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पीला

सूची पीला

पीला एक रंग है जो कि मानवीय चक्षु के शंकुओं में लम्बे एवं मध्यम, दोनों तरंग दैर्घ्य वालों को प्रभावित करता है। यह वह वर्ण है, जिसमें लाल एवं हरा वर्ण बाहुल्य में, एवं नीला वर्ण न्यून हो। इस का तरंग दैर्घ्य 570–580 nm है। .

सामग्री की तालिका

  1. 20 संबंधों: नवीन, नीबू, नीला, भारत, मक्का, रंग, लाल, लाल हरा नीला रंग प्रतिरूप, शाकाहार, श्वेत, सम्मान, स्माइली, सृजन, सोना, सी एम वाई के वर्ण प्रतिरूप, हरा, हिन्दू धर्म, आयु, केला, केसर

  2. द्वितीयक वर्ण
  3. प्राथमिक वर्ण

नवीन

नवीन का अर्थ होता है नया। .

देखें पीला और नवीन

नीबू

नीबू का वृक्ष नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं। नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। .

देखें पीला और नीबू

नीला

नीला रंग वह है, जिसे प्रकाश के प्रत्यक्ष वर्णक्रम की 440–490 nm की तरंगदैर्घ्य द्वारा दृश्य किया जाता है। यह एक संयोजी प्राथमिक रंग है। इसका सम्पूरक रंग पीला है, यदि HSL एवं HSV वर्ण चक्र पर देखें तो। परंपरागत वर्णचक्र पर इसका सम्पूरक रंग है नारंगी। भारत का राष्ट्रीय क्रीडा़ रंग भी नीला ही है। यह धर्म-निर्पेक्षता दिखलाता है। .

देखें पीला और नीला

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

देखें पीला और भारत

मक्का

*मक्का (शहर)- सउदी अरब पवित्र शहर.

देखें पीला और मक्का

रंग

रंग प्रकाश का गुण है। इसके तीन गुण होते है- रंगत,मान,सघनता।वर्ण, चाक्षुक या आभासी कला के महत्वपूर्ण अंग हैं। वर्ण या रंग होते हैं, आभास बोध का मानवी गुण धर्म है, जिसमें लाल, हरा, नीला, इत्यादि होते हैं। रंग, मानवी आँखों की वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से से उत्पन्न होते हैं। रंग की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश जो हैं, जुड़े होते हैं वस्तु, प्रकाश स्त्रोत, इत्यादि की भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश अन्तर्लयन, विलयन, समावेशन, परावर्तन या वर्णक्रम उत्सर्ग पर निर्भर भी करते हैं। .

देखें पीला और रंग

लाल

लाल वर्ण को रक्त वर्ण भी कहा जाता है, कारण इसका रक्त के रंग का होना। लाल वर्ण प्रकाश की सर्वाधिक लम्बी तरंग दैर्घ्य वाली रोशनी या प्रकाश किरण को कहते हैं, जो कि मानवीय आँख द्वारा दृश्य हो। इसका तरंग दैर्घ्य लगभग625–740 nm तक होता है। इससे लम्बी तरंग को अधोरक्त कहते हैं, जो कि मानवीय चक्षु द्वारा दृश्य नहीं है। लाल रंग प्रकाश का संयोजी प्राथमिक रंग है, जो कि क्याना रंग का सम्पूरक है। लाल रंग सब्ट्रेक्टिव प्राथमिक रंग भी है RYB वर्ण व्योम में, परंतु CMYK वर्ण व्योम में नहीं। मानवीय रंग मनोविज्ञान में, लाल रंग जुडा़ है ऊष्मा, ऊर्जा एवं रक्त से, साथ ही वे भावनाएं जो कि रक्त से जुडी़ हैं। जैसे कि क्रोध, आवेश, प्रेम। .

देखें पीला और लाल

लाल हरा नीला रंग प्रतिरूप

संयोजी वर्ण मिश्रण का प्रदर्शन। प्राथमिक रंग के प्रकाश का प्रक्षेपण एक पटल पर, दर्शित करता है द्वितीयक या माध्यमिक रंग, जहाँ दो रंग आच्छादित होते हैं; एवं तीनों रंग लाल, हरा, व नीला जहाँ मिलते हैं, वहाँ श्वेत प्रकाश बनता है। RGB वर्ण प्रतिरूप मिश्रित वर्ण प्रतिरूप ही है, जिसमें तीनों रंग लाल, हरा, व नीला वर्णों के प्रकाश विभिन्न प्रकार से मिश्रित होकर वर्णों की एक विस्तृत सारणी का निर्माण करते हैं। इस प्रतिरूप का नामकरण तीनों रंगों, तीनों रंग लाल, हरा, व नीला के अँग्रेजी़ नाम के प्रथम अक्षर से जोङकर बना है। An RGB image, along with its separate R, G and B components; Note that the white snow consists of strong red, green and blue; the brown barn is composed of strong red and green with little blue; the dark green grass consists of strong green with little red or blue; and the light blue sky is composed of strong blue and moderately strong red and green.

देखें पीला और लाल हरा नीला रंग प्रतिरूप

शाकाहार

दुग्ध उत्पाद, फल, सब्जी, अनाज, बादाम आदि बीज सहित वनस्पति-आधारित भोजन को शाकाहार (शाक + आहार) कहते हैं। शाकाहारी व्यक्ति मांस नहीं खाता है, इसमें रेड मीट अर्थात पशुओं के मांस, शिकार मांस, मुर्गे-मुर्गियां, मछली, क्रस्टेशिया या कठिनी अर्थात केंकड़ा-झींगा आदि और घोंघा आदि सीपदार प्राणी शामिल हैं; और शाकाहारी चीज़ (पाश्चात्य पनीर), पनीर और जिलेटिन में पाए जाने वाले प्राणी-व्युत्पन्न जामन जैसे मारे गये पशुओं के उपोत्पाद से बने खाद्य से भी दूर रह सकते हैं। हालाँकि, इन्हें या अन्य अपरिचित पशु सामग्रियों का उपभोग अनजाने में कर सकते हैं। शाकाहार की एक अत्यंत तार्किक परिभाषा ये है कि शाकाहार में वे सभी चीजें शामिल हैं जो वनस्पति आधारित हैं, पेड़ पौधों से मिलती हैं एवं पशुओं से मिलने वाली चीजें जिनमें कोई प्राणी जन्म नहीं ले सकता। इसके अतिरिक्त शाकाहार में और कोई चीज़ शामिल नहीं है। इस परिभाषा की मदद से शाकाहार का निर्धारण किया जा सकता है। उदाहरण के लिये दूध, शहद आदि से बच्चे नहीं होते जबकि अंडे जिसे कुछ तथाकथित बुद्धजीवी शाकाहारी कहते है, उनसे बच्चे जन्म लेते हैं। अतः अंडे मांसाहार है। प्याज़ और लहसुन शाकाहार हैं किन्तु ये बदबू करते हैं अतः इन्हें खुशी के अवसरों पर प्रयोग नहीं किया जाता। यदि कोई मनुष्य अनजाने में, भूलवश, गलती से या किसी के दबाव में आकर मांसाहार कर लेता है तो भी उसे शाकाहारी ही माना जाता है। पूरी दुनिया का सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म भी शाकाहार पर आधारित है। इसके अतिरिक्त जैन धर्म भी शाकाहार का समर्थन करता है। सनातन धर्म के अनुयायी जिन्हें हिन्दू भी कहा जाता है वे शाकाहारी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति खुद को हिन्दू बताता है किंतु मांसाहार करता है तो वह धार्मिक तथ्यों से हिन्दू नहीं रह जाता। अपना पेट भरने के लिए या महज़ जीभ के स्वाद के लिए किसी प्राणी की हत्या करना मनुष्यता कदापि नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त एक अवधारणा यदि भी है कि शाकाहारियों में मासूमियत और बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज़्यादा होती है। नैतिक, स्वास्थ्य, पर्यावरण, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सौंदर्य, आर्थिक, या अन्य कारणों से शाकाहार को अपनाया जा सकता है; और अनेक शाकाहारी आहार हैं। एक लैक्टो-शाकाहारी आहार में दुग्ध उत्पाद शामिल हैं लेकिन अंडे नहीं, एक ओवो-शाकाहारी के आहार में अंडे शामिल होते हैं लेकिन गोशाला उत्पाद नहीं और एक ओवो-लैक्टो शाकाहारी के आहार में अंडे और दुग्ध उत्पाद दोनों शामिल हैं। एक वेगन अर्थात अतिशुद्ध शाकाहारी आहार में कोई भी प्राणी उत्पाद शामिल नहीं हैं, जैसे कि दुग्ध उत्पाद, अंडे और सामान्यतः शहद। अनेक वेगन प्राणी-व्युत्पन्न किसी अन्य उत्पादों से भी दूर रहने की चेष्टा करते हैं, जैसे कि कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन। अर्द्ध-शाकाहारी भोजन में बड़े पैमाने पर शाकाहारी खाद्य पदार्थ हुआ करते हैं, लेकिन उनमें मछली या अंडे शामिल हो सकते हैं, या यदा-कदा कोई अन्य मांस भी हो सकता है। एक पेसेटेरियन आहार में मछली होती है, मगर मांस नहीं। जिनके भोजन में मछली और अंडे-मुर्गे होते हैं वे "मांस" को स्तनपायी के गोश्त के रूप में परिभाषित कर सकते हैं और खुद की पहचान शाकाहार के रूप में कर सकते हैं। हालाँकि, शाकाहारी सोसाइटी जैसे शाकाहारी समूह का कहना है कि जिस भोजन में मछली और पोल्ट्री उत्पाद शामिल हों, वो शाकाहारी नहीं है, क्योंकि मछली और पक्षी भी प्राणी हैं।शाकाहारी मछली नहीं खाते हैं, शाकाहारी सोसाइटी, 2 मई 2010 को पुनःप्राप्त.

देखें पीला और शाकाहार

श्वेत

श्वेत रंग प्रत्यक्ष प्रकाश के सभी रंगों को मिलाने पर बनता है।.

देखें पीला और श्वेत

सम्मान

सम्मान एक अमूर्त अवधारणा है जो योग्यता और प्रतिष्ठा का आवेश है जो किसी व्यक्ति या संस्था जैसे कि परिवार, विद्यालय, रेजिमेंट या राष्ट्र के सामाजिक स्तर और स्व-मूल्यांकन दोनों को प्रभावित करता है। तदनुसार, व्यक्तियों (या संस्थानों) को विशिष्ट कार्यों के सामंजस्य के आधार पर मूल्य और कद प्रदान किया जाता है। कामुकता के संबंध में, पारम्परिक रूप से सम्मान "शुद्धता" या "कौमार्य" के साथ जुड़ा रहा है या विवाहित पुरुषों और महिलाओं के मामले में "निष्ठा" से। सम्मान की अवधारणा के महत्व में आधुनिक दुनिया में गिरावट आई है और अंत:करण ने इस की जगह ले ली है। एक संज्ञा के रूप में, सम्मान किसी पुरस्कार का उल्लेख भी कर सकता है। उदाहरण के लिये किसी राष्ट्र द्वारा दिए गए। इस तरह के सम्मान में सैन्य पदक शामिल होते हैं, लेकिन अधिकतर आम तौर पर इसका मतलब नागरिक पुरस्कार होता है, जैसे कि पद्म श्री, नाइटहुड या पाकिस्तानी निशान-ए–पाकिस्तान। .

देखें पीला और सम्मान

स्माइली

स्माइली (या हॅपी फेस) एक मुस्कुराते चेहरे का प्रतित है जो चलित संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। १९६३ में बनी पहली स्माइली का रूप सरल था जो एक पीले गोल में दो काले बिन्दु और एक गोलाकार चाप के साथ बना था। ये दो बिन्दु आँखे और गोलाकार चाप मुंह का प्रतिनिधित्व करते। दिसंबर १९६३ में डिजाइनर हार्वे रॉस बॉल ने इस स्माइली को सर्वप्रथम बनाया था। .

देखें पीला और स्माइली

सृजन

सृजन (Creativity) एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन का फल (products) में मौलिकता एवं सम्यकता (appropriateness) दोनो विद्यमान होते हैं। .

देखें पीला और सृजन

सोना

सोना या स्वर्ण (Gold) अत्यंत चमकदार मूल्यवान धातु है। यह आवर्त सारणी के प्रथम अंतर्ववर्ती समूह (transition group) में ताम्र तथा रजत के साथ स्थित है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक (isotope, द्रव्यमान 197) प्राप्त है। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियोधर्मी समस्थानिकों का द्रव्यमान क्रमश: 192, 193, 194, 195, 196, 198 तथा 199 है। .

देखें पीला और सोना

सी एम वाई के वर्ण प्रतिरूप

क्यान, रानी, पीला एवं कुंजी (काला) अर्ध-पारदर्शी काँच की रंगीन पर्तें दिखाती हैं, कि कैसे रंगों की पर्तें कागज़ पर मिश्रित होकर CMY वर्णों का वर्णक्रम बनाती हैं। .

देखें पीला और सी एम वाई के वर्ण प्रतिरूप

हरा

हरा एक रंग है। .

देखें पीला और हरा

हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

देखें पीला और हिन्दू धर्म

आयु

जीवनकाल को आयु कहते हैं, यद्यपि वय, अवस्था या उम्र को भी बहुधा आयु ही कह दिया जाता है। जीवित मानव, पशु, पक्षियों, कीट, पतन्‍गों, सूच्‍छम जीवियों, वनस्‍पतियों और र्निजीव पदार्थों के जन्‍म अथवा पैदा होंनें के समय से लेकर उस पदार्थ की मृत्‍यु अथवा समाप्‍त होंनें तक के समय को आयु से सम्‍बोधित करते हैं। विभिन्न प्राणियों की आयुओं में बड़ी भिन्नता है। एक प्रकार की मक्खी की आयु कुछ घंटों की ही होती है। उधर कछुए की आयु दो सौ वर्षों तक की होती है। आयु की सीमा मोटे हिसाब से शरीर की तौल के अनुपात में होती है, यद्यपि कई अपवाद भी हैं। कुछ पक्षी कई स्तनधारियों से अधिक जीवित रहते हैं। कुछ मछलियाँ १५० से २०० वर्षों तक जीवित रहती हैं, किंतु घोड़ा ३० वर्ष में मर जाता है। वृक्षों की रचना भिन्न होने से उनकी आयु की कोई मर्यादा नहीं है। अमरीका में कुछ वृक्षों को गिराने के बाद उनके वार्षिक वलयों से पता लगा कि वे २००० वर्षों से भी कुछ अधिक वय के थे। मृत्यु पर, अर्थात्‌ जीवन के अंत पर, अमीबा तथा अन्य प्रोटोज़ोआ ने विजय प्राप्त कर ली। एक से दो में विभक्त होकर प्रजनित होने से इन्होंने आयु की सीमा को लाँघ लिया है। इनकी अबाध जीवनधारा के कारण इन्हें अमर भी कहा जाता है। परंतु उन्नत वर्ग के प्राणियों में जीवन का अंत टालना असंभव है; इसलिए उन सभी की आयु सीमाबद्ध है। यह देखकर कि किसी प्राणी को प्रौढ़ होने में कितने वर्ष लगते हैं, उसकी पूरी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। मनुष्य का जीवनकाल १०० वर्ष आँका गया है। पिछले कई वर्षों में कई कारणों से मनुष्य का महत्तम काल तो अधिक नहीं बढ़ पाया है, किंतु औसत आयु बढ़ गई है। यह वृद्धि इसलिए हुई कि बच्चों को मृत्यु से बचाने में आयुर्विज्ञान (मेडिकल सायंस) ने बड़ी उन्नति की है। बुढ़ापे के रोगों में, विशेषकर धमनियों के कड़ी हो जाने की चिकित्सा में, विशेष सफलता नहीं मिली है। आनुवंशिकता और पर्यावरण का आयु पर बहुत प्रभाव पड़ता है। खोजों से पता चला है कि यदि प्रसव के समय की मृत्युओं की गणना न की जाय तो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक समय तक जीवित रहती हैं। यह भी निर्ववाद है कि दीर्घजीवी माता पिता की संतान साधारणत: दीर्घजीवी होती हैं। स्वस्थ वातावरण में प्राणी दीर्घजीवी होता है। जीव की जन्मजात बलशाली जीवनशक्ति बाहर के दूषित वातावरण के प्रभाव से प्राणी की बहुत कुछ रक्षा करती है, परंतु अधिक दूषित वातावरण रोगों के माध्यम से आयु पर प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त देखा गया है कि चिंता, अनुचित आहार तथा अस्वास्थ्यकारी पर्यावरण आयु घटाते हैं। दूसरी ओर, प्रतिदिन की मानसिक या शारीरिक कार्यशीलता बुढ़ापे के विकृत रूप को दूर रखती है। अंगों के जीर्ण शीर्ण हो जाने की आशंका की अपेक्षा अकार्यता से बेकार होने की संभावना अधिक रहती है। विश्व के अनेक लेखक और चित्रकार दीर्घजीवी हुए हैं और अंत तक वे नए ग्रंथ और नए चित्र की रचना करते रहे हैं। अनियमित आहार, अति सुरापान और अति भोजन आयु को घटाते हैं। सौ वर्ष से अधिक काल तक जीनेवाले व्यक्तियों में से अधिकांश लघु आहार करनेवाले रहे हैं। अधिक भोजन करने से बहुधा मधुमेह (डायबिटीज़) या धमनी, हृदय या वृक्क (गुरदे) का रोग हो जाता है। बुढ़ापा स्वस्थ और सुखद हो सकता है अथवा रोगग्रस्त, पीड़ामय और दु:खद। स्वस्थ बुढ़ापे में क्रियाशीलता कम हो जाती है और कुछ दुर्बलता आ जाती है, परंतु मन शांत रहता है। मानसिक दृष्टिकोण साधारणत: व्यक्ति के पूर्वगामी दृष्टिकोण पर निर्भर रहता है, जिससे कुछ व्यक्ति सुखी और दयालु रहते हैं, कुछ निराशावादी और छिद्रान्वेषी। श्टाइनाख और वोरोनॉफ़ ने बंदर की ग्रंथियों को मनुष्य में आरोपित करके अल्पकालीन युवावस्था कुछ लोगों में ला दी थी, परंतु उनकी रीतियों को अब कोई पूछता भी नहीं। उनकी शल्यक्रिया में मनुष्य का जीवन बढ़ नहीं सका। कुछ रोगों से मनुष्य समय के बहुत पहले बुड्ढा लगने लगता है। प्रोजीरिया नामक रोग में तो बच्चे भी बुड्ढों की आकृति के हो जाते हैं, परंतु सौभाग्यवश यह रोग बहुत कम होता है। कुछ रोग विशेषकर बुड्ढों में होते हैं। इनमें से प्रधान रोग हैं मधुमेह (डायबिटीज़), कर्कट (कैंसर) और हृदय, धमनी तथा वृक्क के रोग। बचपन और युवावस्था के रोगों में से न्यूमोनिया बहुधा बूढ़ों को भी हो जाता है और साधारणत: उनका प्राण ही ले लेता है। भेषज वैधिक (मेडिका-लीगल) कार्यों में यथार्थ वयhttp://www.achhikhabar.com/2011/12/16/age-quotes-in-hindi/ और https://www.lovetipsinhindi.com/ का आगणन बड़े महत्व की बात है। वयनिर्धारण में दाँत, बाल, मस्तिष्क तथा अस्थि की परीक्षा की जाती है और एक्स-किरणों आदि की सहायता भी ली जाती है। परंतु २५ वर्ष के ऊपर वय की निश्चित गणना ठीक से नहीं हो सकती। .

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केला

मूसा जाति के घासदार पौधे और उनके द्वारा उत्पादित फल को आम तौर पर केला कहा जाता है। मूल रूप से ये दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र के हैं और संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था। आज, उनकी खेती सम्पूर्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। केले के पौधें मुसाके परिवार के हैं। मुख्य रूप से फल के लिए इसकी खेती की जाती है और कुछ हद तक रेशों के उत्पादन और सजावटी पौधे के रूप में भी इसकी खेती की जाती है। चूंकि केले के पौधे काफी लंबे और सामान्य रूप से काफी मजबूत होते हैं और अक्सर गलती से वृक्ष समझ लिए जाते हैं, पर उनका मुख्य या सीधा तना वास्तव में एक छद्मतना होता है। कुछ प्रजातियों में इस छद्मतने की ऊंचाई 2-8 मीटर तक और उसकी पत्तियाँ 3.5 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। प्रत्येक छद्मतना हरे केलों के एक गुच्छे को उत्पन्न कर सकता है, जो अक्सर पकने के बाद पीले या कभी-कभी लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फल लगने के बाद, छद्मतना मर जाता है और इसकी जगह दूसरा छद्मतना ले लेता है। केले के फल लटकते गुच्छों में ही बड़े होते है, जिनमें 20 फलों तक की एक पंक्ति होती है (जिसे हाथ भी कहा जाता है) और एक गुच्छे में 3-20 केलों की पंक्ति होती है। केलों के लटकते हुए सम्पूर्ण समूह को गुच्छा कहा जाता है, या व्यावसायिक रूप से इसे "बनाना स्टेम" कहा जाता है और इसका वजन 30-50 किलो होता है। एक फल औसतन 125 ग्राम का होता है, जिसमें लगभग 75% पानी और 25% सूखी सामग्री होती है। प्रत्येक फल (केला या 'उंगली' के रूप में ज्ञात) में एक सुरक्षात्मक बाहरी परत होती है (छिलका या त्वचा) जिसके भीतर एक मांसल खाद्य भाग होता है। .

देखें पीला और केला

केसर

thumb केसर का पुष्प केसर (saffron) एक सुगंध देनेवाला पौधा है। इसके पुष्प की वर्तिकाग्र (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल की क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) नामक क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है। भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं। प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। केसर का क्षुप 15-25 सेंटीमीटर ऊँचा, परंतु कांडहीन होता है। पत्तियाँ मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिसपर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। पंखुडि़याँ तीन तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनकी ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) है। अंग्रेज़ी में इसे सैफरन (saffron) नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है। भारत में केसर केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। उत्तर प्रदेश के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है। वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं। और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है। इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब 75 हज़ार फूल लगते हैं। केसर का पौधा 'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है। केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है। इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं। इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है। 'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है। 'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। यह घुलनशील होता है, साथ ही अत्यंत पीला भी। प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है। केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है। .

देखें पीला और केसर

यह भी देखें

द्वितीयक वर्ण

प्राथमिक वर्ण

नैवेजो श्वेत, नीबू (रंग), नीबू शीफॉन (रंग), पपीता व्हिप, पुरातन हरा, पीला रंग, फ्लैक्स (रंग), सरसों (रंग), सुनहरा (रंग), स्कूल बस पीला, सेलेक्टिव पीला, टैंगराइन पीला, गहरा पीला, गहरा गोल्डन रॉड, गहरा केसरिया, गोल्डन रॉड (रंग), केसरी के रूप में भी जाना जाता है।