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पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य के बीच अंतर

पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व vs. सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य

पचमढ़ी घाटी में पचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व। पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व एक गैर-उपयोग संरक्षण क्षेत्र है यह मध्य भारत के सतपुड़ा रेंज में स्थित है। इस संरक्षण क्षेत्र को 1999 में भारत सरकार द्वारा बनाया गया था। यूनेस्को ने 2009 में इसे बायोस्फीयर रिजर्व नामित किया था। . सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अंतर्गत होशंगाबाद ज़िले में स्थित है। यह ५२४ वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र में फैला हुआ है। अपने आसपास बोरी और पचमढ़ी अभयारण्य के साथ, यह १,४२७ वर्ग कि॰मी॰ का अद्वितीय मध्य भारतीय पार्वत्य देश (highland) पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है। यह १९८१ में स्थापित किया गया था। राष्ट्रीय पार्क का इलाका अत्यंत दुर्गम है। और इसके अंतर्गत बलुआ पत्थर चोटियों, संकीर्ण घाटियों, नालों और घने जंगलों के इलाके हैं। इस इलाके की औसतन ऊँचाई ३०० से १३५२ मीटर है। इस उद्यान में 1350 मीटर ऊँची धूपगढ़ शिखर भी है, और सपाट मैदान भी हैं। राष्ट्रीय पार्क से निकटतम शहर पचमढ़ी है, और निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है, जो ५५ किलोमीटर दूर है। इसकी राज्य की राजधानी भोपाल से दूरी २१० किलोमीटर है। .

पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य के बीच समानता

पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य आम में 12 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चिंकारा, चीतल, तेन्दुआ, नीलगाय, पचमढ़ी, बाघ, भारतीय विशाल गिलहरी, सोनकुत्ता, होशंगाबाद ज़िला, जंगली सुअर, गौर, उड़न गिलहरी

चिंकारा

चिंकारा दक्षिण एशिया में पाया जाने वाला एक प्रकार का गज़ॅल है। यह भारत, बांग्लादेश के घास के मैदानों और मरुभूमि में तथा ईरान और पाकिस्तान के कुछ इलाकों में पाया जाता है। इसकी ऊँचाई कन्धे तक ६५ से.मी.

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चीतल

चीतल, या चीतल मृग, या चित्तिदार हिरन हिरन के कुल का एक प्राणी है, जो कि श्री लंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत में पाया जाता है। पाकिस्तान के भी कुछ इलाकों में भी बहुत कम पाया जाता है। अपनी प्रजाति का यह एकमात्र जीवित प्राणी है। .

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तेन्दुआ

तेन्दुआ (Panthera pardus उचारण: पैन्थेरा पार्डस) पैन्थरा जीनस का एक विडाल (बड़ी बिल्ली प्रजाति) है जो अफ़्रीका और एशिया में पाया जाता है। यह विडाल प्रजातियों जैसे शेर, बाघ और जैगुअर की तुलना में सबसे छोटा होता है। .

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नीलगाय

नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है, पर उसके शरीर की बनावट घोड़े के समान संतुलित नहीं होती। पृष्ठ भाग अग्रभाग से कम ऊंचा होने से दौड़ते समय यह अत्यंत अटपटा लगता है। अन्य मृगों की तेज चाल भी उसे प्राप्त नहीं है। इसलिए वह बाघ, तेंदुए और सोनकुत्तों का आसानी से शिकार हो जाता है, यद्यपि एक बड़े नर को मारना बाघ के लिए भी आसान नहीं होता। छौनों को लकड़बग्घे और गीदड़ उठा ले जाते हैं। परन्तु कई बार उसके रहने के खुले, शुष्क प्रदेशों में उसे किसी भी परभक्षी से डरना नहीं पड़ता क्योंकि वह बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है, जबकि परभक्षी जीवों को रोज पानी पीना पड़ता है। इसलिए परभक्षी ऐसे शुष्क प्रदेशों में कम ही जाते हैं। वास्तव में "नीलगाय" इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नहीं है क्योंकि मादाएं भूरे रंग की होती हैं। नीलापन वयस्क नर के रंग में पाया जाता है। वह लोहे के समान सलेटी रंग का अथवा धूसर नीले रंग का शानदार जानवर होता है। उसके आगे के पैर पिछले पैर से अधिक लंबे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उसकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआं होती है। नर और मादा में गर्दन पर अयाल होता है। नरों की गर्दन पर सफेद बालों का एक लंबा और सघन गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है। नर की नाक से पूंछ के सिरे तक की लंबाई लगभग ढाई मीटर और कंधे तक की ऊंचाई लगभग डेढ़ मीटर होती है। उसका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएं कुछ छोटी होती हैं। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते हैं जो लगभग 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। नीलगाय (मादा) नीलगाय भारत में पाई जानेवाली मृग जातियों में सबसे बड़ी है। मृग उन जंतुओं को कहा जाता है जिनमें स्थायी सींग होते हैं, यानी हिरणों के शृंगाभों के समान उनके सींग हर साल गिरकर नए सिरे से नहीं उगते। नीलगाय दिवाचर (दिन में चलने-फिरने वाला) प्राणी है। वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसन्द है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊंचाई की डालियों तक पहुंचने के लिए वह अपनी पिछली टांगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूंघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परंतु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहां कम ऊंचाई की कंटीली झाड़ियां छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरंत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती। सभी नर एक ही स्थान पर आकर मल त्याग करते हैं, लेकिन मादाएं ऐसा नहीं करतीं। ऐसे स्थलों पर उसके मल का ढेर इकट्ठा हो जाता है। ये ढेर खुले प्रदेशों में होते हैं, जिससे कि मल त्यागते समय यह चारों ओर आसानी से देख सके और छिपे परभक्षी का शिकार न हो जाए। .

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पचमढ़ी

पचमढ़ी की पांडव गुफ़ाएँमध्यप्रदेश के एकमात्र पर्वतीय स्थल होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी समुद्र तल से १,०६७ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। यहाँ घने जंगल, कलकल करते जलप्रपात और तालाब हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का भाग होने के कारण यहाँ आसपास बहुत घने जंगल हैं। यहाँ के जंगलों में शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू, भैंसा तथा कई अन्य जंगली जानवर मिलते हैं। यहाँ की गुफाएँ पुरातात्विक महत्व की हैं क्योंकि यहाँ गुफाओं में शैलचित्र भी मिले हैं। .

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बाघ

बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है। वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। बाघ १३ फीट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है। .

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भारतीय विशाल गिलहरी

भारतीय विशाल गिलहरी Indian giant squirrel या Malabar giant squirrel (Ratufa indica) गिलहरी के कुल का एक जीव है जो भारत का मूल निवासी है। यह दिवाचर प्राणी शुद्ध शाकाहारी होता है। .

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सोनकुत्ता

सोनकुत्ता या वनजुक्कुर (Cuon alpinus) कुत्तों के कुल का जंगली प्राणी है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। यह अपनी प्रजाति का इकलौता जीवित प्राणी है जो कि कुत्तों से दंतावली और स्तनाग्रों में अलग है। अब यह अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित हो गई है क्योंकि इनके आवासीय क्षेत्र में कमी, शिकार की कमी, अन्य शिकारियों से स्पर्धा और शायद घरेलू या जंगली कुत्तों से बीमारी सरने के कारण इनकी संख्या तेज़ी से घट रही है। यह एक निहायत सामाजिक प्राणी है जो कि बड़े कुटुम्बों में रहता है जो कि अक्सर शिकार के लिए छोटे टुकड़ों में बँट जाते हैं।Fox, M. W. (1984), The Whistling Hunters: Field Studies of the Indian Wild Dog (Cuon Alpinus), Steven Simpson Books, ISBN 0-9524390-6-9, p-85 अफ्री़की जंगली कुत्तों की भांति और अन्य कुत्तों के विपरीत ढोल शिकार के बाद अपने शावकों को पहले खाने देता है। हालाँकि ढोल मनुष्यों से डरता है, लेकिन इनके झुण्ड बड़े और खतरनाक प्राणियों, जैसे जंगली शूकर, जंगली भैंसा तथा बाघ पर भी आक्रमण करने से नहीं हिचकिचाते हैं। .

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होशंगाबाद ज़िला

कोई विवरण नहीं।

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जंगली सुअर

जंगली सुअर (Sus scrofa) या वाराह, सुअर की एक प्रजाति है। यह मध्य यूरोप, भूमध्य सागर क्षेत्र (उत्तरी अफ्रीका, एटलस पर्वत) सहित एशिया में इंडोनेशिया तक के क्षेत्रों का मूल निवासी है। मूल निवास दशावतार में से एक अवतार वराहावतार हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु ने दशावतार में से एक अवतार वराहावतार में इस पशु के रूप में ही अवतरण कर पृथ्वी को पाताल से बाहर निकाला था। .

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गौर

गौर (Bos gaurus, पहले Bibos gauris) दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम से ढका गोजातीय पशु है। आज इसकी सबसे बड़ी आबादी भारत में पाई जाती हैं। गौर जंगली मवेशियों मे से सबसे बड़ा होता है। पालतू गौर 'गायल' या 'मिथुन' कहलाता है। भारत के भिन्न भिन्न भागों में इसका भिन्न भिन्न स्थानीय नाम है, जैसे गौरी गाय, बोदा, गवली इत्यादि। यह बोविडी कुल (Bavidae Family) के शफ गण (Order Ungulate) का एक जंगली स्तनपोषी शाकाहारी पशु है। गवल भारत प्रायद्वीप, असम, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप तथा स्याम के पहाड़ी वनों में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम विकास दक्षिण भारतीय पहाड़ियों तथा असम में होता है। किसी समय यह प्राणी श्रीलंका में भी प्राप्य था, किंतु अब वहां से, संभवत: किसी पशुरोग के ही कारण लुप्त हो गया है। यूरोपीय शिकारी गौर को 'बाइसन' (Bison / एक प्रकार का जंगली भैंसा) कहते हैं, परंतु भारतीय गवल को बाइसन कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। वस्तुत: यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के बाइसन भारतीय गवल से भिन्न होते हैं। पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं। .

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उड़न गिलहरी

उड़न गिलहरी (Flying squirrel), जो वैज्ञानिक भाषा में टेरोमायनी (Pteromyini) या पेटौरिस्टाइनी (Petauristini) कहलाये जाते हैं, कृंतक (रोडेंट, यानि कुतरने वाले जीव) के परिवार के जंतु हैं जो पाल-उड़ान (ग्लाइडिंग) की क्षमता रखते हैं। इनकी विश्व भर में ४४ जीववैज्ञानिक जातियाँ हैं जिनमें १२ जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। .

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पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य के बीच तुलना

पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व 25 संबंध है और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य 29 है। वे आम 12 में है, समानता सूचकांक 22.22% है = 12 / (25 + 29)।

संदर्भ

यह लेख पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व और सतपुड़ा राष्ट्रीय अभयारण्य के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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