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प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के बीच अंतर

प्राकृत vs. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान

सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र । इसकी रचना मूलतः तीसरी-चौथी शताब्दी ईसापूर्व में की गयी थी। भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं में जो ग्रंथ रचे गए उन सबको समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाता है। विकास की दृष्टि से भाषावैज्ञानिकों ने भारत में आर्यभाषा के तीन स्तर नियत किए हैं - प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। प्राचीन स्तर की भाषाएँ वैदिक संस्कृत और संस्कृत हैं, जिनके विकास का काल अनुमानत: ई. पू. राजस्थान स्थापना। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान (Rajasthan Oriental Research Institute / RORI) राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित एक संस्थान है जो राजस्थानी संस्कृति एवं विरासत को संरक्षित रखने एवं उसकी उन्नति करने के उद्देश्य से स्थापित किया है। इसकी स्थापना १९५४ में मुनि जिनविजय के मार्गदर्शन में की गयी थी। मुनि जिनविजय रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य थे। भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने १९५५ में इसकी आधारशिला रखी। १४ सितम्बर १९५८ को इसका उद्घाटन हुआ। इसका मुख्यालय जोधपुर में है। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत और अन्य भाषाओँ में लिखे गए विभिन्न अप्रकाशित पांडुलिपियों और प्राचीन ग्रंथों की खोज और उनके प्रकाशन के लिए उत्तरदायी राजस्थान शासन द्वारा जोधपुर में सन १९५० में संस्थापित एक पंजीकृत स्वायत्तशासी समिति (सांस्कृतिक संस्थान) है जिसके संस्थापक निदेशक पद्मश्री मुनि जिनविजय थे। यहाँ संरक्षित कुछ पांडुलिपियाँ इस लिंक पर देखी जा सकती हैं- .

प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के बीच समानता

प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): पालि भाषा, संस्कृत भाषा, अपभ्रंश

पालि भाषा

ब्राह्मी तथा भाषा '''पालि''' है। पालि प्राचीन उत्तर भारत के लोगों की भाषा थी। जो पूर्व में बिहार से पश्चिम में हरियाणा-राजस्थान तक और उत्तर में नेपाल-उत्तरप्रदेश से दक्षिण में मध्यप्रदेश तक बोली जाती थी। भगवान बुद्ध भी इन्हीं प्रदेशो में विहरण करते हुए लोगों को धर्म समझाते रहे। आज इन्ही प्रदेशों में हिंदी बोली जाती है। इसलिए, पाली प्राचीन हिन्दी है। यह हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में की एक बोली या प्राकृत है। इसको बौद्ध त्रिपिटक की भाषा के रूप में भी जाना जाता है। पाली, ब्राह्मी परिवार की लिपियों में लिखी जाती थी। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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अपभ्रंश

अपभ्रंश, आधुनिक भाषाओं के उदय से पहले उत्तर भारत में बोलचाल और साहित्य रचना की सबसे जीवंत और प्रमुख भाषा (समय लगभग छठी से १२वीं शताब्दी)। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था है जो प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। अपभ्रंश के कवियों ने अपनी भाषा को केवल 'भासा', 'देसी भासा' अथवा 'गामेल्ल भासा' (ग्रामीण भाषा) कहा है, परंतु संस्कृत के व्याकरणों और अलंकारग्रंथों में उस भाषा के लिए प्रायः 'अपभ्रंश' तथा कहीं-कहीं 'अपभ्रष्ट' संज्ञा का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अपभ्रंश नाम संस्कृत के आचार्यों का दिया हुआ है, जो आपाततः तिरस्कारसूचक प्रतीत होता है। महाभाष्यकार पतंजलि ने जिस प्रकार 'अपभ्रंश' शब्द का प्रयोग किया है उससे पता चलता है कि संस्कृत या साधु शब्द के लोकप्रचलित विविध रूप अपभ्रंश या अपशब्द कहलाते थे। इस प्रकार प्रतिमान से च्युत, स्खलित, भ्रष्ट अथवा विकृत शब्दों को अपभ्रंश की संज्ञा दी गई और आगे चलकर यह संज्ञा पूरी भाषा के लिए स्वीकृत हो गई। दंडी (सातवीं शती) के कथन से इस तथ्य की पुष्टि होती है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि शास्त्र अर्थात् व्याकरण शास्त्र में संस्कृत से इतर शब्दों को अपभ्रंश कहा जाता है; इस प्रकार पालि-प्राकृत-अपभ्रंश सभी के शब्द 'अपभ्रंश' संज्ञा के अंतर्गत आ जाते हैं, फिर भी पालि प्राकृत को 'अपभ्रंश' नाम नहीं दिया गया। .

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प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के बीच तुलना

प्राकृत 20 संबंध है और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान 9 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 10.34% है = 3 / (20 + 9)।

संदर्भ

यह लेख प्राकृत और राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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