प्राणिऊष्मा और श्लेष्मिक कला
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प्राणिऊष्मा और श्लेष्मिक कला के बीच अंतर
प्राणिऊष्मा vs. श्लेष्मिक कला
नर शेर के शरीर का तापलेखी (थर्मोग्राफिक) चित्र जंतुओं के शारीरिक क्रियाएँ, शारीरिक ऊष्मा के ह्रास के मार्ग तथा शरीर का ताप बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊष्मोत्पादन की रीति, ये सभी प्रस्तुत विषय के अंतर्गत आते हैं। विविध प्रकार के तापमापियों के आविष्कार ने उपर्युक्त बातों के अध्ययन में बड़ी सहायता पहुँचाई है। जंतु दो प्रकार के होते हैं: प्रथम समतापी (homeothermic), अर्थात् वे जिनके शरीर का ताप लगभग एक सा बना रहता हे। इस वर्ग में स्तनधारी, साधारणत: पालतू जानवर तथा पक्षी, आते हैं, जो उष्ण रक्तवाले भी कहे जाते हैं। द्वितीय असमतापी (poikilothermic), अर्थात् वे जिनके शरीर का ताप बाह्य वातावरण के अनुसार बदला करता है। इस वर्ग में कीड़े, साँप, छिपकली, कछुआ, मेढक, मछली आदि हैं, जो शीतरक्त वाले कहे जाते हैं। कुछ ऐसे भी जंतु हैं जो उष्ण ऋतु में उष्ण रक्त के, किंतु शीत ऋतु में, जब वे शीत निद्रा में रहते हैं, शीत रक्तवाले हो जाते हैं, जैसे हिममूष (marmot)। इस अवस्था में हिममूष का शारीरिक ताप ३७ डिग्री फा. मुख विवर के दाहिने की श्लेष्मिक झिल्ली (Right buccal mucosa) श्लेष्मिक कला या श्लेष्मल झिल्ली (mucous membrane या mucosa) वह झिल्ली है जो शरीर के आन्तरिक अंगों को घेरे रहती है और सभी गुहाओं (cavities) की सबसे ऊपरी परत होती है। श्लेष्मिक कला, उपकला कोशिकाओं के एक या अधिक परतों से बनी होती है। श्रेणी:शरीर रचना.
प्राणिऊष्मा और श्लेष्मिक कला के बीच समानता
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संदर्भ
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