पश्चिम भारतीय खाना और राजस्थानी व्यंजन के बीच समानता
पश्चिम भारतीय खाना और राजस्थानी व्यंजन आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चूरमा, दाल बाटी चूरमा, घेवर, गट्टे की सब्जी।
चूरमा
चूरमा जिसे चूरमा के लडडू भी कहा जाता है, राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय मिठाई है। सामान्यतः इसे दाल बाटी के साथ परोसा जाताहै। चूरमा राजस्थान के हर त्यौहार्, शादी ब्याह, या सामूहिक भोज में परोसा जाता है। सामान्यतः इसे मोटे आटे से बनी, बिना नमक की बाटी से बनाया जाता है। चूरमा के लडडू बनाने के लिये बाटी को कंडे की आग या भूनने के बजाय, तल कर भी बनाया जाता है। बनी हुई बाटी को फोड़ कर बारीक चूरा बना दिया जाता है और इसमें घी, गुड या चीनी एवं सूखे मेवे मिला कर बड़े साइज के लडडू बना लिये जाते हैं। .
चूरमा और पश्चिम भारतीय खाना · चूरमा और राजस्थानी व्यंजन ·
दाल बाटी चूरमा
दाल बाटी चूरमा एक राजस्थानी व्यंजन है। बाटी मोटे गेहू के आटे से बनाई जाती है। चूरमा मीठे आटे का मिश्रण होता है। यह एक धार्मिक अवसरों, गोठ, विवाह समारोहों और राजस्थान में जन्मदिन पार्टियों में भी बनाई जाती है। दाल बाटी चूरमा आमतौर पर दोपहर के भोजने के समय या खाने के समय के दौरान या तो सेवा है। अधिक घी का स्वाद इसे और भी बेहतर स्वाद बना देता है। जोधपुर,जयपुर और जैसलमेर के शहर इस राजस्थानी पकवान के लिए प्रसिद्ध हैं। दाल, बाटी, चूरमा उत्तम राजस्थान विशेषता के रूप में जाना जाता है एक राजस्थानी खाना है। या अधिक मसाला राजस्थानी खाने की विशेषता है। चूरमा में एक अंतहीन विविधता है रंग जो सामग्री पर निर्भर करता है और एक आश्चर्यजनक विविधता है जिनमें से कई एक साथ परोसा जा सकता है, रोटी के साथ जो इसे फिर से गेहूं या मक्का या बाजरा से मिलकर बनाया जाता है।। .
दाल बाटी चूरमा और पश्चिम भारतीय खाना · दाल बाटी चूरमा और राजस्थानी व्यंजन ·
घेवर
घेवर छप्पन भोग के अन्तर्गत प्रसिद्ध व्यंजन हॅ। यह मैदे से बना, मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक ख़स्ता और मीठा पकवान है। सावन माह की बात हो और उसमें घेवर का नाम ना आए तो कुछ अटपटा लगेगा। घेवर, सावन का विशेष मिष्ठान माना जाता है। हालाँकि अब घेवर की माँग अन्य मिठाइयों के सामने कुछ कम हुई है लेकिन फिर भी आज कुछ लोग घेवर को ही महत्व देते हैं। सावन में तीज के अवसर पर बहन-बेटियों को सिंदारा देने की परंपरा काफी पुरानी है, इसमें चाहे कितना ही अन्य मिष्ठान रख दिया जाए लेकिन घेवर होना अवश्यक होता है। इसलिए साल के विशेष समय पर बनने वाली इस पारंपरिक मिठाई घेवर का वर्चस्व टूटना संभव नहीं है, भले ही आधुनिक मिठाइयों के सामने इसकी लोकप्रियता में कुछ कमी दिखाई देती हो। सावन में इस मिष्ठान की माँग को पूरा करने के लिए छोटे हलवाई से लेकर प्रतिष्ठित हलवाई महिनों पहले काम शुरु कर देते हैं। घेवर बनाने का काम प्रत्येक गली मौहल्ले में जोर-शोर से शुरू हो जाता है। पुराने लोग बताते हैं कि बगैर घेवर के न रक्षाबंधन का सगन पूरा माना जाता है और न ही तीज का। घेवर वैश्वीकरण के दौर में आज घेवर का रूप भी बदलने लगा है, ४० से लेकर २०० रूपये प्रति किलो का घेवर बाजार में उपलब्ध है, जो जैसा दाम लगाता है उसे उसी प्रकार का माल मिल जाता है, सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर मँहगा। पिस्ता बादाम और मावे वाला घेवर ज्यादा प्रचलित हैं, हालाँकि लोगों का कहना है कि जितना आनंद सादा घेवर के सेवन में आता है उतना मेवा-घेवर में कतई नहीं। फिर भी लोग मावा-घेवर को ही खरीदना पसंद करते हैं। कुल मिला कर सावन के महीने में घेवर की खुशबू पूरे बाजार को महका देती है और तीज व रक्षाबंधन के अवसर पर घेवर की दुकानों पर भीड़ देखते ही बनती है। घेवर दो तरह को होता है, फीका और मीठा। ताज़ा घेवर नर्म और ख़स्ता होता है पर यह रखा रखा थोड़ा सख़्त होने लगता है। इस समय फीके घेवर को बेसन में लपेटकर, तलकर मज़ेदार पकौड़े बनाए जाते हैं। मीठे घेवर की पुडिंग बढ़िया बनती है। .
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गट्टे की सब्जी
गट्टे की सब्जी एक राजस्थानी व्यंजन है। .
गट्टे की सब्जी और पश्चिम भारतीय खाना · गट्टे की सब्जी और राजस्थानी व्यंजन ·
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पश्चिम भारतीय खाना 140 संबंध है और राजस्थानी व्यंजन 10 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 2.67% है = 4 / (140 + 10)।
संदर्भ
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