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पीसा और लोक संस्कृति

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पीसा और लोक संस्कृति के बीच अंतर

पीसा vs. लोक संस्कृति

यह इटली का एक प्रमुख नगर है। यह टस्कनी प्रदेश की राजधानी है। मध्य ऐतिहासिक काल तक यह नगर समुद्रतट पर स्थित था, परंतु आरनी नदी द्वारा मुहाने पर अवसादों के निरंतर संचय से समुद्र पीछे हट गया है। यह महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। यहाँ के मुख्य उद्योग धंधे हैं रेल का सामान, मोटरसाइकिल, बाईसिकिल, सूती वस्त्र, काँच तथा मिट्टी के बरतन, औषधियाँ, मकरोनी तथा दियासलाई बनाना। यह नगर संगमरमर की मूर्तियों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है तथा यहाँ रोमन एवं गोथिक वास्तुकला की सुंदर कृतियाँ मिलती हैं। महान गणितज्ञ तथा वैज्ञानिक गैलीलिओ का यह जन्मस्थान है। यहाँ विश्वप्रसिद्ध लीनिंग टावर ऑव पीज़ा अर्थात् पीज़ा की झुकी मीनार है, जो 179 फुट ऊँची है तथा लंब से लगभग 4 डिग्री झुकी हुई है। मीनार में आठ मंजिलें हैं। पीज़ा प्रांत: यह मध्य इटली के टस्कनी क्षेत्र का प्रदेश है। इसका क्षेत्रफल 1,419 वर्ग किलोमीटर है। श्रेणी:इटली. संस्कृति ब्रह्म की भाँति अवर्णनीय है। वह व्यापक, अनेक तत्त्वों का बोध कराने वाली, जीवन की विविध प्रवृत्तियों से संबन्धित है, अतः विविध अर्थों व भावों में उसका प्रयोग होता है। मानव मन की बाह्य प्रवृत्ति-मूलक प्रेरणाओं से जो कुछ विकास हुआ है उसे सभ्यता कहेंगे और उसकी अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों से जो कुछ बना है, उसे संस्कृति कहेंगे। लोक का अभिप्राय सर्वसाधारण जनता से है, जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर सामूहिक पहचान है। दीन-हीन, शोषित, दलित, जंगली जातियाँ, कोल, भील, गोंड (जनजाति), संथाल, नाग, किरात, हूण, शक, यवन, खस, पुक्कस आदि समस्त लोक समुदाय का मिलाजुला रूप लोक कहलाता है। इन सबकी मिलीजुली संस्कृति, लोक संस्कृति कहलाती है। देखने में इन सबका अलग-अलग रहन-सहन है, वेशभूषा, खान-पान, पहरावा-ओढ़ावा, चाल-व्यवहार, नृत्य, गीत, कला-कौशल, भाषा आदि सब अलग-अलग दिखाई देते हैं, परन्तु एक ऐसा सूत्र है जिसमें ये सब एक माला में पिरोई हुई मणियों की भाँति दिखाई देते हैं, यही लोक संस्कृति है। लोक संस्कृति कभी भी शिष्ट समाज की आश्रित नहीं रही है, उलटे शिष्ट समाज लोक संस्कृति से प्रेरणा प्राप्त करता रहा है। लोक संस्कृति का एक रूप हमें भावाभिव्यक्तियों की शैली में भी मिलता है, जिसके द्वारा लोक-मानस की मांगलिक भावना से ओत प्रोत होना सिद्ध होता है। वह 'दीपक के बुझने' की कल्पना से सिहर उठता है। इसलिए वह 'दीपक बुझाने' की बात नहीं करता 'दीपक बढ़ाने' को कहता है। इसी प्रकार 'दूकान बन्द होने' की कल्पना से सहम जाता है। इसलिए 'दूकान बढ़ाने' को कहता है। लोक जीवन की जैसी सरलतम, नैसर्गिक अनुभूतिमयी अभिव्यंजना का चित्रण लोक गीतों व लोक कथाओं में मिलता है, वैसा अन्यत्र सर्वथा दुर्लभ है। लोक साहित्य में लोक मानव का हृदय बोलता है। प्रकृति स्वयं गाती गुनगुनाती है। लोक जीवन में पग पग पर लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं। लोक साहित्य उतना ही पुराना है जितना कि मानव, इसलिए उसमें जन जीवन की प्रत्येक अवस्था, प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समय और प्रकृति सभी कुछ समाहित है। .

पीसा और लोक संस्कृति के बीच समानता

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पीसा और लोक संस्कृति के बीच तुलना

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संदर्भ

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