प्राणिऊष्मा और विषाणु
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प्राणिऊष्मा और विषाणु के बीच अंतर
प्राणिऊष्मा vs. विषाणु
नर शेर के शरीर का तापलेखी (थर्मोग्राफिक) चित्र जंतुओं के शारीरिक क्रियाएँ, शारीरिक ऊष्मा के ह्रास के मार्ग तथा शरीर का ताप बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊष्मोत्पादन की रीति, ये सभी प्रस्तुत विषय के अंतर्गत आते हैं। विविध प्रकार के तापमापियों के आविष्कार ने उपर्युक्त बातों के अध्ययन में बड़ी सहायता पहुँचाई है। जंतु दो प्रकार के होते हैं: प्रथम समतापी (homeothermic), अर्थात् वे जिनके शरीर का ताप लगभग एक सा बना रहता हे। इस वर्ग में स्तनधारी, साधारणत: पालतू जानवर तथा पक्षी, आते हैं, जो उष्ण रक्तवाले भी कहे जाते हैं। द्वितीय असमतापी (poikilothermic), अर्थात् वे जिनके शरीर का ताप बाह्य वातावरण के अनुसार बदला करता है। इस वर्ग में कीड़े, साँप, छिपकली, कछुआ, मेढक, मछली आदि हैं, जो शीतरक्त वाले कहे जाते हैं। कुछ ऐसे भी जंतु हैं जो उष्ण ऋतु में उष्ण रक्त के, किंतु शीत ऋतु में, जब वे शीत निद्रा में रहते हैं, शीत रक्तवाले हो जाते हैं, जैसे हिममूष (marmot)। इस अवस्था में हिममूष का शारीरिक ताप ३७ डिग्री फा. विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है। विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन १८८६ में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी १८९२ में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा। विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं। .
प्राणिऊष्मा और विषाणु के बीच समानता
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