पुराण और सुदर्शनाचार्य
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
पुराण और सुदर्शनाचार्य के बीच अंतर
पुराण vs. सुदर्शनाचार्य
पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। . जगद्गुरु सुदर्शनाचार्य (जन्म: 27 मई 1937, मृत्यु: 22 मई 2007) श्री रामानुजाचार्य द्वारा स्थापित वैष्णव सम्प्रदाय के एक प्रख्यात हिन्दू सन्त थे जिन्हें तपोबल से असंख्य सिद्धियाँ प्राप्त थीं। राजस्थान प्रान्त में सवाई माधोपुर जिले के पाड़ला ग्राम में एक ब्राह्मण जाति के कृषक परिवार में शिवदयाल शर्मा के नाम से जन्मे इस बालक को मात्र साढ़े तीन वर्ष की आयु में ही धर्म के साथ कर्तव्य का वोध हो गया था। बचपन से ही धार्मिक रुचि जागृत होने के कारण उन्होंने सात वर्ष की आयु में ही मानव सेवा का सर्वोत्कृष्ट धर्म अपना लिया था। वेद, पुराण व दर्शनशास्त्र का गम्भीर अध्ययन करने के उपरान्त उन्होंने बारह वर्ष तक लगातार तपस्या की और भूत, भविष्य व वर्तमान को ध्यान योग के माध्यम से जानने की अतीन्द्रिय शक्ति प्राप्त की। उन्होंने फरीदाबाद के निकट बढकल सूरजकुण्ड रोड पर 1990 में सिद्धदाता आश्रम की स्थापना की जो आजकल एक विख्यात सिद्धपीठ का रूप धारण कर चुका है। 1998 में हरिद्वार के महाकुम्भ में सभी सन्त महात्मा एकत्र हुए और सभी ने एकमत होकर उन्हें जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की। आश्रम में उनके द्वारा स्थापित धूना आज भी उनकी तपश्चर्या के प्रभाव से अनवरत उसी प्रकार सुलगता रहता है जैसा उनके जीवित रहते सुलगता था। सुदर्शनाचार्य तो अब ब्रह्मलीन (दिवंगत) हो गये परन्तु भक्तों के दर्शनार्थ उनकी चरणपादुकायें (खड़ाऊँ) उनकी समाधि के समीप स्थापित कर दी गयी हैं। सिद्धदाता आश्रम में आज भी उनके भक्तों का मेला लगा रहता है। यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय का हो, बिना किसी भेदभाव के प्रवेश की अनुमति है। वर्तमान में स्वामी पुरुषोत्तम आचार्य यहाँ आने वाले श्रद्धालु भक्तों की समस्या सुनते हैं और सिद्धपीठ की आज्ञानुसार उसका समाधान सुझाते हैं। यह आश्रम आजकल देश विदेश से आने वाले लाखों लोगों के लिये एक तीर्थस्थल बन चुका है। .
पुराण और सुदर्शनाचार्य के बीच समानता
पुराण और सुदर्शनाचार्य आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): हिन्दू, वैष्णव सम्प्रदाय, वेद।
शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .
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वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत चार सम्प्रदाय मुख्य रूप से आते हैं। पहले हैं आचार्य रामानुज, निमबार्काचार्य, बल्लभाचार्य, माधवाचार्य। इसके अलावा उत्तर भारत में आचार्य रामानन्द भी वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हुए और चैतन्यमहाप्रभु भी वैष्णव आचार्य है जो बंगाल में हुए। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को सगुण भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ - विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया। .
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वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.
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- पुराण और सुदर्शनाचार्य के बीच समानता
पुराण और सुदर्शनाचार्य के बीच तुलना
पुराण 89 संबंध है और सुदर्शनाचार्य 45 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 2.24% है = 3 / (89 + 45)।
संदर्भ
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