नक्षत्र और पुनर्वसु
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नक्षत्र और पुनर्वसु के बीच अंतर
नक्षत्र vs. पुनर्वसु
आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। . पुनर्वसु मात्रेयसंहिता के रचयिता एवं आयुर्वेदाचार्य थे। अत्रि ऋषि के पुत्र होने के कारण इन्हें पुनर्वसु आत्रेय कहा जाता है। अत्रि ऋषि स्वयं आयुर्वेदाचार्य थे। अश्वघोष के अनुसार, आयुर्वेद-चिकित्सातंत्र का जो भाग अत्रि ऋषि पूरा नहीं कर सके थे उसे इन्होंने पूर्ण किया था। चरकसंहिता के मूल ग्रंथ अग्निवेशतंत्र के रचयिता अग्निवेश के ये गुरु एवं भरद्वाज ऋषि के समकालीन थे। इन्होंने अपने पिता एवं भरद्वाज ऋषि से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी। इनके रहने का कोई स्थान निश्चित नहीं था। पर्यटन करते हुए ये आयुर्वेद का उपदेश देते थे। आत्रेय के नाम पर लगभग तीस आयुर्वेदीय योग उपलब्ध हैं। इनमें बलतैल एवं अमृताद्य तैल का निर्देश चरकसंहिता में प्राप्त है। .
नक्षत्र और पुनर्वसु के बीच समानता
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संदर्भ
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