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नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली के बीच अंतर

नागरीप्रचारिणी सभा vs. पारिभाषिक शब्दावली

नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है। भारतेन्दु युग के अनंतर हिंदी साहित्य की जो उल्लेखनीय प्रवृत्तियाँ रही हैं उन सबके नियमन, नियंत्रण और संचालन में इस सभा का महत्वपूर्ण योग रहा है। . पारिभाषिक शब्दावली या परिभाषा कोश, "ग्लासरी" (glossary) का प्रतिशब्द है। "ग्लासरी" मूलत: "ग्लॉस" शब्द से बना है। "ग्लॉस" ग्रीक भाषा का glossa है जिसका प्रारंभिक अर्थ "वाणी" था। बाद में यह "भाषा" या "बोली" का वाचक हो गया। आगे चलकर इसमें और भी अर्थपरिवर्तन हुए और इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के शब्द (पारिभाषिक, सामान्य, क्षेत्रीय, प्राचीन, अप्रचलित आदि) के लिए होने लगा। ऐसे शब्दों का संग्रह ही "ग्लॉसरी" या "परिभाषा कोश" है। ज्ञान की किसी विशेष विधा (कार्य क्षेत्र) में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की उनकी परिभाषा सहित सूची पारिभाषिक शब्दावली (glossary) या पारिभाषिक शब्दकोश कहलाती है। उदाहरण के लिये गणित के अध्ययन में आने वाले शब्दों एवं उनकी परिभाषा को गणित की पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं। पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग जटिल विचारों की अभिव्यक्ति को सुचारु बनाता है। महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' नामक प्रथम अध्याय में कहा है- इसके बाद उन्होने लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन, समय, सोना, चाँदी एवं अन्य धातुओं के मापन की इकाइयों के नाम और उनकी परिभाषा (परिमाण) दिया है। इसके बाद गणितीय संक्रियाओं के नाम और परिभाषा दी है तथा अन्य गणितीय परिभाषाएँ दी है। द्विभाषिक शब्दावली में एक भाषा के शब्दों का दूसरी भाषा में समानार्थक शब्द दिया जाता है व उस शब्द की परिभाषा भी की जाती है। अर्थ की दृष्टि से किसी भाषा की शब्दावली दो प्रकार की होती है- सामान्य शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली। ऐसे शब्द जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, वह पारिभाषिक शब्द होते हैं और जो शब्द एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते वह सामान्य शब्द होते हैं। प्रसिद्ध विद्वान आचार्य रघुवीर बड़े ही सरल शब्दों में पारिभाषिक और साधारण शब्दों का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं- पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार - डॉ॰ भोलानाथ तिवारी 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं- .

नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली के बीच समानता

नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): श्यामसुन्दर दास, हिंदी शब्दसागर, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

श्यामसुन्दर दास

हिन्दी के महान सेवक: बाबू श्यामसुन्दर दास डॉ॰ श्यामसुंदर दास (सन् 1875 - 1945 ई.) हिंदी के अनन्य साधक, विद्वान्, आलोचक और शिक्षाविद् थे। हिंदी साहित्य और बौद्धिकता के पथ-प्रदर्शकों में उनका नाम अविस्मरणीय है। हिंदी-क्षेत्र के साहित्यिक-सांस्कृतिक नवजागरण में उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने और उनके साथियों ने मिलकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई के लिए अगर बाबू साहब के नाम से मशहूर श्याम सुंदर दास ने पुस्तकें तैयार न की होतीं तो शायद हिंदी का अध्ययन-अध्यापन आज सबके लिए इस तरह सुलभ न होता। उनके द्वारा की गयी हिंदी साहित्य की पचास वर्षों तक निरंतर सेवा के कारण कोश, इतिहास, भाषा-विज्ञान, साहित्यालोचन, सम्पादित ग्रंथ, पाठ्य-सामग्री निर्माण आदि से हिंदी-जगत समृद्ध हुआ। उन्हीं के अविस्मरणीय कामों ने हिंदी को उच्चस्तर पर प्रतिष्ठित करते हुए विश्वविद्यालयों में गौरवपूर्वक स्थापित किया। बाबू श्याम सुंदर दास ने अपने जीवन के पचास वर्ष हिंदी की सेवा करते हुए व्यतीत किए उनकी इस हिंदी सेवा को ध्यान में रखते हुए ही राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने निम्न पंक्तियाँ लिखी हैं- डॉ॰ राधा कृष्णन के शब्दों में, बाबू श्याम सुंदर अपनी विद्वत्ता का वह आदर्श छोड़ गए हैं जो हिंदी के विद्वानों की वर्तमान पीढ़ी को उन्नति करने की प्रेरणा देता रहेगा। .

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हिंदी शब्दसागर

हिंदी शब्दसागर हिन्दी भाषा के लिए बनाया गया एक वृहत शब्द-संग्रह तथा प्रथम मानक कोश है। 'हि‍न्‍दी शब्‍दसागर' का नि‍मार्ण नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने कि‍या था। इसका प्रथम प्रकाशन १९२२ - १९२९ के बीच हुआ। यह वैज्ञानिक एवं विधिवत शब्दकोश मूल रूप में चार खण्डों में बना। इसके प्रधान सम्पादक श्यामसुन्दर दास थे तथा बालकृष्ण भट्ट, लाला भगवानदीन, अमीर सिंह एवं जगन्मोहन वर्मा सहसम्पादक थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं आचार्य रामचंद्र वर्मा ने भी इस महान कार्य में सर्वश्रेष्ठ योगदान किया। इसमें लगभग एक लाख शब्द थे। बाद में सन् १९६५ - १९७६ के बीच इसका का परिवर्धित संस्काण ११ खण्डों में प्रकाशित हुआ। .

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली के बीच तुलना

नागरीप्रचारिणी सभा 35 संबंध है और पारिभाषिक शब्दावली 59 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 3.19% है = 3 / (35 + 59)।

संदर्भ

यह लेख नागरीप्रचारिणी सभा और पारिभाषिक शब्दावली के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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