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पुनरुज्जीवन और यशयाह

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पुनरुज्जीवन और यशयाह के बीच अंतर

पुनरुज्जीवन vs. यशयाह

ईसाइयों का विश्वास है कि क्रूस पर मरने के बाद ईसा तीसरे दिन अपनी कब्र से उठकर पुनर्जीवित हुए थे। उसी घटना की स्मृति में पिनरुज्जीवन या पुनरुत्थान पर्व मनाया जाता है, जो ईसाई धर्म का प्राचीनतम और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। जिस समय ईसा का पुनरुत्थान हुआ था उस समय येरुसलेम में 'पास्का' नामक यहूदियों का सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता था। अत: ईसाइयों में ईसा का पुनरुत्थान पर्व भी पास्का कहलाता है। यहूदी लोग वसंत की प्रथम पूर्णिमा को पास्का मनाते थे, ईसाइयों का पुनरुत्थान पर्व भी वसंत के सयन (२१ मार्च) को ही अथवा इसके ठीक बाद पड़नेवाली पूर्णिमा के अनुसार निश्चित किया जाता है। उस पूर्णिमा के बाद के प्रथम इतवार को पुनरुत्थान पर्व मनाया जाता है, क्योंकि ईसा इतवार को पुनर्जीवित हुए थे। यहूदियों का पास्का पर्व बहुत प्राचीन था। वह पहले वसंतकालीन यज्ञ था, जिसमें झुंड के लिए आशीष माँगने के उद्देश्य से एक पशु का वलिदान चढ़ाया जाता था। बाद में जब यहूदी मिस्र देश की गुलामी से मुक्त हो गए थे, वह पर्व उस दासता की मुक्ति का स्मरणोत्सव बन गया। फिलिस्तीन देश में बस जाने के बाद जौ (यब) की फसल का त्योहार भी पास्का पर्व के साथ मिला दिया गया। सातवीं शती ई.पू. यशयाह (लगभग 760 - 701 ई0 पूर्व) बाइबिल के पूर्वार्ध के मुख्य नबियों में सबसे महान्‌। वह राजधानी येरूसलेम के एक प्रभावशाली परिवार के थे। उन्होंने येरूसलेम में ही अपना सारा जीवन बिताया। एक परवर्ती अप्रामाणिक परंपरा के अनुसार आरे से उनका शरीर आरपार काटकर उनको मार डाला गया था। यशयाह येरूसलेम के मंदिर की पवित्रता तथा ईश्वर की पूजा के औचित्य की चिंता किया करते थे। ईश्वर के आदेश से उन्होंने यहूदियों के उत्तरी राज्य इसराइल तथा दक्षिणी राज्य यूदा, दोनों के विनाश की घोषणा की। दोनों राज्य बाद में क्रमश: नष्ट किए गए - 722 ई0 पू0 में असीरियों द्वारा और 586 ई0पू0 में बाबीलोनियो द्वारा। यशयाह ने इस विनाश को ईश्वर पर यहूदिययों के अविश्वास का दंड माना है। यहूदी लोग विदेशी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संधियों पर भरोसा रखते थे, किंतु यशयाह उनसे कहा करते थे कि ईश्वर पर ही भरोसा रखना चाहिए। बाइबिल के पूर्वार्ध में जो यशयाह नामक ग्रंथ समिलित है इसके प्रथम 39 अध्याय प्रामाणिक हैं। शेष अध्याय यशयाह की शिष्य परंपरा के एक नबी द्वारा लिखे गए हैं जो 550 ई0पू0 के लगभग बाबुल में प्रवासी यहूदियों के बीच रहते थे। इस अंश में दु:खश् भोगने वाले ईश्वरदास का जो चित्रण किया गया है। वह ईसा का प्रतीक माना जाता है। .

पुनरुज्जीवन और यशयाह के बीच समानता

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संदर्भ

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