में एक समान नहीं है; कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में जनसंख्या का 80% ट्यूबरक्यूलाइन परीक्षणों में सकारात्मक पायी गयी, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी का 5-10% परीक्षणों के प्रति सकारात्मक रहा है। प्रतिरक्षा में समझौते के कारण, विकासशील दुनिया के अधिक लोग तपेदिक से पीड़ित होते हैं, जो कि मुख्य रूप से HIV संक्रमण की उच्च दर और उसके एड्स में विकास के कारण होता है। .

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शल्यचिकित्सा

अति प्राचीन काल से ही चिकित्सा के दो प्रमुख विभाग चले आ रहे हैं - कायचिकित्सा (Medicine) एवं शल्यचिकित्सा (Surgery)। इस आधार पर चिकित्सकों में भी दो परंपराएँ चलती हैं। एक कायचिकित्सक (Physician) और दूसरा शल्यचिकित्सक (Surgeon)। यद्यपि दोनों में ही औषधो पचार का न्यूनाधिक सामान्यरूपेण महत्व होने पर भी शल्यचिकित्सा में चिकित्सक के हस्तकौशल का महत्व प्रमुख होता है, जबकि कायचिकित्सा का प्रमुख स्वरूप औषधोपचार ही होता है। .

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ज्वर

जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है। मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कीमोथेरेपी

रसोचिकित्सा (Chemotherapy) या रासाय चिकित्सा या रसायन चिकित्सा या कीमोथेरेपी एक ऐसा औषधीय उपचार है जो कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए दिया जाता है। कीमोथेरेपी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - कैमिकल अर्थात् रसायन और थेरेपी अर्थात् उपचार। क्सी को किस प्रकार की कीमोथेरेपी दी जाए, इसका निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि आपको किस प्रकार का कैंसर है। कीमोथेरेपी अकेले भी दी जा सकती है या सर्जरी अथवा रेडियोथेरेपी के साथ भी। .

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अर्बुद

अर्बुद, रसौली, गुल्म या ट्यूमर, कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि द्वारा हुई, सूजन या फोड़ा है जिसे चिकित्सीय भाषा में नियोप्लास्टिक कहा जाता है। ट्यूमर कैंसर का पर्याय नहीं है। एक ट्यूमर बैनाइन (मृदु), प्री-मैलिग्नैंट (पूर्व दुर्दम) या मैलिग्नैंट (दुर्दम या घातक) हो सकता है, जबकि कैंसर हमेशा मैलिग्नैंट होता है। .

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फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा के बीच तुलना

फुफ्फुस कैन्सर 43 संबंध है और मेसोथेलियोमा 27 है। वे आम 7 में है, समानता सूचकांक 10.00% है = 7 / (43 + 27)।

संदर्भ

यह लेख फुफ्फुस कैन्सर और मेसोथेलियोमा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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