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परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र) के बीच अंतर

परी कथा vs. पात्र (कलाशास्त्र)

परी कथा एक काल्पनिक कहानी होती है जिसमे विभिन्न लोककथनीय पात्रों का जैसे कि परियां, पिशाच, राक्षस, जादूगर, दानव और, बात करने वाले पशु और पक्षिओं का समावेश होता है, साथ ही विभिन्न विस्मयकारी घटनाओं और आमतौर पर एक लम्बे काल का वर्णन होता है। परी कथायें आमतौर पर छोटे बच्चों को आकर्षित करती हैं क्योंकि इन्हें समझना आसान होता है और इनमे वर्णित चरित्र उन्हें दिलचस्प लगते हैं। . पात्र (कभी-कभी फ़िक्शनल पात्र, कपोलकल्पित पात्र या काल्पनिक पात्र के रूप में प्रसिद्ध) किसी कहानी (जैसे कि उपन्यास, नाटक, टेलीविजन शृंखला, फ़िल्म, या वीडियो गेम) में कोई व्यक्ति या कोई अन्य जीव होता हैं। पात्र पूरी तरह कपोलकल्पित हो सकता है या वास्तविक जीवन के किसी व्यक्ति पर आधारित हो सकता है, जिस मामले में "कपोलकल्पित" बनाम "वास्तविक" पात्र का भेद किया जा सकता हैं। .

परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र) के बीच समानता

परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र) आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): कहानी

कहानी

कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्‍चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .

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परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र) के बीच तुलना

परी कथा 4 संबंध है और पात्र (कलाशास्त्र) 5 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 11.11% है = 1 / (4 + 5)।

संदर्भ

यह लेख परी कथा और पात्र (कलाशास्त्र) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: