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प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य के बीच अंतर

प्रहसन vs. हास्य रस तथा उसका साहित्य

काव्य को मुख्यत: दो वर्गो में विभक्त किया गया है - श्रव्य काव्य और दृश्य काव्य। श्रव्य काव्य के अंतर्गत साहित्य की वे सभी विधाएँ आती हैं जिनकी रसानुभूति श्रवण द्वारा होती है जब कि दृश्य काव्य का वास्तविक आनंद मुख्यतया नेत्रों के द्वारा प्राप्त किया जाता है अर्थात् अभिनय उसका व्यावर्तक धर्म है। भरतमुनि ने दृश्य काव्य के लिये "नाट्य" शब्द का व्यवहार किया है। आचार्यों ने "नाट्य" के दो रूप माने हैं - रूपक तथा उपरूपक। इन दोनों के पुन: अनेक उपभेद किए गए हैं। रूपक के दस भेद है; प्रहसन इन्हीं में से एक है - नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामून, अंक, वीथी, प्रहसन। . जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं। जिह्वा के आस्वाद को लौकिक आनंद की कोटि में रखा गया है क्योंकि उसका सीधा संबंध लौकिक वस्तुओं से है। हृदय के आस्वाद को अलौकिक आनंद की कोटि में माना जाता है क्योंकि उसका सीधा संब .

प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य के बीच समानता

प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): विदूषक

विदूषक

कूडियाट्टम् में विदूषक विदूषक, भारतीय नाटकों में एक हँसाने वाला पात्र होता है। मंच पर उसके आने मात्र से ही माहौल हास्यास्पद बन जाता है। वह स्वयं अपना एवं अपने परिवेश का मजाक उडाता है। उसके कथन एक तरफ हास्य को जन्म देते हैं और दूसरी तरफ उनमें कटु सत्य का पुट होता है। .

प्रहसन और विदूषक · विदूषक और हास्य रस तथा उसका साहित्य · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य के बीच तुलना

प्रहसन 21 संबंध है और हास्य रस तथा उसका साहित्य 10 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.23% है = 1 / (21 + 10)।

संदर्भ

यह लेख प्रहसन और हास्य रस तथा उसका साहित्य के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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