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पाली और प्राकृत साहित्य

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पाली और प्राकृत साहित्य के बीच अंतर

पाली vs. प्राकृत साहित्य

पाली राजस्थान में उपर्युक्त ज़िले में बाँडी नदी के दाहिने किनारे पर स्थित नगर है। पाली की पूर्वी सीमाएँ अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़ी हैं। पाली की सीमाएँ उत्तर में नागौर और पश्चिम में जालौर से मिलती हैं। पाली शहर पालीवाल ब्राह्मणों का निवास स्थान था जब मुग़लों ने क़त्लेआम मचा दिया तो उन्हें यह शहर छोड़ कर जाना पड़ा। वीर योद्धा महाराणा प्रताप का यहीं ननिहाल है | यह भी मान्यता है की महाराणा प्रताप का जन्म पाली में ही हुआ है। यह नगर तीन बार उजड़ा और बसा। पाली के प्रसिद्ध जैन मंदिर भक्तों के साथ-साथ इतिहासवेत्ताओं को भी आकर्षित करते हैं। पाली के मुख्य उद्योगों में सूती कपड़े की रँगाई, छपाई, ताँबे का काम आदि प्रमुख हैं। पाली नगर में स्कूल, अस्पताल तथा कई मंदिर भी हैं। सोमनाथ तथा नौलखा आदि प्रसिद्ध मंदिर हैं। श्रेणी:राजस्थान के शहर bpy:পালি (ললিতপুর) pi:पमुख पत्त Pamukha patta. मध्ययुगीन प्राकृतों का गद्य-पद्यात्मक साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है। सबसे प्राचीन वह अर्धमागधी साहित्य है जिसमें जैन धार्मिक ग्रंथ रचे गए हैं तथा जिन्हें समष्टि रूप से जैनागम या जैनश्रुतांग कहा जाता है। इस साहित्य की प्राचीन परंपरा यह है कि अंतिम जैन तीर्थंकर महावीर का विदेह प्रदेश में जन्म लगभग 600 ई. पूर्व हुआ। उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ले ली और 12 वर्ष तप और ध्यान करके कैवल्यज्ञान प्राप्त किया। तत्पश्चात् उन्होने अपना धर्मोपदेश सर्वप्रथम राजगृह में और फिर अन्य नाना स्थानों में देकर जैन धर्म का प्रचार किया। उनके उपदेशों को उनके जीवनकाल में ही उनके शिष्यों ने 12 अंगों में संकलित किया। उनके नाम हैं- इन अंगों की भाषा वही अर्धमागधी प्राकृत है जिसमें महावीर ने अपने उपदेश दिए। संभवत: यह आगम उस समय लिपिबद्ध नहीं किया गया एवं गुरु-शिष्य परंपरा से मौखिक रूप में प्रचलित रहा और यही उसके श्रुतांग कहलाने की सार्थकता है। महावीर का निर्वाण 72 वर्ष की अवस्था में ई. पू.

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संदर्भ

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