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प्राकृतिक उपग्रह और सौर मण्डल

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्राकृतिक उपग्रह और सौर मण्डल के बीच अंतर

प्राकृतिक उपग्रह vs. सौर मण्डल

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। . सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

प्राकृतिक उपग्रह और सौर मण्डल के बीच समानता

प्राकृतिक उपग्रह और सौर मण्डल आम में 27 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चन्द्रमा, टाइटन (चंद्रमा), टाइटेनिआ (उपग्रह), ट्राइटन (उपग्रह), टॅथिस (उपग्रह), ऍरिस (बौना ग्रह), ऍरिअल (उपग्रह), डायोनी (उपग्रह), प्लूटो (बौना ग्रह), बुध (बहुविकल्पी), बौना ग्रह, माकेमाके (बौना ग्रह), यूरोपा (उपग्रह), रिया (उपग्रह), शनि, हउमेया (बौना ग्रह), वरुण (ग्रह), खगोलीय वस्तु, गुरुत्वाकर्षण, ग्रह, गैनिमीड (उपग्रह), ओबेरॉन (उपग्रह), आऐपिटस (उपग्रह), आयो (उपग्रह), कलिस्टो (उपग्रह), क्षुद्रग्रह, अम्ब्रिअल (उपग्रह)

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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टाइटन (चंद्रमा)

टाइटन (या Τῑτάν), या शनि शष्टम, शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह वातावरण सहित एकमात्र ज्ञातचंद्रमा है, और पृथ्वी के अलावा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिसके सतही तरल स्थानों, जैसे नहरों, सागरों आदि के ठोस प्रमाण उपलब्ध हों। यूरोपीय-अमेरिकी के कासीनी अंतरिक्ष यान के साथ गया उसका अवतरण यान हायगन्स, १६ जनवरी २००४ को, टाइटन के धरातल पर उतरा जहां उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले जो चित्र भेजे। टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देख या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं था। २००८ अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की राजधानी रियो दी जनेरो में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ के सम्मेलन में ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता स्पष्ट होती है। ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे। .

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टाइटेनिआ (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी एक टाइटेनिआ की तस्वीर टाइटेनिआ अरुण (युरेनस) ग्रह का सब से बड़ा उपग्रह है। माना जाता है के यह चन्द्रमा बर्फ़ और पत्थर की लगभग बराबर मात्राओं से रचा हुआ है - इसकी सतह बर्फ़ीली है और अन्दर का हिस्सा पत्थरीला है। कुछ वैज्ञानिको की सोच है के बाहरी बर्फ़ और अंदरूनी पत्थर के बीच में एक पानी की तह होने की सम्भावना है, लेकिन इस बात का अभी कोई पक्का सबूत नहीं मिला है। सतही बर्फ़ में कुछ पदार्थों के मिले होने के कारण इस उपग्रह का रंग थोड़ा लाल प्रतीत होता है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से बड़े गढ्ढे भी हैं, जिनमें से एक भयंकर गढ्ढे का व्यास ३२६ किमी है। फिर भी देखा गया है के अरुण के एक अन्य उपग्रह ओबेरॉन पर इस से भी ज़्यादा गढ्ढे हैं। वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं की टाइटेनिआ पर शायद काफ़ी भूकम्पों के आने से बहुत से गढ्ढे भरे जा चुके हैं और अब नज़र नहीं आते। वॉयेजर द्वितीय यान के जनवरी १९८६ में अरुण के पास से गुज़रने पर टाइटेनिआ की बहुत से तस्वीरें ली गयी जिनके ज़रिये इसकी सतह के लगभग ४०% हिस्से के नक्शे बनाए जा चुके हैं। .

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ट्राइटन (उपग्रह)

ट्राइटन सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण (नॅप्टयून) का सबसे बड़ा उपग्रह है और हमारे सौर मण्डल के सारे चंद्रमाओं में से सातवा सब से बड़ा चन्द्रमा है। अगर वरुण के सारे चंद्रमाओं का कुल द्रव्यमान देखा जाए तो उसका ९९.५% इस एक उपग्रह में निहित है। ट्राइटन वरुण का इकलौता उपग्रह है जो अपने गुरुत्वाकर्षक खिचाव से अपना अकार गोल कर चुका है। बाक़ी सभी चंद्रमाओं के अकार बेढंगे हैं। ट्राइटन का अपना पतला वायुमंडल भी है, जिसमें नाइट्रोजन के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड भी मौजूद हैं। ट्राइटन की सतह पर औसत तापमान -२३५.२° सेंटीग्रेड है। १९८६ में पास से गुज़रते हुए वॉयेजर द्वितीय यान ने कुछ ऐसी तस्वीरें ली जिनमें ट्राइटन के वातावरण में बादलों जैसी चीज़ें नज़र आई थीं। ट्राइटन वरुण के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा में परिक्रमा में प्रतिगामी चाल रखता है और इसकी बनावट यम ग्रह (प्लूटो) से मिलती-जुलती है जिस से वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के ट्राइटन वरुण से दूर काइपर घेरे में बना था और भटकते हुए वरुण के पास जा पहुंचा जहाँ वह वरुण के तगड़े गुरुत्वाकर्षण की पकड़ में आ गया और तब से उसकी परिक्रमा कर रहा है। .

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टॅथिस (उपग्रह)

इथाका नाम की महान और लम्बी घाटी नज़र आ रही है कैसीनी यान द्वारा २४ दिसम्बर २००५ को ली गयी इस तस्वीर में ४५० किमी व्यास का ओडेसियस नामक प्रहार क्रेटर नज़र आ रहा है १९८१ में वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी टॅथिस की तस्वीर टॅथिस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का पाँचवा सब से बड़ा उपग्रह है। पूरे सौर मण्डल में यह १६वा सब से बड़ा उपग्रह है और अपने से छोटे सारे उपग्रहों के मिले हुए द्रव्यमान से बड़ा है। यह लगभग सारा-का-सारा ही पानी की बर्फ़ का बना है और इसमें मुश्किल से ६% भाग पत्थरीला है। इसका पक्का अनुमान नहीं लगाया जा पाया है के टॅथिस में पत्थर और बर्फ़ की अलग तहें हैं या पत्थर बर्फ़ में ही मिला हुआ है, लेकिन वैज्ञानिकों को यह ज्ञात हो गया है के अगर इसके केंद्र में पत्थर का एक अलग गोला है तो उस गोले का व्यास २९० किमी या उसे से कम ही होगा। टॅथिस पर उल्कापिंडों के बनाए हुए कई सरे प्रहार क्रेटर हैं। इसकी सतह पर बर्फ़ की बनी हुई पहाड़ियाँ और घाटियाँ देखी जा सकती हैं। उपग्रह के एक भाग में एक समतल मैदान भी देखा गया है। जिस दिशा में टॅथिस शनि की परिक्रमा कर रहा है उस तरफ के रुख़ पर एक ओडेसियस नाम का बड़ा क्रेटर है जिसका व्यास लगभग ४५० किमी है। ओडेसियस के बीच में एक २-४ किमी गहरा गड्ढा है जिसके इर्द-गिर्द ६-९ किमी लम्बी दीवारें हैं। टॅथिस की ज़मीन पर एक और बड़ी आकृति इथाका घाटी की है जो १०० किमी चौड़ी और ३ किमी गहरी है और पूरे चाँद के तीन-चौथाई हिस्से में २,००० किमी तक चलती है। टॅथिस की सतह का तापमान -१८७ डिग्री सेंटीग्रेड है। टॅथिस का व्यास (डायामीटर) लगभग १,०६६ किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी के चन्द्रमा का व्यास लगभग ३,४७० किमी है, यानि टॅथिस से क़रीब तिगुना। .

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ऍरिस (बौना ग्रह)

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई ऍरिस और डिस्नोमिया की तस्वीर - ऍरिस बड़ा वाला गोला है ऍरिस हमारे सौर मण्डल का सब से बड़ा ज्ञात बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६११९ ऍरिस" है। ऍरिस हमारे सौर मण्डल में सूरज की परिक्रमा करती सभी ज्ञात खगोलीय वस्तुओं में से नौवी सबसे बड़ी वस्तु है। इसका व्यास (डायामीटर) २,३००-२,४०० किमी अनुमानित किया जाता है। इसका द्रव्यमान (मास) यम (प्लूटो) से २७% ज़्यादा और पृथ्वी के द्रव्यमान का केवल ०.२७% है। ऍरिस की खोज सन् २००५ में की गयी थी। यह एक वरुण-पार वस्तु है (यानि वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा से भी बाहार है)। ऍरिस सूरज से बेहद दूर है और काइपर घेरे से भी बाहर एक बिखरे चक्र नाम के क्षेत्र में स्थित है। २०११ में यह सूरज से ९६.६ खगोलीय इकाई की दूरी पर था, जो प्लूटो से भी तीन गुना अधिक है। ऍरिस के इर्द-गिर्द इसका उपग्रह डिस्नोमिया परिक्रमा करता है। आज की तारीख़ में ऍरिस और डिस्नोमिया हमारे सौर मण्डल की सब से दूरी पर स्थित प्राकृतिक वस्तुएँ हैं। .

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ऍरिअल (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा १९८६ को ली गयी एक ऍरिअल की तस्वीर ऍरिअल अरुण (युरेनस) ग्रह का एक उपग्रह है। अकार में यह अरुण का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। ऍरिअल अरुण के सारे उपग्रहों में से सब से अधिक चमकदार है। अरुण के अन्य बड़े चंद्रमाओं की तरह, ऍरिअल भी बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। इसकी सतह बर्फ़ीली और अन्दर का केंद्रीय भाग पत्थरीला है। इसकी सतह बहुत ऊबड़-खाबड़ है और उसपर ऊंचे टीले और गहरी खाइयाँ दोनों दिखाई देती हैं। वॉयेजर द्वितीय यान के १९८६ में अरुण के पास से गुज़रने पर ऍरिअल की सतह के लगभग ३५% हिस्से के नक्शे बनाए जा चुके हैं। फ़िलहाल ऍरिअल का अध्ययन करने के लिए कोई और अंतरिक्ष यान भेजने की कोई योजना नहीं है। हालांकि अरुण के सारे बड़े उपग्रहों पर भूकम्पों के सुराग मिलते हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है के ऍरिअल पर आये हुए भूकंप सब से ताज़ा हैं। .

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डायोनी (उपग्रह)

कैसिनी द्वारा ली गयी डायोनी की तस्वीर जिसमें गाढ़े रंग वाला क्षेत्र भी नज़र आ रहा है इस चित्र में डायोनी के एक रुख़ पर बर्फ़ की चट्टानों के महीन बिछे हुए जले नज़र आ रहे हैं शनि के छल्लों के आगे डायोनी का एक दृश्य डायोनी हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। पूरे सौर मण्डल में यह १५वा सब से बड़ा उपग्रह है और अपने से छोटे सारे उपग्रहों के मिले हुए द्रव्यमान से बड़ा है। वैसे तो यह अधिकतर पानी की बर्फ़ का बना है, लेकिन टाइटन और ऍनसॅलअडस के बाद शनि का तीसरा सब से घनत्व वाला उपग्रह है, जिस से यह अनुमान लगाया जाता है के इसकी बनवात में आधे से थोड़ा कम (४६%) हिस्सा पत्थरीला है। जिस दिशा में यह परिक्रमा करता है, उस तरफ के रुख़ पर उल्कापिंडों के टकराव से बाने गए काफ़ी प्रहार क्रेटर हैं, जबकि दूसरे रुख़ पर चमकती हुई बर्फ़ की चट्टानों के जले बिछे हुए हैं। डायोनी का व्यास (डायामीटर) लगभग १,१२२ किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी के चन्द्रमा का व्यास लगभग ३,४७० किमी है, यानि क़रीब डायोनी से तिगुना। .

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प्लूटो (बौना ग्रह)

यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं। .

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बुध (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।

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बौना ग्रह

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण माकेमाके का काल्पनिक चित्रण डिस्नोमिया की तस्वीर हमारे सौरमण्डल में पाँच ज्ञात बौने ग्रह है: १) यम (प्लूटो) २) सीरीस ३) हउमेया ४) माकेमाके ५) ऍरिस श्रेणी:सौर मंडल श्रेणी:बौने ग्रह.

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माकेमाके (बौना ग्रह)

माकेमाके का काल्पनिक चित्रण हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गई माकेमाके की तस्वीर माकेमाके हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६४७२ माकेमाके" है। यह हमारे सौर मण्डल का तीसरा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका औसत व्यास (डायामीटर) १,३६० से १,४८० किमी के आसपास अनुमानित है, यानि यम (प्लूटो) का लगभग तीन-चौथाई। माकेमाके का कोई ज्ञात उपग्रह नहीं, जो काइपर घेरे की बड़ी वस्तुओं में असामान्य बात है। इसकी खोज २००५ में हुई थी। .

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यूरोपा (उपग्रह)

यूरोपा (Europa), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 3,138 किमी है जो हमारे चन्द्रमा से चंद किलोमीटर ही छोटा है। .

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रिया (उपग्रह)

कैसीनी अंतरिक्ष यान द्वारा ली गयी रिया की तस्वीर पृथ्वी (दाएँ), हमारे चन्द्रमा (ऊपर बाएँ) और रिया (नीचे बाएँ) के आकारों की तुलना रिया हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है। रिया सौर मण्डल के सारे उपग्रहों में से नौवा सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १६७२ में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी कैसीनी ने की थी। रिया के घनत्व को देखते हुए वैज्ञानिकों का अनुमान है के यह २५% पत्थर और ७५% पानी की बर्फ़ का बना हुआ है। इस उपग्रह का तापमान धूप पर निर्भर करता है। जहाँ धूप पड़ रही हो वहाँ इसका तापमान -१७४ डिग्री सेंटीग्रेड (९९ कैल्विन) है और जहाँ अँधेरा हो वहाँ यह गिरकर -२२० डिग्री सेंटीग्रेड (५३ कैल्विन) चला जाता है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से गढ्ढे हैं, जिनमें से दो तो बहुत ही बड़े हैं और ४०० से ५०० किमी का व्यास (डायामीटर) रखते हैं। .

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शनि

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हउमेया (बौना ग्रह)

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण हउमेया हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६१०८ हउमेया" है। यह हमारे सौर मण्डल का चौथा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका द्रव्यमान यम (प्लूटो) का एक-तिहाई है। हउमेया का औसत व्यास (डायामीटर) लगभग १,४३६ किमी है। इसकी खोज २००४ में की गयी थी। हउमेया का आकार सारे ज्ञात बौने ग्रहों में अनूठा है - जहाँ बाक़ी सब गोल हैं यह एक पिचका हुआ गोला है। हउमेया की चौड़ाई उसकी लम्बाई से दो गुना ज़्यादा है। इसके इस अजीब आकार के साथ-साथ इसमें कुछ और भी भिन्नताएँ हैं - यह बहुत तेज़ी से अपने घूर्णन अक्ष (ऐक्सिस) पर घूमता है और इसका घनत्व बाहरी सौर मण्डल के अन्य बौने ग्रहों से अधिक है। इन विशेषताओं को देखकर लगता है के हउमेया अतीत में किसी भयंकर टकराव का नतीजा है। .

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वरुण (ग्रह)

वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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गैनिमीड (उपग्रह)

गैनीमीड का अंदरूनी ढांचा - सब से बाहर सख़्त बर्फ़ की पर्त, फिर पानी का महासागर, फिर एक पथरीला गोला और केंद्र में लोहे और अन्य धातुओं का गोला गैनिमीड हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का भी सब से बड़ा चन्द्रमा है। इसका व्यास (डायामीटर) 5,268 किमी है, जो बुध ग्रह से भी 8% बड़ा है। इसका द्रव्यमान भी सौर मंडल के सारे चंद्रमाओं में सबसे ज़्यादा है और पृथ्वी के चन्द्रमा का 2.2 गुना है। .

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ओबेरॉन (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा २४ जनवरी १९८६ को ली गयी एक ओबेरॉन की तस्वीर ओबेरॉन अरुण (युरेनस) ग्रह का एक उपग्रह है। अकार में यह अरुण का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है (पहला स्थान टाइटेनिआ को जाता है)। टाइटेनिआ की तरह, ओबेरॉन भी बर्फ़ और पत्थर की लगभग बराबर मात्राओं से बना हुआ है। इसकी सतह बर्फ़ीली और अन्दर का केंद्रीय भाग पत्थरीला है। संभव है के बाहरी बर्फ़ और अंदरूनी पत्थर के बीच में एक पानी की मोटी परत हो, लेकिन इसका पूरा प्रमाण अभी नहीं मिल पाया है। सतही बर्फ़ में अन्य पदार्थों के मिले होने के कारण इस उपग्रह का रंग थोड़ा लाल है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से बड़े गढ्ढे भी हैं, जिनमें से सब से बड़े गढ्ढे का व्यास २१० किमी है। वॉयेजर द्वितीय यान के जनवरी १९८६ में अरुण के पास से गुज़रने पर ओबेरॉन की सतह के लगभग ४०% हिस्से के नक्शे बनाए जा चुके हैं। अरुण के पांच बड़े चंद्रमाओं में से ओबेरॉन सब से अधिक दूरी पर अरुण की परिक्रमा करता है। .

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आऐपिटस (उपग्रह)

कैसीनी यान से ली गयी आऐपिटस की तस्वीर जिसमें इसके दो अलग-अलग रंग वाले भाग साफ़ नज़र आ रहे हैं आऐपिटस की भूमध्य चट्टान का एक नज़दीकी चित्र आऐपिटस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है। आऐपिटस सौर मण्डल के सारे उपग्रहों में से ग्यारहवाँ सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १६७१ में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी कैसीनी ने की थी। आऐपिटस इस बात के लिए मशहूर है के उसके एक भाग का रंग काफ़ी हल्का है और दुसरे भाग का रंग बहुत ही गाढ़ा है। इस उपग्रह के ठीक मध्य रेखा में एक उठी हुई चट्टान देखी गयी है जो इस चाँद के आधे हिस्से तक चलती है। आऐपिटस का घनत्व काफ़ी कम है और वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के इसमें सिर्फ़ २०% पत्थर है और बाक़ी सब पानी की बर्फ़ है। .

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आयो (उपग्रह)

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .

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कलिस्टो (उपग्रह)

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का तीसरा सब से बड़ा चन्द्रमा है (बृहस्पति के ही गैनिमीड और शनि के टाइटन के बाद)। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 4,820 किमी है, जो बुध ग्रह का 99% है लेकिन बुध से काफ़ी घनत्व होने के कारण इसका द्रव्यमान बुध का केवल एक-तिहाई है। .

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क्षुद्रग्रह

क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह (English: Asteroid) अथवा ऐस्टरौएड एक खगोलिय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हे। यह आपने आकार में ग्रहो से छोटे और उल्का पिंडो से बड़े होते है। खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा पाया गया था और इसे मूल रूप से एक नया ग्रह माना जाता था। इसके बाद अन्य समान निकायों की खोज के बाद, जो समय के उपकरण के साथ, प्रकाश के अंक होने लगते हैं, जैसे सितारों, छोटे या कोई ग्रहिक डिस्क नहीं दिखाते हैं, हालांकि उनके स्पष्ट गति के कारण सितारों से आसानी से अलग हो सकते हैं। इसने खगोल विज्ञानी सर विलियम हर्शल को "ग्रह", शब्द को प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया, जिसे ग्रीस में ἀστεροειδής या एस्टरियोइड्स के रूप में तब्दील किया गया, जिसका अर्थ है 'तारा-जैसे, तारा-आकार', और प्राचीन ग्रीक ἀστήρ astér 'तारा, ग्रह से व्युत्पन्न '। उन्नीसवीं सदी के शुरुआती छमाही में, शब्द "क्षुद्रग्रह" और "ग्रह" (हमेशा "नाबालिग" के रूप में योग्य नहीं) अभी भी एक दूसरे का प्रयोग किया गया था पिछले दो शताब्दियों में एस्टरॉयड डिस्कवरी विधियों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है 18 वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में, बैरन फ्रांज एक्सवेर वॉन जैच ने 24 खगोलविदों के समूह को एक ग्रह का आयोजन किया, जिसमें आकाश के बारे में 2.8 एयू के बारे में अनुमानित ग्रह के लिए आकाश की खोज थी, जिसे टिटियस-बोद कानून द्वारा आंशिक रूप से खोज की गई थी। कानून द्वारा अनुमानित दूरी पर ग्रह यूरेनस के 1781 में सर विलियम हर्शल। इस काम के लिए ज़ोनियाकल बैंड के सभी सितारों के लिए हाथों से तैयार हुए आकाश चार्ट तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जो कि संवेदनाहीनता की सीमा के नीचे है। बाद की रातों में, आकाश फिर से सनदी जाएगा और किसी भी चलती वस्तु को उम्मीद है, देखा जाना चाहिए। लापता ग्रह की उम्मीद की गति प्रति घंटे 30 सेकंड का चाप था, पर्यवेक्षकों द्वारा आसानी से पता चला। मंगल ग्रह से पहले क्षुद्रग्रह छवि (सेरेस और वेस्ता) - जिज्ञासा (20 अप्रैल 2014) द्वारा देखा गया। पहला उद्देश्य, सेरेस, समूह के किसी सदस्य द्वारा नहीं खोजा गया था, बल्कि 1801 में सिसिली में पालेर्मो के वेधशाला के निदेशक ग्यूसेप पियाज़ी ने दुर्घटना के कारण नहीं खोजा था। उन्होंने वृषभ में एक नया सितारा की तरह वस्तु की खोज की और कई वस्तुओं के दौरान इस ऑब्जेक्ट के विस्थापन का अनुसरण किया। उस वर्ष बाद, कार्ल फ्रेडरिक गॉस ने इस अज्ञात वस्तु की कक्षा की गणना करने के लिए इन टिप्पणियों का इस्तेमाल किया, जो मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच पाया गया था। पियाजी ने इसे कृषि के रोमन देवी सेरेस के नाम पर रखा था। अगले कुछ वर्षों में तीनों क्षुद्रग्रहों (2 पल्लस, 3 जूनो और 4 वेस्ता) की खोज की गई, साथ में वेस्ता को 1807 में मिला। आठ वर्षों के व्यर्थ खोजों के बाद, अधिकांश खगोलविदों ने मान लिया था कि अब और नहीं और आगे की खोजों को छोड़ दिया गया था। हालांकि, कार्ल लुडविग हेन्के ने दृढ़ किया, और 1830 में अधिक क्षुद्रग्रहों की खोज करना शुरू कर दिया। पन्द्रह वर्ष बाद, उन्हें 38 अस्वास्थापों में पहला नया क्षुद्रग्रह पाया गया, जो 5 अस्त्रिया पाए गए। उन्होंने यह भी पाया 6 हेबे कम से कम दो साल बाद इसके बाद, अन्य खगोलविदों ने खोज में शामिल हो गए और इसके बाद हर वर्ष कम से कम एक नया क्षुद्रग्रह पाया गया (युद्धकालीन वर्ष 1 9 45 को छोड़कर) इस शुरुआती युग के उल्लेखनीय क्षुद्रग्रह शिकारी जे आर हिंद, एनीबेल डी गैसपरिस, रॉबर्ट लूथर, एचएमएस गोल्डस्मिथ, जीन चिकार्नाक, जेम्स फर्ग्यूसन, नॉर्मन रॉबर्ट पॉगसन, ईडब्ल्यू टेम्पाल, जेसी वाटसन, सीएफ़एफ़ पीटर्स, ए। बोरलिलली, जे। पॉलिसा, हेनरी भाई और अगस्टे चार्लोइस 1891 में, मैक्स वुल्फ ने क्षुद्रग्रहों का पता लगाने के लिए "आस्ट्रोफ़ोटोग्राफी" के इस्तेमाल की शुरुआत की, जो लंबे समय तक एक्सपोजर फोटोग्राफिक प्लेट्स पर छोटी धारियों के रूप में दिखाई दिए। इससे पहले दृश्य तरीकों की तुलना में नाटकीय रूप से पहचान की दर में वृद्धि हुई: वुल्फ ने केवल 248 क्षुद्रग्रहों की खोज की, 323 ब्रुसिया से शुरुआत करते हुए, जबकि उस समय तक केवल 300 से थोड़ा अधिक की खोज की गई थी यह ज्ञात था कि वहां बहुत अधिक थे, लेकिन अधिकांश खगोलविदों ने उनके साथ परेशान नहीं किया, उन्हें "आसमान की किरण" कहा, एडुआर्ड सूसे और एडमंड वेज़ के लिए अलग-अलग वाक्यांशों का श्रेय। यहां तक ​​कि एक सदी बाद, केवल कुछ हज़ार क्षुद्रग्रहों की पहचान की गई,क्षुद्रग्रह छोटे ग्रह हैं, विशेषकर इनर सौर मंडल के बड़े लोगों को ग्रहोइड कहा जाता है इन शब्दों को ऐतिहासिक रूप से किसी भी खगोलीय वस्तु पर लागू किया गया है जो कि सूर्य की परिक्रमा करता है, जो कि किसी ग्रह की डिस्क नहीं दिखाया था और सक्रिय धूमकेतु की विशेषताओं को देखते हुए नहीं देखा गया था। के रूप में बाहरी सौर मंडल में छोटे ग्रहों की खोज की गई और उन्हें ज्वालामुखी-आधारित सतहों को मिला जो कि धूमकेतु के समान थे, वे अक्सर क्षुद्रग्रह बेल्ट के क्षुद्रग्रहों से अलग थे। इस लेख में, "एस्टरॉयड" शब्द का अर्थ आंतरिक सौर मंडल के छोटे ग्रहों को संदर्भित करता है जिसमें उन सह-कक्षाओं में बृहस्पति शामिल हैं। वहाँ लाखों क्षुद्रग्रह हैं, बहुत से ग्रहों के बिखर अवशेष, सूर्य के सौर नेब्यूला के भीतर निकाले जाने वाले शरीर के रूप में माना जाता है, जो कि ग्रह बनने के लिए बड़े पैमाने पर कभी बड़ा नहीं बनता था। मंगल और बृहस्पति के कक्षाओं के बीच क्षुद्रग्रहों के बेल्ट में ज्ञात क्षुद्रग्रहों की बड़ी संख्या, या बृहस्पति (बृहस्पति ट्रोजन) के साथ सह-कक्षीय हैं। हालांकि, अन्य कक्षीय परिवारों में पास-पृथ्वी ऑब्जेक्ट्स सहित महत्वपूर्ण आबादी मौजूद है। व्यक्तिगत क्षुद्रग्रहों को उनके विशिष्ट स्पेक्ट्रा द्वारा वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें बहुमत तीन मुख्य समूहों में आती है: सी-टाइप, एम-प्रकार और एस-टाइप। इसका नाम क्रमशः कार्बन-समृद्ध, धातु, और सिलिकेट (पत्थर) रचनाओं के नाम पर रखा गया था। क्षुद्रग्रहों का आकार बहुत भिन्न होता है, कुछ तक पहुंचते हुए 1000 किमी तक पहुंचते हैं। क्षुद्रग्रहों को धूमकेतु और मेटोरोइड से विभेदित किया जाता है धूमकेतु के मामले में, अंतर संरचना में से एक है: जबकि क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज और चट्टान से बना है, धूमकेतु धूल और बर्फ से बना है इसके अलावा, क्षुद्रग्रहों ने सूरज के करीब का गठन किया, जो कि ऊपर उल्लिखित धूमकेतू बर्फ के विकास को रोकता है। क्षुद्रग्रहों और meteorids के बीच का अंतर मुख्य रूप से आकार में से एक है: उल्कापिंडों का एक मीटर से कम का व्यास है, जबकि क्षुद्रग्रहों का एक मीटर से अधिक का व्यास है। अंत में, उल्कामी द्रव्य या तो समृद्ध या क्षुद्रग्रहयुक्त पदार्थों से बना हो सकता है। केवल एक क्षुद्रग्रह, 4 वेस्ता, जो एक अपेक्षाकृत चिंतनशील सतह है, आमतौर पर नग्न आंखों के लिए दिखाई देता है, और यह केवल बहुत ही अंधेरे आसमान में है जब यह अनुकूल स्थिति है शायद ही, छोटे क्षुद्रग्रह पृथ्वी के नजदीक से गुजरते हैं, कम समय के लिए नग्न आंखों में दिखाई दे सकते हैं। मार्च 2016 तक, माइनर प्लैनेट सेंटर के आंतरिक और बाहरी सौर मंडल में 1.3 मिलियन से अधिक ऑब्जेक्ट्स पर डेटा था, जिसमें से 750,000 में पर्याप्त जानकारी दी गई पदनामों की जानी थी। संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की घोषणा की ताकि क्षुद्रग्रहों के बारे में जनता को शिक्षित किया जा सके। अंतर्राष्ट्रीय एस्टरॉयड दिवस की तारीख 30 जून 1 9 08 को साइबेरिया, रूसी संघ पर टंगुस्का क्षुद्रग्रह की सालगिरह की स्मृति मनाई जाती है।  .

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अम्ब्रिअल (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा १९८६ को ली गयी एक अम्ब्रिअल की तस्वीर अम्ब्रिअल अरुण (युरेनस) ग्रह का एक उपग्रह है। अकार में यह अरुण का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है। अम्ब्रिअल का रंग अरुण के सारे उपग्रहों में से सब से गाढ़ा है। अरुण के अन्य बड़े चंद्रमाओं की तरह, अम्ब्रिअल भी बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। इसकी सतह बर्फ़ीली और अन्दर का केंद्रीय भाग पत्थरीला है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से बड़े गढ्ढे भी हैं, जिनका व्यास २१० किमी तक पहुँचता है। कुछ टीले और खाइयाँ भी देखी गयी हैं। वॉयेजर द्वितीय यान के १९८६ में अरुण के पास से गुज़रने पर अम्ब्रिअल की सतह के लगभग ४०% हिस्से के नक्शे बनाए जा चुके हैं। .

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प्राकृतिक उपग्रह और सौर मण्डल के बीच तुलना

प्राकृतिक उपग्रह 34 संबंध है और सौर मण्डल 99 है। वे आम 27 में है, समानता सूचकांक 20.30% है = 27 / (34 + 99)।

संदर्भ

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