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नाड़ी (योग)

सूची नाड़ी (योग)

पद्मासन मुद्रा 1. मूलाधार चक्र 2. स्वाधिस्ठान चक्र 3. नाभि चक्र 4. अनाहत चक्र 5. विशुद्धि चक्र 6. आज्ञा चक्र 7. सहस्रार चक्र; A. कुण्डलिनी B. ईड़ा नाड़ी C. सुषुम्ना नाड़ी D. पिंगला नाड़ी योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है। कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं। इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है। अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं। ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है। पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है। पिंगला का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि पिंगला का बाएँ भाग से। .

12 संबंधों: नाड़ी, नाभि, पिंगला, मूलाधार, मूलाधार चक्र, मेरुदण्ड, मेरूरज्जु, योग, शिव स्वरोदय, हठयोग प्रदीपिका, ईड़ा, गोरक्षशतक

नाड़ी

अंगूठाकार चिकित्सा विज्ञान में हृदय की धड़कन के कारण धमनियों में होने वाली हलचल को नाड़ी या नब्ज़ (Pulse) कहते हैं। नाड़ी की धड़कन को शरीर के कई स्थानों पर अनुभव किया जा सकता है। किसी धमनी को उसके पास की हड्डी पर दबाकर नाड़ी की धड़कन को महसूस किया जा सकता है। गर्दन पर, कलाइयों पर, घुटने के पीछे, कोहनी के भीतरी भाग पर तथा ऐसे ही कई स्थानों पर नाड़ी-दर्शन किया जा सकता है। .

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नाभि

नाभि (चिकित्सकीय भाषा में अम्बिलीकस के रूप में ज्ञात और बेली बटन के नाम से भी जानी जाती है) पेट पर एक गहरा निशान होती है, जो नवजात शिशु से गर्भनाल को अलग करने के कारण बनती है। सभी अपरा संबंधी स्तनपाइयों में नाभि होती है। यह मानव में काफी स्पष्ट होती है। मनुष्यों में यह निशान एक गड्ढे के समान दिख सकता है (अंग्रेज़ी में आम बोलचाल की भाषा में इसे अक्सर इन्नी कह कर संदर्भित किया जाता है) या एक उभार के रूप में दिख सकता है (आउटी).

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पिंगला

पिंगला, योग शास्त्रों के मुताबिक तीन प्रमुख नाड़ियों में से एक है। इससे शरीर में प्राण शक्ति का वहन होता है जिसके फलस्वरूप शरीर में ताप बढ़ता है। इससे शरीर को श्रम, तनाव और थकावट सहने की क्षमता प्रदान करता है। यह मनुष्य को बहिर्मुखी बनाता है। Category:योग.

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मूलाधार

मानव शरीर में के दोनों टांगों के बीच के त्रिकोण भाग को मूलाधार या पैरानियम भी कहते है। पैरानियम बाडी मलद्वार के आगे तथा जननद्वार के पीछे होती है। इसमें कूल्हे के निचले भग की सभी मांसपेशियां आपस में मिलती है। यह प्रत्येक व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। किसी में यह कमजोर और किसी में यह अधिक शक्तिशाली होती है। इस प्रकार से पैरानियम जननद्वार के पीछे तथा नीचे की दीवार को सहारा दिये रहती है। संभोग क्रिया के समय पैरानियम जननद्वार को पीछे की ओर से साधे रहती है। पुरुषों में ये अंडकोष और गुदाद्वार के बीच होती है। बढ़ती आयु के साथ-साथ यह कमजोर हो जाती है। कूल्हे के चरों ओर की मांसपेशियों के यहां एकत्र होने के कारण यहां का रोग या पस चारों ओर फैल सकता है। बच्चे के जन्म के पहले जननद्वार को यहीं से काटकर चौड़ा बनाया जाता है। ताकि बच्चे के जन्म के समय अधिक से अधिक स्थान प्राप्त हो सके तथा बच्चे के जन्म के लिए अधिक चीड़-फाड़ न करना पड़े। प्रसव के बाद टांके इन्हीं मांसपेशियों में लगाये जाते है जिसको ऐपिजियोटोमी कहते है पुरुष मूलाधार स्त्री मूलाधार .

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मूलाधार चक्र

मूलाधार चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का पहला चक्र है। यह अनुत्रिक के आधार में स्थित है। इसे पशु और मानव चेतना के बीच सीमा निर्धारित करने वाला माना जाता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जिसमें पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संचित रहते हैं। कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र प्राणी के भावी प्रारब्ध निर्धारित करता है। .

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मेरुदण्ड

बाहर से मेरूदंड का दृष्य मेरूदंड के विभिन्न भाग मेरूदंड के विभिन्न भाग (रंगीन) मानव शरीर रचना में 'रीढ़ की हड्डी' या मेरुदंड (vertebral column या backbone या spine)) पीठ की हड्डियों का समूह है जो मस्तिष्क के पिछले भाग से निकलकर गुदा के पास तक जाती है। इसमें ३३ खण्ड (vertebrae) होते हैं। मेरुदण्ड के भीतर ही मेरूनाल (spinal canal) में मेरूरज्जु (spinal cord) सुरक्षित रहता है। .

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मेरूरज्जु

कशेरूक नाल में नीचले मेरूरज्जु की स्थिति मेरूरज्जु (लैटिन: Medulla spinalis, जर्मन: Rückenmark, अंग्रेजी: Spinal cord), मध्य तंत्रिकातंत्र का वह भाग है, जो मस्तिष्क के नीचे से एक रज्जु (रस्सी) के रूप में पश्चकपालास्थि के पिछले और नीचे के भाग में स्थित महारंध्र (foramen magnum) द्वारा कपाल से बाहर आता है और कशेरूकाओं के मिलने से जो लंबा कशेरूका दंड जाता है उसकी बीच की नली में चला जाता है। यह रज्जु नीचे ओर प्रथम कटि कशेरूका तक विस्तृत है। यदि संपूर्ण मस्तिष्क को उठाकर देखें, तो यह 18 इंच लंबी श्वेत रंग की रज्जु उसके नीचे की ओर लटकती हुई दिखाई देगी। कशेरूक नलिका के ऊपरी 2/3 भाग में यह रज्जु स्थित है और उसके दोनों ओर से उन तंत्रिकाओं के मूल निकलते हैं, जिनके मिलने से तंत्रिका बनती है। यह तंत्रिका कशेरूकांतरिक रंध्रों (intervertebral foramen) से निकलकर शरीर के उसी खंड में फैल जाती हैं, जहाँ वे कशेरूक नलिका से निकली हैं। वक्ष प्रांत की बारहों मेरूतंत्रिका इसी प्रकार वक्ष और उदर में वितरित है। ग्रीवा और कटि तथा त्रिक खंडों से निकली हुई तंत्रिकाओं के विभाग मिलकर जालिकाएँ बना देते हैं जिनसे सूत्र दूर तक अंगों में फैलते हैं। इन दोनों प्रांतों में जहाँ वाहनी और कटित्रिक जालिकाएँ बनती हैं, वहाँ मेरूरज्जु अधिक चौड़ी और मोटी हो जाती है। मस्तिष्क की भाँति मेरूरज्जु भी तीनों तानिकाओं से आवेष्टित है। सब से बाहर दृढ़ तानिका है, जो सारी कशेरूक नलिका को कशेरूकाओं के भीतर की ओर से आच्छादित करती है। किंतु कपाल की भाँति परिअस्थिक (periosteum) नहीं बनाती और न उसके कोई फलक निकलकर मेरूरज्जु में जाते हैं। उसके स्तरों के पृथक होने से रक्त के लौटने के लिये शिरानाल भी नहीं बनते जैसे कपाल में बनते हैं। वास्तव में मरूरज्जु पर की दृढ़तानिका मस्तिष्क पर की दृढ़ तानिका का केवल अंत: स्तर है। दृढ़ तानिका के भीतर पारदर्शी, स्वच्छ, कोमल, जालक तानिका है। दोनों के बीच का स्थान अधोदृढ़ तानिका अवकाश (subdural space) कहा जाता है, जो दूसरे, या तीसरे त्रिक खंड तक विस्तृत है। सबसे भीतर मृदु तानिका है, जो मेरूरज्जु के भीतर अपने प्रवर्धों और सूत्रों को भेजती है। इस सूक्ष्म रक्त कोशिकाएँ होती हैं। इस तानिका के सूत्र तानिका से पृथक् नहीं किए जा सकते। मृदु तानिका और जालक तानिका के बीच के अवकाश को अधो जालक तानिका अवकाश कहा जाता है। इसमें प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भरा रहता है। नीचे की ओर द्वितीय कटि कशेरूका पर पहुँचकर रज्जु की मोटाई घट जाती है और वह एक कोणाकार शिखर में समाप्त हो जाती है। यह मेरूरज्जु पुच्छ (canda equina) कहलाता है। इस भाग से कई तंत्रिकाएँ नीचे को चली जाती हैं और एक चमकता हुआ कला निर्मित बंध (bond) नीचे की ओर जाकर अनुत्रिक (coccyx) के भीतर की ओर चला जाता है। .

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योग

पद्मासन मुद्रा में यौगिक ध्यानस्थ शिव-मूर्ति योग भारत और नेपाल में एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा बौद्ध धर्म,जैन धर्म और हिंदू धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत्‌ में लोग इससे परिचित हैं। इतनी प्रसिद्धि के बाद पहली बार ११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। भगवद्गीता प्रतिष्ठित ग्रंथ माना जाता है। उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, संन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है। पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते है। इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं वह एक दूसरे के विरोधी हैं परंतु इस प्रकार के विभिन्न प्रयोगों को देखने से यह तो स्पष्ट हो जाता है, कि योग की परिभाषा करना कठिन कार्य है। परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो। .

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शिव स्वरोदय

शिव स्वरोदय एक प्राचीन तान्त्रिक ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ शिव और पार्वती के संवाद के रूप में है। इसमें कुल ३९५ श्लोक हैं। १९८३ में सत्यानन्द सरस्वती ने इस पर 'स्वर योग' नाम से टीका लिखी। ग्रन्थ के आरम्भ में पार्वती भगवान शिव से पूछती हैं, हे प्रभु ! मेरे ऊपर कृपा करके सर्व सिद्धिदायक ज्ञान कहिये, ये ब्रह्माण्ड कैसे उत्पन्न हुआ, कैसे स्थित होता है, और कैसे इसका प्रलय होता है? हे देव ब्रह्मांड के निर्णय को कहिए। महादेवजी बोले, शिव आगे कहते हैं- .

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हठयोग प्रदीपिका

हठयोगप्रदीपिका हठयोग से सम्बन्धित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम थे। यह हठयोग के प्राप्त ग्रन्थों में सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रन्थ है। हठयोग के दो अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं - घेरण्ड संहिता तथा शिव संहिता। इस ग्रन्थ की रचना १५वीं शताब्दी में हुई। इस ग्रन्थ की कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हैं जिनमें इस ग्रन्थ के कई अलग-अलग नाम मिलते हैं। वियना विश्वविद्यालय के ए सी वुलनर पाण्डुलिपि परियोजना के डेटाबेस के अनुसार इस ग्रंथ के निम्नलिखित नाम प्राप्त होते हैं- See, e.g., the work of the members of the Modern Yoga Research cooperative इसमें चार अध्याय हैं जिनमें आसन, प्राणायाम, चक्र, कुण्डलिनी, बन्ध, क्रिया, शक्ति, नाड़ी, मुद्रा आदि विषयों का वर्णन है। यह सनातन हिन्दू योगपद्धति का अनुसरण करती है और श्री आदिनाथ (भगवान शंकर) के मंगलाचरण से आरम्भ होती है। इसके चार उपदेशों ९अध्यायों) के नाम ये हैं-.

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ईड़ा

कई योग शास्त्रों में ईड़ा को तीन प्रमुख नाड़ियों में से एक माना गया है। अन्य दो के नाम हैं - पिंगला और सुषुम्ना। ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है। स्वरयोग के अनुसार जब श्वास का प्रवाह बाईँ नसिका-रंध्र में होता है तो वह मानसिक कार्यों के हेतु मनस शक्ति प्रदान करती है। इसे मांशपेशियों में शिथिलता आती है और शरीर का तापमान कम होता है। यह इस बात का भी संकेत है कि इस अवधि में मन अन्तर्मुखी तथा सृजनात्मक होता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य को थकाने वाले और परिश्रम के कार्य को टालना चाहिए। Category:योग.

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गोरक्षशतक

गोरक्षशतक हठयोग का ग्रन्थ है। इसके रचयिता गुरु गोरखनाथ हैं। यह ग्रन्थ हठयोग का सम्भवतः सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है। गोरक्षशतक में १०१ श्लोक हैं जिनमें आसन, प्राण-संरोध (प्राणायाम, मुद्रा तथा जपेदोंकार (ओंकार का जाप) का वर्णन है। इसके अलावा योग के 'कार्यिकी' के कुछ विषयों जैसे कण्ड, नाड़ी, चक्र, कुण्डलिनी आदि का वर्णन है। .

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