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प्राधिकार और राष्ट्र-राज्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्राधिकार और राष्ट्र-राज्य के बीच अंतर

प्राधिकार vs. राष्ट्र-राज्य

प्राधिकार (authority) किसी व्यक्ति, गुट या संस्थान के किसी विषय या क्षेत्र में निर्णय लेने व निर्णायक कार्य करने की ऐसी क्षमता को कहते हैं जो किसी राज्य द्वारा प्रदान की गई हो। ऐसी स्थितियों में राज्य अपनी राजशक्ति प्राधिकारित व्यक्ति या संस्थान के निर्णयों को मनवाने के लिये वचनबद्ध होता है। . राष्ट्र-राज्य उस राज्य (स्टेट) को कहते हैं जो राज्य की राजनैतिक सत्ता (entity) को उसकी सांस्कृतिक सत्ता से मिला देती है। .

प्राधिकार और राष्ट्र-राज्य के बीच समानता

प्राधिकार और राष्ट्र-राज्य आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): राज्य

राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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प्राधिकार और राष्ट्र-राज्य के बीच तुलना

प्राधिकार 1 संबंध नहीं है और राष्ट्र-राज्य 5 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 16.67% है = 1 / (1 + 5)।

संदर्भ

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