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पूँजी और प्रबन्ध विकास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पूँजी और प्रबन्ध विकास के बीच अंतर

पूँजी vs. प्रबन्ध विकास

पूँजी (Capital) साधारणतया उस धनराशि को कहते हैं जिससे कोई व्यापार चलाया जाए। किंतु कंपनी अधिनियम के अंतर्गत इसका अभिप्राय अंशपूँजी से हैं; न कि उधार राशि से, जिसे कभी कभी उधार पूँजी भी कहते हैं। प्रत्येक कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने सीमानियम में अंशपूँजी, जिसे रजिस्टर्ड, प्राधिकृत अथवा अंकित पूँजी कहते हैं, तथा उसके निश्चित मूल्य के अंशों में विभाजन का उल्लेख करे। प्राधिकृत पूँजी के कुछ भाग को निर्गमित (इशू) किया जा सकता है और शेष को आवश्यकतानुसार निर्गमित किया जा सकता है। निर्गमित भाग के अंशों के अंकित मूल्य को निर्गमित पूँजी कहते हैं। जनता जिन अंशों के क्रय के लिए प्रार्थनापात्र दे उनके अंकित मूल्य को प्रार्थित पूँजी (Subscribed captial) तथा अंशधारियों द्वारा जितनी राशि का भुगतान किया जाए उसे दत्तपूँजी (Paid captial) कहते हैं। कंपनी चाहे तो नए अंश निर्गमित करके अंशूपूँजी में वृद्धि कर सकती है, सभी या कुछ पूर्णदत्त अंशों को स्कंधों में परिवर्तित कर सकती है सभी या कुछ अंशों को कम कीमत के छोटे अंशों में परिवर्तित कर सकती है अथवा जिन अंशों का निर्गमन न हुआ हो उन्हें निरस्त कर सकती है। ये सब परिवर्तन तभी संभव हैं जब अंतिर्नियमों (आर्टिकल्स ऑव असोसिएशन) में इनकी व्यवस्था हो। अधिकतर कंपनियों में निम्न प्रकार के अंश होते हैं: 1. प्रबन्ध विकास (Management development) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक अपने प्रबन्धकीय कौशलों को सीखते है और उसे अधिक उन्नत बनाते हैं। किसी भी संगठन की सफलता में उसके प्रबन्धक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण होते हैं। सक्षम प्रबन्धकों की पर्याप्त संख्या के बिना, कोई भी संगठन दूसरे मूल्यवान संसाधनों जैसे- पूँजी, प्रौद्योगिकी एवं अन्य के होते हुए भी, विशिष्टता का स्थान ग्रहण करने की अपेक्षा नहीं कर सकता है। प्रत्येक संगठन में ये प्रबन्धक ही होते हैं जो कि संसाधनों एवं क्रियाकलापों का नियोजन संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण करते है। समय-समय पर, प्रबन्ध प्रतिभाओं के विकास के महत्व को मान्यता प्रदान किये जाने से, इन दिनों अधिकतर संगठन प्रबन्ध विकास पर अत्याधिक ध्यान देने लगे हैं। कुशल प्रबन्धक ही संगठनों को समयानुकूल निश्चित गति प्रदान कर सकते हैं। आने वाले समय में, जबकि व्यावसायिक वातावरण और भी अधिक गतिशील एवं जटिल हो जायेगा, तब प्रबन्धकों का महत्व भी उत्तरोत्तर बढ़ जायेगा। इसके अतिरिक्त, आधुनिक प्रबन्धक की महत्वपूर्ण धारणा यह है कि 'प्रबन्धक जन्मजात नहीं होते बल्कि विकसित किये जात हैं।' प्रबन्ध विकास, एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रबन्धक अपनी प्रबन्ध करने की योग्यताओं का विकास करते हैं। यह केवल शिक्षण क औपचारिक पाठ्यक्रम में सहभागिता का ही नहीं,बल्कि वास्तविक कार्य अनुभव का भी परिणाम होता है।प्रबन्ध विकास में संगठन की भूमिका, इसके वर्तमान तथा सम्भावित प्रबन्धकों के लिए कार्यक्रमों का आयोजन तथा विकास के अवसर प्रदान करने की होती है। .

पूँजी और प्रबन्ध विकास के बीच समानता

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पूँजी और प्रबन्ध विकास के बीच तुलना

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संदर्भ

यह लेख पूँजी और प्रबन्ध विकास के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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