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प्रेमचंद और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्रेमचंद और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) के बीच अंतर

प्रेमचंद vs. यथार्थवाद (हिंदी साहित्य)

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। . यथार्थवाद बीसवीं शती के तीसरे दशक के आसपास से हिन्दी साहित्य में पाई जाने वाली एक विशेष विचारधारा थी। इसके मूल में कुछ सामाजिक परिवर्तनों का हाथ था। जो परिवर्तन हुआ उसके मूलकारण थे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम, कम्यूनिस्ट आन्दोलन, वैज्ञानिक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर हुए विस्फोट, विश्व साहित्य में हुए परिवर्तनों का परिचय और आर्य समाज आदि सामाजिक आन्दोलन। यथार्थवादी लेखकों ने समाज के निम्नवर्ग के लोगों के दुखद जीवन का चित्रण किया। उनके उपन्यासों के नायक थे गरीव किसान, भिखमँगे, भंगी, रिक्शा चालक मज़दूर, भारवाही श्रमिक और दलित। इसके पहले कहानी साहित्य में ऐसे उपेक्षित वर्ग को कोई स्थान नहीं था। श्रेणी: साहित्यिक आंदोलन श्रेणी:बहुविकल्पी शब्द.

प्रेमचंद और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) के बीच समानता

प्रेमचंद और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): हिंदी साहित्य

हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

प्रेमचंद और हिंदी साहित्य · यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) और हिंदी साहित्य · और देखें »

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प्रेमचंद और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) के बीच तुलना

प्रेमचंद 127 संबंध है और यथार्थवाद (हिंदी साहित्य) 1 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 0.78% है = 1 / (127 + 1)।

संदर्भ

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