नृत्य और मुद्रा (संगीत) के बीच समानता
नृत्य और मुद्रा (संगीत) आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): नाट्य शास्त्र, भरतनाट्यम्, ओड़िसी, कथकली।
नाट्य शास्त्र
250px नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्य शास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का काल ४०० ई के निकट माना जाता है। संगीत, नाटक और अभिनय के संपूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है। .
नाट्य शास्त्र और नृत्य · नाट्य शास्त्र और मुद्रा (संगीत) ·
भरतनाट्यम्
भरतनाट्यम् नृत्य पर डाक टिकटभरतनाट्यम् या चधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है। यह भरत मुनि के नाट्य शास्त्र (जो ४०० ईपू का है) पर आधारित है। वर्तमान समय में इस नृत्य शैली का मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अभ्यास किया जाता है। इस नृत्य शैली के प्रेरणास्त्रोत चिदंबरम के प्राचीन मंदिर की मूर्तियों से आते हैं। भरतनाट्यम् को सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता है। इस नृत्य को तमिलनाडु में देवदासियों द्वारा विकसित व प्रसारित किया गया था। शुरू शुरू में इस नृत्य को देवदासियों के द्वारा विकसित होने के कारण उचित सम्मान नहीं मिल पाया| लेकिन बीसवी सदी के शुरू में ई. कृष्ण अय्यर और रुकीमणि देवी के प्रयासों से इस नृत्य को दुबारा स्थापित किया गया। भरत नाट्यम के दो भाग होते हैं इसे साधारणत दो अंशों में सम्पन्न किया जाता है पहला नृत्य और दुसरा अभिनय| नृत्य शरीर के अंगों से उत्पन्न होता है इसमें रस, भाव और काल्पनिक अभिव्यक्ति जरूरी है। भरतनाट्यम् में शारीरिक प्रक्रिया को तीन भागों में बांटा जाता है -: समभंग, अभंग, त्रिभंग भरत नाट्यम में नृत्य क्रम इस प्रकार होता है। आलारिपु - इस अंश में कविता(सोल्लू कुट्टू) रहती है। इसी की छंद में आवृति होती है। तिश्र या मिश्र छंद तथा करताल और मृदंग के साथ यह अंश अनुष्ठित होता है, इसे इस नृत्यानुष्ठान कि भूमिका कहा जाता है। जातीस्वरम - यह अंश कला ज्ञान का परिचय देने का होता है इसमें नर्तक अपने कला ज्ञान का परिचय देते हैं। इस अंश में स्वर मालिका के साथ राग रूप प्रदर्शित होता होता है जो कि उच्च कला कि मांग करता है। शब्दम - ये तीसरे नम्बर का अंश होता है। सभी अंशों में यह अंश सबसे आकर्षक अंश होता है। शब्दम में नाट्यभावों का वर्णन किया जाता है। इसके लिए बहुविचित्र तथा लावण्यमय नृत्य पेश करेक नाट्यभावों का वर्णन किया जाता है। वर्णम - इस अंश में नृत्य कला के अलग अलग वर्णों को प्रस्तुत किया जाता है। वर्णम में भाव, ताल और राग तीनों कि प्रस्तुति होती है। भरतनाट्यम् के सभी अंशों में यह अंश भरतनाट्यम् का सबसे चुनौती पूर्ण अंश होता है। पदम - इस अंश में सात पन्क्तियुक्त वन्दना होती है। यह वन्दना संस्कृत, तेलुगु, तमिल भाषा में होती है। इसी अंश में नर्तक के अभिनय की मजबूती का पता चलता है। तिल्लाना - यह अंश भरतनाट्यम् का सबसे आखिरी अंश होता है। इस अंश में बहुविचित्र नृत्य भंगिमाओं के साथ साथ नारी के सौन्दर्य के अलग अलग लावणयों को दिखाया जाता है। .
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ओड़िसी
ओड़िसी ओडिशाप्रांत भारत की एक शास्त्रीय नृत्य शैली है। अद्यतन काल में गुरु केलुचरण महापात्र ने इसका पुनर्विस्तार किया। ओड़िसी नृत्य करते हुए एक नृत्य मंडली ओडिसी नृत्य को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्य रूपों में से एक माना जाता है। इसका जन्म मन्दिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था। ओडिसी नृत्य का उल्लेख शिलालेखों में मिलता है। इसे ब्रह्मेश्वर मन्दिर के शिलालेखों में दर्शाया गया है। .
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कथकली
कथकली नृत्यकथकली मालाबार, कोचीन और त्रावणकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है कथकली। 17 वीं शताब्दी में कोट्टारक्करा तंपुरान (राजा) ने जिस रामनाट्टम का आविष्कार किया था उसी का विकसित रूप है कथकली। यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है। भारतीय अभिनय कला की नृत्य नामक रंगकला के अंतर्गत कथकली की गणना होती है। रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है। कथकली के साहित्यिक रूप को 'आट्टक्कथा' कहते हैं। गायक गण वाद्यों के वादन के साथ आट्टक्कथाएँ गाते हैं। कलाकार उन पर अभिनय करके दिखाते हैं। कथा का विषय भारतीय पुराणों और इतिहासों से लिया जाता है। आधुनिक काल में पश्चिमी कथाओं को भी विषय रूप में स्वीकृत किया गया है। कथकली में तैय्यम, तिरा, मुडियेट्टु, पडयणि इत्यादि केरलीय अनुष्ठान कलाओं तथा कूत्तु, कूडियाट्टम, कृष्णनाट्टम आदि शास्त्रीय (क्लासिक) कलाओं का प्रभाव भी देखा जा सकता है। .
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नृत्य और मुद्रा (संगीत) के बीच तुलना
नृत्य 14 संबंध है और मुद्रा (संगीत) 39 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 7.55% है = 4 / (14 + 39)।
संदर्भ
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