3 संबंधों: प्रादेशिक भूगोल, भारत का भूविज्ञान, भूविज्ञान।
प्रादेशिक भूगोल
प्रादेशिक भूगोल मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा है। इसके अन्तर्गत भौतिक एवं मानवीय समानताओं के आधार पर सम्पूर्ण धरातल का वर्गीकरण करके उनका अध्ययन किया जाता है। 'प्रदेश' से आशय एक ऐसे क्षेत्र से है जो किसी न किसी आधार पर अपने समीपवर्ती क्षेत्रों से अलग हो और विभेदित किया जा सके। प्रादेशिक भूगोल पृथ्वी को या इसके किसी हिस्से को किसी आधार पर प्रदेशों में विभाजित करने और उनका वर्णन करने वाला विज्ञान है। भूगोल के अंतर्गत प्रदेशवादी या प्रादेशिक चिंतनफलक का प्रभुत्व १९३० ई॰ से १९५० ई॰ तक रहा। रिचर्ड हार्टशोर्न इसके प्रमुख समर्थक थे और उनकी पुस्तक 'द नेचर ऑफ ज्याग्रफी' इस प्रदेशवादी चिंतन की अभूतपूर्व कृति है। शेफर नामक भूगोलवेत्ता ने जब इस विचारधारा की आलोचना इसे भूगोल में एक्सेप्शनलिज्म कह कर की और भूगोल को सिद्धांत या थिअरी खोजने वाला विज्ञान बनाने की वकालत की तबसे इस विचारधारा का प्रभाव कम हो गया। श्रेणी:मानव भूगोल श्रेणी:भौगोलिक चिन्तन.
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भारत का भूविज्ञान
भारत क काल-स्तरिक (chronostratigraphic) विभागों का मानचित्र भारत का भूवैज्ञानिक मानचित्र भारतीय भूवैज्ञानिक क्षेत्र व्यापक रूप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है.
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भूविज्ञान
पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .
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