नाथद्वारा और पद्माकर
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नाथद्वारा और पद्माकर के बीच अंतर
नाथद्वारा vs. पद्माकर
श्रीनाथद्वारा राजस्थान के राजसमन्द जिले मैं स्थित है। श्रीनाथद्वारा पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय की प्रधान (प्रमुख) पीठ है। यहाँ नंदनंदन आनन्दकंद श्रीनाथजी का भव्य मन्दिर है जो करोडों वैष्णवो की आस्था का प्रमुख स्थल है, प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश से लाखों वैष्णव श्रृद्धालु आते हैं जो यहाँ के प्रमुख उत्सवों का आनन्द उठा भावविभोर हो जाते हैं। नाथद्वार के निकट मावली रेल जंक्शन स्थित है। नाथद्वार में एक कृषि बाज़ार है तथा यहां राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध एक सरकारी महाविद्यालय है। श्रीनाथजी का तकरीबन 337 वर्ष पुराना मन्दिर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रोडवेज बस स्टेण्ड से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहाँ से मन्दिर पहुँचने के लिए निर्धारित मूल्य पर (वर्तमान में प्रति व्यक्ति 5 रूपये) सार्वजनिक परिवहन ऑटो रिक्शा सेवा उपलब्ध है। श्रीनाथद्वारा दक्षिणी राजस्थान में 24/54 अक्षांश 73/48 रेखांश पर अरावली की सुरम्य उपत्यकाओं के मध्य विश्वप्रसिद्ध झीलों की नगरी उदयपुर से उत्तर में 48 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर स्थित है। श्रीनाथद्वारा से उत्तर:- श्रीनाथद्वारा के उत्तर में राजसमन्द (17) अजमेर (225) पुष्कर (240) जयपुर (385) देहली (625) प्रमुख शहर हैं। दक्षिण:- श्रीनाथद्वारा के दक्षिण में उदयपुर (48) अहमदाबाद (300) बडौदा (450) सूरत (600) मुम्बई (800) स्थित हैं। पूर्व:- श्रीनाथद्वारा के पूर्व में मंडियाणा ((रेल्वे स्टेशन (12)) मावली ((रेल्वे स्टेशन (28)) चित्तौडगढ (110) कोटा (180) स्थित हैं। पश्चिम:- फालना (180) जोधपुर (225) स्थित हैं। बस सेवा:- श्रीनाथद्वारा के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित सभी प्रमुख शहरों से सीधी बस सेवा उपलबध है। ट्रेन सेवा:- श्रीनाथद्वारा के निकटवर्ती रेल्वे स्टेशन मावली (28) एवं उदयपुर (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन सेवा उपलब्ध है। वायु सेवा:- श्रीनाथद्वारा के निकटवर्ती हवाई अड्डे डबोक (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए वायुयान सेवा उपलब्ध है। . रीति काल के ब्रजभाषा कवियों में पद्माकर (1753-1833) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में अंतिम चरण के सुप्रसिद्ध और विशेष सम्मानित कवि थे। मूलतः हिन्दीभाषी न होते हुए भी पद्माकर जैसे आन्ध्र के अनगिनत तैलंग-ब्राह्मणों ने हिन्दी और संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि में जितना योगदान दिया है वैसा अकादमिक उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। .
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