प्रजनक व्याकरण और रूपक अलंकार
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प्रजनक व्याकरण और रूपक अलंकार के बीच अंतर
प्रजनक व्याकरण vs. रूपक अलंकार
प्रजनक व्याकरण (Generative grammar) एक भाषावैज्ञानिक सिद्धान्त है जो यह मानता है कि व्याकरण कुछ नियमों का एक ऐसा समूह है जो शब्दों का ठीक-ठीक वही क्रम उत्पन्न करेगा जो किसी प्राकृतिक भाषा में 'व्याकरनसम्मत वाक्य' के रूप में विद्यमान हों। 1965 में नोआम चाम्सकी ने अपनी पुस्तक 'ऐस्पेक्ट्स ऑफ द थिअरी ऑफ सिन्टैक्स' में लिखा था कि पाणिनीय व्याकरण (अष्टाध्यायी) 'प्रजनक व्याकरण' के आधुनिक परिभाषा के अनुसार, एक प्रजनन व्याकरण है। . रूपक साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं। उदाहरण- चरन कमल बन्दउँ हरिराई; अन्य अर्थ व्युत्पत्ति: जिसका कोई रूप हो। रूप से युक्त। रूपी। .
प्रजनक व्याकरण और रूपक अलंकार के बीच समानता
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संदर्भ
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